उत्तराखण्ड राज्य की परिकल्पना यहाँ के लोगों ने अपनी बेहतरी के लिए की थी। इस हिमालयी क्षेत्र की विषय भौगोलिक परिस्थिति, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पिछड़ेपन के प्रति सरकारों ने हमेशा उपेक्षा का भाव रखा। नीति-नियंताओं ने यहाँ की परिस्थितियों के अनुकूल नीतियां नहीं बनाई। इसी उपेक्षा के चलते यहाँ के लोगों ने पृथक पर्वतीय राज्य की मांग उठाई। चार दशक से ज्यादा चले इस आंदोलन मे 42 लोगों ने अपनी शहादत दी, जिसमें दो महिलाएं बेलमती चौहान और हंसा धनाई शामिल थी। आंदोलनकारियों की शहादत से 9 नवम्बर, 2000 को हमें अलग राज्य मिल गया। लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है, उत्तरखण्ड राज्यकी मांग जहाँ से शुरू हुई थी, हम आज भी वहीं खड़े हैं। राज्य बनने के 24 साल बाद भी सरकारों ने अवधारणा के खिलाफ नीतियाँ बनाकर बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, रोजगार से लेकर स्थानीय संसाधनों पर हकों से लोगों को वंचित किया जाता रहा है। मूलभूत जरूरतों के अभाव में बड़ी संख्या में लोगों ने पलायन किया है। जहां हम सोच रहे थे कि राज्य अपना होगा तो हम अपनी तरह की नीतियां बना सकेंगे, वहीं राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में दो हजार से ज्यादा प्राइमरी स्कूल बंद हुए हैं। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए तकनीकी शिक्षा के माध्यम से रोजगार के लिए बने दर्जनों आई.टी. आई. और पॉलिटैक्नीक बंद कर दिये गये हैं। उच्च तकनीकी शिक्षण संस्थानों को भी जर्जर हालत में पहुंचा दिया है। यहाँ तक जवाहर नवोदय विद्यालय और राजीव गाँधी नवोदय विद्यालयों की हालत भी बहुत खराब है। उत्तराखण्ड में स्वास्थ्य सुविधाएं हमेशा मुद्दा रही है। राज्य बनने से इनमें सुधार आने के बजाय यह और भी खराब हुई हैं। सरकारों को इस बात पर बिल्कुल भी शर्मिंदगी नहीं है कि प्रसव पीड़ा से महिलाएं सड़क पर या अस्पताल के बरामदों में दम तोड़ रही हैं। गलत इलाज से प्रसव में मां बच्चे के मरने की घटनाओं से अखबार भरे पड़े रहते हैं। सरकार ने इन्हें सुधारने की बजाय अस्पतालों को पीपीडी मोड़ पर देने की नीति से प्राइवेट अस्पतालों के लिए रास्ते खोले हैं। इस प्रकार अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए लोग आज वंचित
है।उत्तराखण्ड में प्राकृतिक और स्थानीय संसाधनों पर हकों की मांग आजादी के आंदालेन के समय से रही हैं। अफसोस कि सरकारी नीतियां लगातार लोगों को उसकी जल, जंगल और जमीन से अलग कर रही हैं। उत्तराखण्ड में जमीनों के कानून पहले से ही लचर थे, लेकिन 2018 में इस कानून पर भी संशोधन कर एक मुश्त पहाड़ को बेचने के इंतजाम सरकार ने कर दिये। आज हालत यह है कि पहाड़ का कोई हिस्सा ऐसा नहीं बचा जहां बेतहाशा जमीनें न बिक गई हों। उत्तराखण्ड के लोगों के पास मात्र चार प्रतिशत खेती की जमीन बची है। उत्तराखंड में लगातार बढ़ रही वन
