विपक्षी नेता के रूप में लालकृष्ण आडवाणी अक्सर अपनी सार्वजनिक सभाओं में एक कहानी से दर्शकों को मुग्ध कर देते थे। यह एक ऐसे व्यक्ति के बारे में थी जिसने एक राजा के सामने झूठ बोला था।हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/प्रिंट मीडिया :शैल ग्लोबल टाइम/ संपादक अवतार सिंह बिष्ट रूद्रपुर उत्तराखंड

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राजा ने उसे दंडित करने का फैसला किया और दो विकल्प दिए: या तो 100 प्याज खाओ या महल के सुरक्षा कर्मी द्वारा 100 कोड़े की मार सहो। भ्रमित और डरा हुआ आदमी पहले प्याज खाने के लिए तैयार हो गया लेकिन कुछ ही प्याज खाने के बाद उसे उल्टी होने लगी; फिर वह सुरक्षा कर्मी द्वारा पीटे जाने के लिए सहमत हो गया।

जल्द ही उसका शरीर कोड़े खाने से लाल पड़ गया और उसने राजा से फिर से प्याज देने की विनती की। ये सिलसिला लगातार चलता रहा। आडवाणी मजाक में कहा करते थे ‘उस भ्रमित आदमी की तरह जो 100 प्याज खाता है और 100 बार मार भी खाता है, कांग्रेस भी इस उलझन में है कि क्या करे और क्या न करे और इस तरह उसे दो बार सजा मिलती है।’

उत्तर प्रदेश के राजनेता बृजभूषण शरण सिंह के शर्मनाक कृत्य में भाजपा की दयनीय स्थिति देखकर वह कहानी बरबस याद आती है। पार्टी में न तो उन्हें पद छोड़ने के लिए कहने की हिम्मत थी और न ही महिला पहलवानों का सामना करने की। न केवल महिलाओं में, बल्कि समाज के सभी वर्गों में बृजभूषण के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश था, लेकिन भाजपा ने ‘नारी शक्ति’ के नारे पर कसकर चुप्पी साध रखी थी। पर इस दौरान भाजपा की जो भद पिटी वह देखने लायक थी।

आडवाणी- जिन्हें बहुत पहले ‘मार्गदर्शक मंडल’ में भेज दिया गया – कांग्रेस की जो कहानी अक्सर सुनाते थे, आज की दुविधाग्रस्त भाजपा पर बिल्कुल वैसे ही चस्पा होती है।

मूल्य-आधारित राजनीति, नैतिकता आदि की बातें करने वाले भाजपा नेता वर्ष 2014 से अपनी पार्टी के ‘माननीय’ सांसद सिंह के खिलाफ कार्रवाई के बारे में निर्णय नहीं ले सके। क्षुब्ध करने वाली बात यह है कि भाजपा ने संदेशखाली को पश्चिम बंगाल में चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की लेकिन अपनी नाक के नीचे दिल्ली में महिला अत्याचार के आरोपी ‘बाहुबली’ को खुले आम बचाती रही।

छेड़छाड़ के उस दबंग आरोपी को भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के अध्यक्ष और पार्टी सांसद के पद पर बने रहने देने के कारण भाजपा की जमकर आलोचना हुई और वह देश भर की महिलाओं की नजर में गिर गई। ‘मजबूत’ माना जाने वाला राष्ट्रीय नेतृत्व आखिर सिंह को छूने से क्यों डर रहा था? जबकि इसी नेतृत्व ने पुराने ‘मी टू’ आंदोलन में फंसे केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर से तुरंत इस्तीफा ले लिया था।

अब जब दिल्ली की एक अदालत ने छह महिला पहलवानों की शिकायतों पर आरोप तय कर दिए हैं – उन्हें एक साल से अधिक समय तक न्याय के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी- तो भाजपा पर लोगों के सामने चेहरा छिपाने की नौबत आ गई है।
मौजूदा सांसद के बागी होने से डरी भाजपा ने कैसरगंज से विवादित नेता के बेटे को टिकट दिया है।

400 सीटें जीतने का दावा करने वाली पार्टी देश को एक बेहतर संदेश देने का जोखिम उठा सकती थी, ओलंपियन पहलवानों के गौरव की रक्षा कर भारत का नाम रोशन करने वाली लड़कियां न केवल धरने पर बैठीं, उन्होंने अपने पदक लौटाए, पुलिस के पास गईं, अदालतों और भाजपा नेताओं के पास गुहार लगाई, लेकिन सरकार में बैठा कोई भी शीर्ष नेता टस से मस नहीं हुआ।

क्या ऐसा इसलिए था क्योंकि बृजभूषण का बेटा विधायक है और सिंह परिवार की गोंडा जिले और उसके आसपास दहशत है? अजीब बात है कि भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) की अध्यक्ष पीटी उषा या अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की एकमात्र भारतीय प्रतिनिधि नीता अंबानी ने भी सार्वजनिक रूप से पीड़ित पहलवानों के लिए बात नहीं की, जिनमें एक नाबालिग लड़की भी शामिल है।

यह कोई सामान्य अपराध नहीं था। दिल्ली पुलिस, जो अरविंद केजरीवाल के अधीन नहीं थी, ने 1500 पन्नों की चार्जशीट दायर की थी, जिसमें छह महिला पहलवानों – सभी अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त – के यौन उत्पीड़न, हमला और पीछा करने का आरोप लगाया गया था।

दुर्भाग्य से, भगवा अपराधियों की सूची बहुत लंबी है। यह घिनौना प्रकरण यह साबित करता है कि किसी यौन अपराधी को चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, लंबे समय तक नहीं बचाया जा सकता है। सिंह को आरोपी बनाने के लिए अदालत और मेहनती पुलिस को सलाम किया जाना चाहिए। देश यह देखना चाहता है कि मामला अपनी तार्किक परिणति तक पहुंचे और अपराधी को छूट न मिले।


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