9 अगस्त 2023 परेड ग्राउंड से मुख्यमंत्री आवास कुच,, भू अध्यादेश 1950

Spread the love

अखण्ड उत्तराखंड, सशक्त लोकायुक्त,रोजगार ,स्वास्थ्य, शिक्षा, जल_जंगल जमीन महिलाओं की सुरक्षा बिधर्मीयों से उत्तराखंड की सुरक्षा, सशक्त भू कानून, मूल निवास, 70% मुल निवासियों को सरकारी एवं गैर-सरकारी रोजगार मे प्राथमिकता।उत्तराखंड को मजबूत भू कानून की जरूरत है। आखिर क्यों ! आइए इसे एक सरल भाषा में समझते हैं।

उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के द्वारा भू अध्यादेश 1950, मूल निवास ,सशक्त लोकायुक्त का गठन, 70% स्थानीय लोगों को सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में प्राथमिकता, राज्य आंदोलनकारियों को 10% क्षैतिज आरक्षण।। 9 अगस्त 2023 को परेड ग्राउंड देहरादून से मुख्यमंत्री आवास कूच का कार्यक्रम उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच उत्तराखंड के बैनर तले किया जा रहा है. जिसमें प्रदेश के समस्त राज्य आंदोलनकारी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। मुख्यमंत्री आवास के घेराव में इससे पूर्व भी राज्य आंदोलनकारी समय-समय पर उत्तराखंड के जन सरोकार के मुद्दों को लेकर एवं अन्य मांगों को लेकर आंदोलनरत रहे हैं। 13 जनपदों के राज्य आंदोलनकारी मुख्यमंत्री आवास कुच कार्यक्रम में पहुंचेंगे। दूर-दराज से आने वाले राज्य आंदोलनकारियों का जमावड़ा 8 अगस्त से शुरू हो जाएगा ।9 अगस्त को निर्धारित समय पर सभी राज्य आंदोलनकारी शक्तियां परेड ग्राउंड देहरादून में पहुंचने लगेंगे ।आपको अवगत कराते हुए कि क्यों जरूरी है भू अध्यादेश 1950,, जानते हैं, विस्तार से हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स के साथ

आइए समझते हैं क्यों जरूरी है उत्तराखंड में एक मजबूत भूकानून और चकबंदी।
उत्तराखंड बनने के साथ यहां पर एक मजबूत भू कानून लागू हो जाना चाहिए था,लेकिन दुर्भाग्य से यह नहीं हो सका। क्यों ! उत्तराखंड मे प्रचुर जल, जंगल तथा भूमि के संसाधन थे।


राज्य बनने के साथ ही यह कानून बन जाना चाहिए था जिस तरीके से नागालैंड और कश्मीर में था। गुजरात में भी यह कानून लागू है। यहां भी कोई बाहर का व्यक्ति आसानी से भूमि नही खरीद सकता। संविधान में एक मौलिक अधिकार है, जिसके अनुसार देश का कोई भी नागरिक पूरे देश भर में कहीं भी भूमि अर्जित कर सकता है। यह फंडामेंटल राइट किसी राज्य में भूमि की खरीद को मर्यादित करने में आड़े आता है।
हिमाचल में भी यह कानून लागू है। हिमाचल ने फंडामेंटल राइट से बचने के लिए एक उपाय निकाला और यह कानून लागू किया गया कि जो कृषि भूमि है उसे केवल हिमाचल प्रदेश का मूलनिवासी भूस्वामी यानी 1950 से हिमाचल में रह रहा व्यक्ति ही खरीद सकता है।
पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी कार्यकाल में भू अध्यादेश को और कड़ा किया गया तथा 250 वर्ग मीटर से अधिक भूमि खरीदे जाने पर रोक लगा दी गयी। लेकिन इसके साथ ही भाजपा सरकार ने एक चोर रास्ता निकाल लिया। उसके अनुसार एक बार ढाई सौ वर्ग मीटर कृषि भूमि खरीद लेने के बाद कोई भी व्यक्ति उत्तराखंड का कृषक होने की श्रेणी में आ जाता था और फिर वह कितनी भी भूमि खरीद सकता था।
त्रिवेंद्र सिंह रावत जी ने यह कानून ही खत्म कर दिया।
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री बनने के बाद यह तय कर दिया कि उत्तराखंड से बाहर का कोई भी व्यक्ति उत्तराखंड में कितनी भी भूमि खरीद सकता है। इसके अलावा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक और नेक काम किया। उन्होंने चकबंदी के लिए किए जा रहे सभी कार्य और समितियां भंग कर दी।
गौरतलब है कि वर्ष 2007 से वर्ष 2012 में भाजपा सरकार के ही दौरान कृषि मंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को चकबंदी समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया था। तब भी इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया गया।
तत्कालीन मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत चकबंदी और भू कानून पर तो कोई कार्य नहीं कर पाए बल्कि बाद में जब उन्होंने सहारनपुर को उत्तराखंड में मिलाने का पुरजोर पक्षधर होने की पैरवी की और सहारनपुर के एक व्यक्ति को उत्तराखंड में राज्य मंत्री बना डाला।
त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा उत्तराखंड में भूमि की खरीद फरोख्त सीमित करने का कानून खत्म कर दिए जाने के बाद से बाहर के सैकड़ों लोग बड़े बड़े भूभाग खरीद चुके हैं और अब इस भू कानून का कोई पहले जैसा असर नहीं हो पाएगा, लेकिन फिर भी, अब भी यह कानून लागू कर दिया जाए तो उत्तराखंड का पर्वतीय भू-भाग अभी भी बचाया जा सकता है।
यदि उत्तराखंड में भू कानून बनाकर चकबंदी लागू कर दी जाए तो जोत एक ही स्थान पर अपनी कृषि भूमि पर रोजगार के सभी साधन आसानी से जोड़ सकते हैं।
विधानसभा में वर्ष 2016 से चकबंदी एक्ट पास होने के बावजूद अभी तक भाजपा सरकार ने इस में कुछ नहीं किया है। उल्टा यहां की जमीनों को लूटने के लिए छोड़ दिया है यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।डी
जनवरी 2015 में हरीश सरकार ने चकबंदी सलाहकार समिति गठित की गई.
यमुनोत्री विधायक केदार सिंह रावत की अध्यक्षता में गठित इस समिति ने तेजी से काम करते हुए, सितंबर 2015 में 8 महीनों में ही चकबंदी को लेकर ड्राफ्ट तैयार कर लिया.मार्च 2016 में चकबंदी को लेकर हरीश सरकार ने विधेयक कैबिनेट में पास कर दिया गया.
चकबंदी पर ड्राफ्ट तैयार होने के बाद विधेयक विधानसभा में आने से पहले ही हरीश सरकार गिर गई.
कोर्ट से राहत मिलने के बाद जुलाई 2016 में हरीश सरकार ने विधानसभा में चकबंदी विधायक पास किया और इसने कानून की शक्ल ले ली.


Spread the love