
जमानत होने के बाद भी ये बंदी अफसरों से कहते हैं कि उन्हें जेल में ही रहना है। ऐसे सभी बंदी नशेड़ी, लूट और मारपीट के आरोपी हैं। हल्द्वानी उपकारागार में 1100 से अधिक बंदी हैं। जिन पर हत्या, लूट, चोरी, डकैती, दुष्कर्म समेत तमाम धाराओं में मुकदमा दर्ज है।


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
ये सभी कैदी यूएसनगर और नैनीताल जिले हैं। इनमें से अधिकांश बंदी नशे की तस्करी, लूट और चोरी के मामले में सलाखों के पीछे पहुंचे हैं। ऐसे मामलों में सात से आठ महीने बाद लोक अदालत में इनके वादों का निस्तारण हो जाता है, लेकिन अधिकांश नशेड़ी और लूट-मारपीट के अपराधी जमानत मिलने के बाद भी जेल नहीं छोड़ना चाह रहे हैं।
जब इसका कारण अधिकारियों से पूछा तो उनका कहना था कि ऐसे 15 से 20 बंदियों को महीने में जमानत मिलती है, लेकिन वह जेल से बाहर नहीं भेजने की अफसरों से गुहार लगाते हैं।क्योंकि उन्हें यहां पर्याप्त पौष्टिक भोजन समय से मिलता है और वह जेल के अंदर मजदूरी करके पैसे भी कमा लेते हैं। जबकि रिहा होने के बाद वे बाहर जाते ही बेरोजगार हो जाते हैं।
हल्द्वानी उपकारागार के जेल अधीक्षक प्रमोद पांडे कहते हैं कि बंदियों को जेल के भीतर अच्छा खाना और सुविधाएं मिलती हैं। नशेड़ी और लूटपाट जैसे आरोपों में आए बंदी जेल नहीं छोड़ना चाहते। लेकिन नियमों के अनुसार जगह खाली करने को जमानत मिलने के बाद इन्हें बाहर भेजना होता है।
योग, खेल व शिक्षा से बनता है जेल में रुटीन
कैदियों की सेहत और पुनर्वास पर कारागार पुलिस विशेष ध्यान देती है। जेल में बंदियों को विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों में शामिल किया जाता है। जैसे कि योग, खेल और शिक्षा। इसके अलावा जेल में कैदियों को उनकी रुचि के अनुसार काम दिया जाता है। जिससे वे सेहत और कौशल में सुधार कर सकें। इस तरह उन्हें उद्योग विभाग की ओर से प्रशिक्षण दिया जाता है।
