
– रिपोर्ट: अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर शैल ग्लोबल टाइम्स / हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स


गदरपुर, उधम सिंह नगर, 24 अप्रैल 2025 – आज जहां देशभर में पंचायती राज दिवस मनाया जा रहा है, वहीं उत्तराखंड के एक छोटे से गांव खानपुर पूर्व की शिवपुर प्राथमिक विद्यालय में बच्चों ने लोकतंत्र की मूल भावना को आत्मसात करते हुए एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
यह अवसर केवल एक सामान्य कार्यक्रम का नहीं, बल्कि उस भविष्य की नींव रखने का था जहाँ गांव के बच्चे शासन की बुनियादी प्रक्रियाओं से परिचित हो सकें। इस महत्वपूर्ण अवसर पर बाल सभा का आयोजन किया गया, जिसे विद्यालय की प्रधानाध्यापिका श्रीमती चित्रा और पिरामल फाउंडेशन की आकांक्षी भारत कोलैबोरेटिव टीम से देव्यानी के संयुक्त प्रयासों से साकार किया गया।
पंचायती राज का महत्व – बच्चों की नजर से
कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रगान और स्वागत गीत के साथ हुई। इसके पश्चात एक लघु व्याख्यान के माध्यम से बच्चों को पंचायती राज व्यवस्था, ग्राम सभा की भूमिका, ग्राम प्रधान की जिम्मेदारियाँ, और नागरिक अधिकारों की जानकारी दी गई।
देव्यानी ने अत्यंत सरल भाषा में बच्चों को बताया कि कैसे गांवों में तीन-स्तरीय पंचायत प्रणाली कार्य करती है और कैसे एक आम नागरिक भी ग्राम सभा के ज़रिए अपनी भागीदारी दर्ज कर सकता है।
एक नाट्य प्रस्तुति के माध्यम से बच्चों ने ग्राम सभा की कार्यवाही को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें ‘बाल प्रधान’, ‘सचिव’, ‘शिक्षा मंत्री’ और अन्य भूमिकाएं निभाते हुए उन्होंने स्थानीय समस्याओं पर चर्चा की और समाधान सुझाए। यह दृश्य उपस्थित अभिभावकों और अतिथियों के लिए बेहद प्रेरणादायी रहा।
बाल सभा की संरचना और बच्चों की भागीदारी
बाल सभा की संरचना उसी तरह की गई जैसे एक ग्राम सभा की होती है – जिसमें अध्यक्षता बाल प्रधान द्वारा की गई, प्रस्ताव रखे गए, चर्चा की गई और अंत में सामूहिक निर्णय लिए गए। इस प्रक्रिया ने बच्चों को लोकतांत्रिक संवाद, निर्णय लेने की प्रक्रिया और सामूहिक भागीदारी का वास्तविक अनुभव कराया।
एक छात्रा आराध्या ने ‘शिक्षा का अधिकार’ विषय पर जोरदार भाषण दिया, वहीं छात्र अर्पित ने ‘सड़क सुरक्षा और गांव की साफ-सफाई’ पर प्रस्ताव रखा। बच्चों ने इस दौरान कई स्थानीय मुद्दों पर प्रश्न पूछे – जैसे आंगनबाड़ी में पोषण आहार की गुणवत्ता, स्कूल में खेल सामग्री की उपलब्धता, और पुस्तकालय के निर्माण की आवश्यकता।
इन सभी विषयों पर बाल मंत्रिमंडल ने अपनी राय दी और प्रस्तावों को विद्यालय की प्रधानाध्यापिका और उपस्थित एसएमसी (स्कूल मैनेजमेंट कमेटी) सदस्यों को सौंपा।
अभिभावकों और समुदाय की सहभागिता
इस अवसर पर अभिभावक, ग्राम पंचायत प्रतिनिधि, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, SMC सदस्य एवं शिक्षकगण बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। उन्होंने बच्चों के इस आयोजन को न सिर्फ देखा बल्कि उनकी सोच, प्रस्तुति और नेतृत्व क्षमता की खुले दिल से सराहना की।
प्रधानाध्यापिका श्रीमती चित्रा ने कहा,
“बाल सभा केवल एक गतिविधि नहीं, यह बच्चों में नेतृत्व, संवाद और जागरूकता जैसे गुणों को विकसित करने का मंच है। जब हम उन्हें छोटी उम्र से ही प्रशासन की समझ देंगे, तभी वे भविष्य में जिम्मेदार नागरिक बन सकेंगे।”
देव्यानी का योगदान – जमीनी बदलाव की पहल
पिरामल फाउंडेशन की ओर से कार्यरत देव्यानी, जो आकांक्षी भारत कोलैबोरेटिव पहल के तहत गांव में काम कर रही हैं, ने बताया कि उनका उद्देश्य ग्रामीण बच्चों को शासन की प्रक्रियाओं से जोड़ना और उन्हें भविष्य के निर्णयकर्ताओं के रूप में तैयार करना है।
उन्होंने कहा,
“जब बच्चे पंचायत और लोकतंत्र के मूल तत्वों को समझते हैं, तब वे केवल पढ़े-लिखे नहीं, जागरूक भी बनते हैं। बाल सभा जैसे कार्यक्रम उनके अंदर जिम्मेदारी, सहानुभूति और संवाद की शक्ति को जागृत करते हैं।”
बाल संसद की अवधारणा – भविष्य की राजनीति का प्रशिक्षण
कार्यक्रम में बच्चों को बाल संसद की अवधारणा से भी परिचित कराया गया, जिसमें स्कूल स्तर पर छात्र नेताओं को चुनकर उनके माध्यम से विद्यालय संचालन में भागीदारी दी जाती है।
इस प्रयोगात्मक सीख के माध्यम से बच्चों में विकास योजनाओं की समझ, सार्वजनिक संवाद, सामूहिक सहमति, और समस्या समाधान कौशल का प्रशिक्षण दिया गया।
लोकतंत्र की जड़ें गांवों में ही पनपती हैं
यह आयोजन इस बात का स्पष्ट संकेत है कि लोकतंत्र की असली शिक्षा किताबों से अधिक व्यावहारिक प्रशिक्षण और सहभागिता के माध्यम से दी जा सकती है। बच्चों ने न केवल विषय सीखा, बल्कि उसे जिया और प्रस्तुत किया।
गांव के बुजुर्गों ने भी इस आयोजन को ‘समाज में बदलाव की आशा’ बताते हुए कहा कि अगर इसी तरह बच्चों को शुरू से ही जिम्मेदार बनाना सिखाया जाए, तो देश का भविष्य स्वर्णिम होगा।
निष्कर्ष – बदलाव की यह शुरुआत सराहनीय है
शिवपुर प्राथमिक विद्यालय का यह आयोजन केवल एक दिन की गतिविधि नहीं, बल्कि एक सोच है – जो बच्चों को जिम्मेदार, जागरूक और नेतृत्वशील नागरिक बनाने की दिशा में उठाया गया एक सार्थक कदम है।
पंचायती राज दिवस के अवसर पर यह कार्यक्रम उत्तराखंड में शिक्षा और लोकतंत्र को मिलाने वाला एक बेहतरीन उदाहरण बनकर सामने आया है। यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वर्षों में ऐसे कार्यक्रमों की संख्या और प्रभाव दोनों में वृद्धि होगी।
