रुद्रपुर/ऑनलाइन | 4 अगस्त 2025
भारतीय सनातन परंपरा, आत्मानुशासन और साहित्यिक चेतना को समर्पित साहित्यिक सचेतना एवं स्वास्तिक मासिक पत्रिका द्वारा सोमवार, 4 अगस्त को “सचेतना आत्मोत्थान दिवस” का भव्य आयोजन किया गया। यह आयोजन संस्था के संस्थापक एवं अध्यक्ष गुरुदेव नरेंद्र रावत ‘नरेन’ जी के जन्मदिवस के अवसर पर किया गया, जिसे संस्था ने जीवन के आत्मिक पुनर्जागरण के रूप में मनाया।✍️अवतार सिंह बिष्ट,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी



प्रातः 10:00 बजे से रात्रि 10:30 बजे तक चले इस आयोजन में आध्यात्मिक साधना, वैचारिक विमर्श और रचनात्मक आत्मचिंतन जैसे विविध सत्र आयोजित किए गए। प्रातः सत्र में देशभर के 40 से अधिक साहित्यकारों ने “आत्मोत्थान” विषय पर सृजन प्रस्तुत किया और “सतव्रत संकल्प” लेते हुए आत्मनिरीक्षण और आत्मसुधार की प्रेरणादायी भावनाएं प्रकट कीं।
सभी साधकों ने यह सामूहिक संकल्प लिया: “कि मेरे तन में सत्कर्म, मन में सत्ज्ञान, प्राण में सद्भाव और आत्मा में सद्विवेक सदा जागृत रहे… मैं पंचपातक, पंचअपराध और पंचदोषों से मुक्त रहते हुए धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के सत्पथ पर निरंतर अग्रसर रहूँगा।”
रात्रि 8:00 बजे आयोजित ऑनलाइन सत्र में गुरुदेव नरेन जी ने “ॐ तत् सत्”, “असतो मा सद्गमय”, “सर्वे भवन्तु सुखिनः” तथा “वसुधैव कुटुम्बकम्” जैसे मंत्रों के माध्यम से उपस्थितजनों को आत्मोत्थान की ओर प्रेरित किया। उनके मंत्रात्मक उद्बोधन ने गोष्ठी को एक आध्यात्मिक ऊँचाई प्रदान की।
वैदिक वेबिनार सत्र में गुरुदेव ने साधनाचतुष्टय – यजन, पठन, भजन एवं जपन जैसे सनातन उपायों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए आत्मोत्थान के व्यावहारिक आयामों की चर्चा की।
इस आयोजन में देशभर से वरिष्ठ साहित्यकार, सनातन साधक, संपादकगण एवं सचेतना के पदाधिकारीगण शामिल हुए। प्रमुख उपस्थितजन रहे – नागेश कुमार पांडेय (लखनऊ), योगेश गहतोड़ी (नई दिल्ली), रामसिंह भंडारी (गुरुग्राम), दीपा नेगी बिष्ट (चमोली), रानी रावल ‘रूद्रश्री’ (झालावाड़), डॉ. श्वेतकेतु शर्मा (बरेली), सावित्री भारतीया (पुणे), गार्गी चटर्जी ‘आशा’ (कोरबा) सहित कुल 40+ प्रतिभागी।
संपादिका प्रीति डिमरी ‘प्रीत’ के अनुसार, “यह आयोजन केवल एक दिन का कार्यक्रम नहीं बल्कि जीवन में आत्मिक अनुशासन और सृजनशीलता को समर्पित एक दीर्घकालीन आध्यात्मिक यात्रा है।” उन्होंने यह भी कहा कि “साहित्य केवल लेखन नहीं, वह जीवन को श्रेष्ठतम रूप में जीने की विधा है।”
कार्यक्रम में पद्य और गद्य दोनों विधाओं में गुरुदेव को समर्पित रचनाएं प्रस्तुत की गईं और भावपूर्ण काव्यांजलि के साथ समापन हुआ।
🖋️ संपादकीय टिप्पणी ,सचेतना आत्मोत्थान दिवस” – आत्मशक्ति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता पर एक प्रेरक पहल,आज के तकनीकी और उपभोक्तावादी युग में जब व्यक्ति बाह्य सुख-सुविधाओं की दौड़ में आत्मा की पुकार को अनसुना कर देता है, ऐसे में “सचेतना आत्मोत्थान दिवस” जैसे आयोजनों की प्रासंगिकता कहीं अधिक बढ़ जाती है। साहित्यिक सचेतना एवं स्वास्तिक मासिक पत्रिका द्वारा गुरुदेव नरेंद्र रावत ‘नरेन’ जी के जन्मदिवस पर यह आयोजन केवल एक औपचारिक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि जीवन में आत्मिक अनुशासन, वैचारिक परिष्कार और सृजनशीलता की प्रतिष्ठा का सार्थक प्रयास था।इस आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि आत्मोत्थान कोई अमूर्त अवधारणा नहीं, बल्कि जीवन की व्यावहारिक दिशा है – जहाँ व्यक्ति अपने कर्म, विचार और भावना को शुद्धता, विवेक और सकारात्मकता की ओर मोड़ता है। सतव्रत संकल्प, वेदवाक्य, मंत्रोच्चारण, और साधनाचतुष्टय जैसे आध्यात्मिक पक्षों को साहित्यिक विमर्श से जोड़कर आयोजकों ने आधुनिक मानस को एक प्राचीन किंतु प्रासंगिक पथ का स्मरण कराया।
गुरुदेव नरेन जी के उद्बोधन न केवल प्रेरणादायी थे, बल्कि उन्होंने “वसुधैव कुटुम्बकम्” के वैश्विक भाव को वर्तमान सामाजिक विघटन के परिप्रेक्ष्य में पुनर्परिभाषित किया। यह कार्यक्रम एक प्रमाण है कि साहित्य जब अध्यात्म से जुड़ता है, तो वह केवल पठन की वस्तु न रहकर आत्मपरिवर्तन का साधन बन जाता है।
ऐसे आयोजनों को देशभर में संस्थागत रूप देना चाहिए, जिससे भारतीय युवा केवल तकनीकी दक्षता ही नहीं, बल्कि चरित्र, चेतना और संवेदना में भी समृद्ध हो। “सचेतना आत्मोत्थान दिवस” वास्तव में आत्म-नवजागरण की ओर एक सांस्कृतिक-आध्यात्मिक आवाहन है।
प्रेषक:
प्रीति डिमरी ‘प्रीत’
राष्ट्रीय महासचिव एवं संपादिका
साहित्यिक सचेतना एवं स्वास्तिक मासिक पत्रिका
(चिरपुरातन से नितनवीनता की ओर)
🌐 www.sachetna.

