अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर की मार: दुनिया को मंदी का डर, भारत भी चपेट में आ सकता है

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अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर पर केंद्रित एक विश्लेषणात्मक खबर है, जिसमें भारत के प्रभाव को प्रमुखता से शामिल किया गया है:

रिपोर्ट: अवतार सिंह बिष्ट, विशेष संवाददाता | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

अभी दुनिया दो महाशक्तियों की आर्थिक लड़ाई की भट्टी में झुलस रही है। एक ओर अमेरिका है, जो चीन पर भारी-भरकम टैरिफ लगाकर अपनी इंडस्ट्री को बचाना चाहता है, और दूसरी ओर चीन है, जो अपनी उत्पादन क्षमता और वैश्विक आपूर्ति चेन पर पकड़ के बल पर झुकने को तैयार नहीं। यह जंग अब सिर्फ द्विपक्षीय नहीं रही, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर ब्रेक लगाने का खतरा बन चुकी है। मंदी के बादल मंडरा रहे हैं, और भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा।

अमेरिका-चीन व्यापार: आंकड़े क्या कहते हैं?

वर्ष 2023 में अमेरिका और चीन के बीच कुल 585 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ, जिसमें से अमेरिका ने 440 बिलियन डॉलर का आयात किया और सिर्फ 145 बिलियन डॉलर का निर्यात किया। यानी अमेरिका को चीन के साथ 295 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा हुआ — जो उसकी एक फीसदी जीडीपी के बराबर है। यह घाटा अमेरिका की चिंता का मुख्य कारण है।

टैरिफ की रणनीति और उसकी चुनौती

पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अब बाइडेन प्रशासन की ओर से चीन पर भारी टैरिफ लगाए गए — कुछ क्षेत्रों में तो 145% तक। लेकिन इसका खामियाजा अमेरिकी उपभोक्ताओं और उद्योगों को भी उठाना पड़ रहा है। जेपी मॉर्गन का विश्लेषण कहता है कि इस नीति से अमेरिकी टैक्सपेयर्स पर 860 बिलियन डॉलर तक का बोझ पड़ सकता है। वहीं, चीन ने पलटवार करते हुए अमेरिका पर जवाबी टैरिफ भी लगा दिए, जिससे तनाव और गहरा गया।

भारत पर असर: नुकसान के कई चेहरे

इस ट्रेड वॉर का सीधा असर भारत पर भी पड़ सकता है:

  1. निर्यात पर दबाव: चीन और अमेरिका दोनों भारत के बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। वैश्विक मंदी या व्यापार में गिरावट से भारतीय निर्यात प्रभावित हो सकता है, खासकर टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स, फार्मा और आईटी सेक्टर।
  • कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव: भारत कई इंडस्ट्रीज के लिए चीन से कच्चा माल मंगाता है। अगर चीन पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और उसकी सप्लाई चेन बाधित होती है, तो भारत की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री पर संकट आ सकता है।
  • विनिर्माण का अवसर और चुनौती: कुछ जानकार मानते हैं कि चीन से हटकर वैश्विक कंपनियां भारत का रुख कर सकती हैं। लेकिन इसके लिए भारत को बेहतर लॉजिस्टिक्स, सस्ता क्रेडिट, और पारदर्शी नीतियों की जरूरत होगी। “मेक इन इंडिया” को सिर्फ नारे से निकालकर ज़मीन पर उतारना पड़ेगा।
  • शेयर बाजार और निवेश: अमेरिका और चीन की लड़ाई से ग्लोबल इन्वेस्टर डरे हुए हैं। इसका असर भारतीय शेयर बाजार और विदेशी निवेश (FDI/FPI) पर पड़ सकता है।

भारत की रणनीति: संतुलन बनाना जरूरी

भारत के लिए सबसे अहम है संतुलित कूटनीति। न तो चीन से संबंध पूरी तरह बिगाड़े जा सकते हैं, न ही अमेरिका की दोस्ती से दूरी बनाई जा सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को इस मौके को रणनीतिक रूप से भुनाना होगा। वियतनाम, कंबोडिया जैसे देश जहां चीन के विकल्प बन रहे हैं, भारत को उनसे प्रतिस्पर्धा करनी होगी।

निष्कर्ष: जंग की आग में तपेगा भारत

टैरिफ युद्ध ने दुनिया को अनिश्चितता की ओर धकेल दिया है। अमेरिका और चीन अपनी आर्थिक जिद पर अड़े हुए हैं, लेकिन इस खींचतान में विकासशील देशों की कमर टूट सकती है। भारत के लिए यह अवसर भी है और चुनौती भी। सही फैसलों और त्वरित सुधारों से भारत इस वैश्विक झंझावात से न सिर्फ बच सकता है, बल्कि एक वैकल्पिक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर भी सकता है।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता



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