जागो मूल-निवासियों, सिर्फ जै उत्तराखण्ड बोलने से कुछ नहीं होगा, जय-विजय पाने के लिए अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ेगा, इन राष्ट्रीय पार्टियों के नेताओं की साज़िश समझने की सख्त आवश्यकता है।
क्या हमारा उत्तराखण्ड फिर से उत्तर प्रदेश बनने वाला है ?
उत्तर प्रदेश में भी हम मूल निवासी थे तो हमें गैर उत्तराखण्डियों के साथ स्थाई निवासी क्यों बनाया ?
पर्यटन विकास के नाम पर पूरे पहाड़ खुर्द-बुर्द हो रहे हैं, सोचिए जब मूलनिवासी लाखों की संख्या में पलायन कर चुके हैं, उत्तराखंड पलायन आयोग कहां है, पलायन आयोग की नीतियां मूल-निवासियों के लिए बन रही हैं या गैर उत्तराखण्डियों को लाने – बसाने के लिए प्लान कर रही हैं। हमारे युवाओं को आज तेईस साल बाद भी पलायन करना पड़ रहा है तो यह पहाड़ों को तोड़फोड़ करके विकास किसके लिए है ? उत्तराखंड राज्य मिलने पर ६४ लाख आबादी थी जो लाखों उत्तराखण्डी परिवारों के पलायन के बाद आज एक करोड़ चालीस लाख से ऊपर आबादी कैसे हुई ?
उत्तराखंड को सिर्फ क्षेत्रीय दल, उत्तराखंड क्रांति दल की नीतियों की जरूरत है, सभी शहर तो हाथ से निकल चुके हैं, अब पहाड़ों को बचा लीजिए। जै उत्तराखंड-जै उक्रांद।