Hindustan Global Times, Avtar Singh Bisht प्रदेश में भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरेंस की भावना से भ्रष्टाचार मुक्त, उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना सहित उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारीयो के सपने के अनुरूप अग्रसर उत्तराखंड राज्य, ग्लेशियरों, नदियों, घने जंगलों और बर्फ से ढकी पर्वत चोटियों सहित प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री के चार सबसे पवित्र और प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर, जिन्हें चार-बांध भी कहा जाता है, उत्तराखंड में स्थित हैं और इसलिए, उन्हें ‘देवताओं की भूमि’ के रूप में जाना जाता है। राज्य की राजधानी देहरादून है और उच्च न्यायालय नैनीताल में स्थित है।आज 23वीं वर्षगांठ पूरे कर पूर्ण युवा हो चुका है। इन २३वी वर्षगांठ में राज्य ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं तो कई ऐसे पहलू भी हैं जिनकी कसक आज भी दूर नहीं हो पाई है। जहां बुनियादी ढांचे के विकास, सड़क-रेल-एयर नेटवर्क के लिहाज से उत्तराखंड तेजी से छलांग लगा रहा है। पहाड़ी राज्य उत्तरांखड बनाने को लेकर प्रदेशवासियों को लंबे संघर्ष का एक दौर देखना पड़ा. कई आंदोलनों और शहादतों के बाद 9 नवंबर 2000 को आखिरकार उत्तर प्रदेश से पृथक होकर एक अलग पहाड़ी राज्य का गठन हुआ. इस पहाड़ी राज्य को बनाने में कई बड़े नेताओं और राज्य आंदोलनकारियों का अहम योगदान रहा है. जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता है. आखिर क्या है एक अलग राज्य बनने का इतिहास और कब क्या रहा खास, देखिए उत्तराखंड बनने के संघर्ष की कहानी.42 से अधिक लोगों ने दी थी शहादत:पहाड़ी राज्य बनाने को लेकर एक लंबा संघर्ष चला. जिसके लिए कई आंदोलन किये गये, कई मार्च निकाले गये. अलग पहाड़ी प्रदेश के लिए 42 आंदोलनकारियों को शहादत देनी पड़ी. अनगिनत आंदोलनकारी घायल हुए. पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर उस समय इतना जुनून था कि महिलाएं, बुजुर्ग यहां तक की स्कूली बच्चों तक ने आंदोलन में भाग लिया

Spread the love

उपलब्धियां उत्तराखंड,राज्य सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय में उत्तराखंड राष्ट्रीय औसत से कहीं आगे तो है ही, कई बड़े राज्यों को भी चुनौती दे रहा है। विशेष दर्जे और केंद्र से मिलने वाली अधिक सहायता प्रदेश को ज्वलंत समस्याओं से जूझने और नई राह तैयार करने में सहायक सिद्ध हो रही हैHi

Hindustan Global Times, Avtar Singh Bisht

केंद्र की सहायता से चारधाम आलवेदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन, केदारनाथ, बदरीनाथ समेत चारधाम विकास योजनाओं के साथ सीमांत क्षेत्रों में सड़क कनेक्टिविटी परियोजनाओं ने राज्य के लिए नई उम्मीद जगाई है।

हर क्षेत्र में महिलाओं का सशक्तिकरण
राज्य गठन के बाद महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बढ़ी है. महिलाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलना शुरू हुआ, साथ ही पंचायतीराज और स्थानीय निकाय चुनावों में भी आरक्षण हासिल है. उत्तराखंड में महिलाओं के नाम संपत्ति खरीदने पर स्टाम्प ड्यूटी में छूट भी मिल रही है

सीएम धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन और केंद्र सरकार के सहयोग से राज्य में ऐसे कई कार्य किए गए हैं. पिछले पांच साल में केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के लिए एक लाख करोड़ से अधिक की विभिन्न परियोजनाओं को मंजूरी दी है.

Hindustan Global Times , Avtar Singh Bisht

उत्तराखंड राज्य निर्माण आन्दोलन के शहीद-

  • 8 अगस्त, 1994 को पौढ़ी में जीतबहादुर गुरंग शहीद हुए। 
  • 1 सितम्बर, 1994 के खटीमा कांड के शहीद- 

धर्मानंद भट्ट, गोपीचन्द, रामपाल, भगवान सिंह सिरोला, प्रताप सिंह, परमजीत सिंह, सलीम अहमद और भुवन सिंह।

  • 2 सितम्बर, 1994 के मसूरी कांड के शहीद- 

धनपत सिंह, बेलमती चौहान, रायसिंह बंगारी, हंसा धनाई, मदन मोहन मंमगाई, बलवीर सिंह नेगी, जेठूसिंह व उमाशंकर त्रिपाठी ( डीएसपी )। 

• 2 अक्टूबर, 1994 को दिल्ली में आयोजित रैली में भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों में से रामपुर तिराहा ( मुजफ्फरनगर ) पर शहीद- 

गिरीश कुमार भद्री, सतेन्द्र सिंह चौहान, रवीन्द्र रावत, सूर्यप्रकाश थपलियाल, राजेश लखेड़ा और अशोक कुमार कोशिव। 

•  3 अक्टूबर, 1994 को भड़के आंदोलन के शहीद-

-देहरादून मे राजेश रावत, दीपक वालिया, जयानंद बहुगुणा व बलवंत सिंह जंगवाण। 

-कोटद्वार में पृथ्वीसिंह बिष्ट व राकेश देवरानी। 

-नैनीताल में प्रताप सिंह बिष्ट। 

-श्रीयंत्र टापू – श्रीनगर में यशोधरा बैंजवाल व राजेश।

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, अवतार सिंह बिष्ट ,अध्यक्ष उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद

अवतार सिंह बिष्ट, सुरेश गौरी,अनिल जोशी, नरेश चंद्र भट्ट, हरीश जोशी, राजेश अरोड़ा,

30 अगस्त 2021 को उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद के बैनर तले आमरण अनशन के पश्चात माननीय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी के द्वारा सत्ताधारी नेताओं, शीर्ष नौकर साहो, की मध्यस्थिता से खटीमा हेलीपैड पर प्रतिनिधि मंडल वार्ता के उपरांत राज्य आंदोलनकारी की पांच मांगों पर सहमति बनी। परिणाम स्वरूप 1 सितंबर 2021 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा खटीमा, राज्य के शहीद स्मारक से सभी पांच मांगों की घोषणा की और सहमति व्यक्ति व्यक्त कर आज भी निरंतर पुष्कर सिंह धामी सरकार के द्वारा राज्य आंदोलनकारीयो के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर रखते हुए लगभग सभी मांगों का निस्तारण कर दिया गया है। कानूनी गांव पेश के चक्कर में थोड़ा सा विलंब जरूर हुआ है लेकिन पूरे विश्वास के साथ धामी सरकार अग्रसर है। बड़ा सवाल राज्य आंदोलनकारी की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से उम्र दराज हो चुके राज्य आंदोलनकारी को ₹15000 पेंशन की मांग पर क्या धामी सरकार अपनी सहमति व्यक्त करेंगी। 10% क्षैतिज आरक्षण प्राप्त होने से राज्य आंदोलनकारी को मिलेगी बहुत बड़ी राहत अवतार सिंह बिष्ट अध्यक्ष उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद

राज्य में चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों की संख्या करीब 13000 है। कानून बनने के बाद क्षैतिज आरक्षण का लाभ इन हजारों राज्य आंदोलनकारियों या उनके आश्रितों को मिलेगा।

पिछले करीब राज्य स्थापना की 23वीं वर्षगांठ के उतार-चढ़ाव के बाद अब राज्य आंदोलनकारियों को सीधी भर्ती के पदों पर 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का सपना मुकाम तक पहुंच जाएगा। कैबिनेट से मंजूर विधेयक विधानसभा में पारित होने के बाद जब कानून बनेगा तो इसे 2004 से लागू करने से चार बड़े फायदे होंगे।

1-आंदोलनकारी कोटे से लगे कर्मियों की नौकरी बहाल होगी

नैनीताल उच्च न्यायालय से आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण देने वाले शासनादेश के रद्द होने के बाद राज्य में इस व्यवस्था के तहत सरकारी विभागों में नौकरी कर रहे करीब 1700 कर्मचारियों को बड़ी राहत मिलेगी। राज्य आंदोलनकारी , अदालत में शासनादेश रद्द होने के बाद 2018 में प्रदेश सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी थी। इससे आंदोलनकारी कोटे से नौकरी में लगे कर्मचारियों की नौकरी को संरक्षण प्राप्त होगा।

राज्य में चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों की संख्या करीब 13000 है। कानून बनने के बाद क्षैतिज आरक्षण का लाभ इन हजारों राज्य आंदोलनकारियों या उनके आश्रितों को मिलेगा।

Hindustan Global Times, Avtar Singh Bisht

1-आंदोलनकारी कोटे से लगे कर्मियों की नौकरी बहाल होगी

नैनीताल उच्च न्यायालय से आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण देने वाले शासनादेश के रद्द होने के बाद राज्य में इस व्यवस्था के तहत सरकारी विभागों में नौकरी कर रहे करीब 1700 कर्मचारियों को बड़ी राहत मिलेगी। राज्य आंदोलनकारी क्रांति कुकरेती कहते हैं, अदालत में शासनादेश रद्द होने के बाद 2018 में प्रदेश सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी थी। इससे आंदोलनकारी कोटे से नौकरी में लगे कर्मचारियों की नौकरी को संरक्षण देने वाला कोई नियम अब मौजूद नहीं है।

: राज्य आंदोलनकारियों और आश्रितों को 10% क्षैतिज आरक्षण का बिल मंजूर, पढ़ें अन्य फैसले

2-करीब 300 अभ्यर्थियों की नौकरी मिलेगी

क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश रद्द होने के बाद करीब 300 ऐसे अभ्यर्थी हैं, जिनका आंदोलनकारी कोटे से लोक सेवा आयोग और अधीनस्थ चयन आयोग से चयन हो चुका है। लेकिन नियम न होने की वजह से उन्हें नियुक्ति नहीं दी जा सकी।

3.लटके परीक्षा परिणाम घोषित हो सकेंगे

कई ऐसे अभ्यर्थी हैं जिनके प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम संस्थानों ने इसलिए जारी नहीं किए कि आरक्षण का शासनादेश रद हो गया था। 2004 से आरक्षण का लाभ मिलने से ऐसे अभ्यर्थियों के परिणाम जारी होने की उम्मीद है।

  1. नौकरियों में आरक्षण का रास्ता खुलेगा

सबसे बड़ा फायदा राज्य के चिन्हित आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को होगा, जो वर्षों से इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं।

प्रदेश में 13000 चिन्हित आंदोलनकारी

राज्य में चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों की संख्या करीब 13000 है। कानून बनने के बाद क्षैतिज आरक्षण का लाभ इन हजारों राज्य आंदोलनकारियों या उनके आश्रितों को मिलेगा।

6000 आवेदन जिलों में लटके

चिन्हित राज्य आंदोलनकारी की मान्यता देने के लिए सभी 13 जिलों में करीब 6000 आवेदनों पर अभी तक निर्णय नहीं लिया जा सका है। राज्य आंदोलनकारी इसके लिए लगातार मांग कर रहे हैं। इनमें 300 आवेदन दिल्ली राज्य से हैं।
 

आंदोलनकारियों के आरक्षण का उतार-चढ़ाव

  • नित्यानंद स्वामी की अंतरिम सरकार में राज्य आंदोलन के शहीदों के आश्रितों को सीधे नौकरी का आदेश
  • 11 अगस्त 2004 को एनडी तिवारी सरकार ने घायलों और जेल गए लोगों को सीधे सरकारी सेवा में लेने और चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों को 10 क्षैतिज आरक्षण देने का आदेश दिया
  • निशंक सरकार चिन्हित आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को क्षैतिज आरक्षण के दायरे में लाई
  • नौ मई 2010 को करुणेश जोशी की याचिका पर हाईकोर्ट ने घायलों और जेल गए आंदोलनकारियों को सीधे नौकरी देने वाला शासनादेश निरस्त किया
  • 20 मई 2010 में बनाई गई सेवा नियमावली के खिलाफ करुणेश जोशी ने पुनर्विचार याचिका की
  • 7 मार्च 2018 को कोर्ट ने क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश और सेवा नियमावली को निरस्त कर दिया
  • 2015 में हरीश सरकार क्षैतिज आरक्षण का विधेयक लेकर आई, जो राजभवन में सात वर्ष तक लंबित रहा
  • मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अनुरोध पर राज्यपाल ने विधेयक को वापस भेजा
  • अब सरकार ने दोबारा से नया विधेयक बनाकर कैबिनेट से पारित कराया

बिल में ये प्रमुख संशोधन प्रस्तावित

  1. आंदोलन के घायलों व सात दिन अथवा इससे अधिक अवधि तक जेल में रहे आंदोलनकारियों की जगह चिन्हित राज्य आंदोलनकारी होना चाहिए
  2. आंदोलनकारियों को लोक सेवा आयोग वाले समूह ग के पदों पर भी सीधी भर्ती में आयु सीमा और चयन प्रक्रिया में एक साल की छूट मिले।
  3. लोकसेवा आयोग की सीधी भर्ती में राज्य महिला क्षैतिज आरक्षण की तरह 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण मिलेगा।

Spread the love