दिनांक 17 अगस्त 2024 को उत्तराखंड राज्य निर्माण सेनानियों का एक सम्मेलन जय नंदन बैंकट हॉल कुसुमखेड़ा हल्द्वानी में आयोजित किया जा रहा है और लगातार हो रहे सख्त जंगलात कानूनों के लोोगें को अपने परंपरागत जंगल की आर्थिकी से दूर कर दिया है। वनों के विस्तार से लगातार गांव विस्थापित किये जा रहे हैं। सरकारों ने विकास के नाम पर अनियोजित नीतियां बनाकर इस संवेदनशील पहाड़ पर लोगों का रहना दूभर कर दिया है। बड़ी बांध परियोजना ने न केवल लोगों का विस्थापन किया है, बल्कि सुरंगों और भारी मशीनों के प्रयोग से यहां मानवजनित आपदाओं का रास्ता खोला है। अब ऑलबेदर रोड जैसी दैत्याकार योजनाओं के निर्माण में प्रयोग की गई तकनीक ने पूरे पहाड़ों को हिला दिया है। राज्य के हर हिस्से में आपदाओं से हजारों लोग अपनी जान गवां चुके हैं। विकास की भेंट चढ़ चुके सैकड़ों गांवों को अभी तक विस्थापित नहीं किया जा सका है। इनका परिणाम हम सिलक्यारा, हेलंग और दरकते जोशीमठ में देख चुके हैं पशुपालन, जंगली उपजों, फलोत्पादन, पर्यटन से आ निकलना था, वह कथित विकास की भेंट चढ़ गया है। उत्तराखंड में युवाओं के लिए रोजगार का सवाल सबसे बड़ा है। सरकार ने युवाओं के लिए रोजगार की नीति बनाने के बजाय उनके रोजगार के रास्ते बंद कर दिये हैं। जो सरकारी नौकरियां आ भी रही हैं उसमें पेपर लीक से लेकर भर्ती घोटाले तक जिस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, उसने युवाओं में निराशा और आक्रोश व्याप्त है। मूल निवास की कट ऑफ डेट ने युवाओं के लिए और भी अवसर कम कर दिये हैं। अपेक्षाकृत शांत माने जाने वाले उत्तराखण्ड में लगातार अपराध बढ़ रहे हैं। इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए राज्य के लोग अपने को अपने ही राज्य में ठगा महसूस कर रहे हैं। अपनी आकांक्षाओं के ध्वस्त होने से लोगों में भारीनाराजगी है।
महोदय इस सम्मेलन में हम आपका ध्यान राज्य आंदोलनकारी की समस्याओं की ओर आकृष्ट करते हुये उनका समाधान चाहते हैं।
1. राज्य आंदोलनकारी एवं उनके आश्रितों को मिलने वाले 10% क्षैतिज आरक्षण बिल को लम्बे समय बीत जाहिने के बावजूद महामहिम राज्यपाल द्वारा आज दिन तक मंजूरी नहीं दी गई है, जबकि सरकार अपनी उपलब्धियों में इसे प्रमुखता से प्रचारित प्रसारित कर रही है। जिसके कारण राज्य आंदोलनकारियों में भारी रोष है। हमारी मांग है कि 10% क्षैतिज आरक्षण बिल को राजभवन से तत्काल मंजूरी मिले।
2. राज्य आंदोलनकारियों एवं उनके आश्रितों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह सम्मान एवं सुविधाएं देने की मांग करते हैं।
3. उत्तराखंड राज्य सम्मान परिषद का पद लंबे समय से खाली होने के कारण सरकार एवं राज्य आंदोलनकारी के मध्य संवादहीनता के कारण उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है। हम मांग करते हैं कि राज्य सम्मान परिषद पर तत्काल नियुक्ति की जाए।
4. हम इस सम्मेन के माध्यम से समस्त राजनीतिक दलों से निवेदन करते हैं कि सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी पार्टियों में शामिल राज्य आंदोलनकारियों के लिए संगठन, नगर निकाय, नगर निगम, पंचायत, विधानसभा, लोकसभा में 10% आरक्षण राज्य आंदोलनकारी के लिए आरक्षित कर उनका सम्मान करने की कृपा करें।
5. राज्य आंदोलनकारियों के चिह्ननीकरण के मामले जिलाधिकारी कार्यालय में कई महिनों से लम्बित हैं। उनका अविलम्ब निस्तारण किया जाय तथा संबंधित आवेदक को भी अवगत कराया चिह्नीकरण के आवेदनों के लिए समय सीमा निर्धारित की जाय। जाए। हम यह भी मांग करते हैं कि वास्तविक पात्रों को एक और मौका देकर
6. हम यह भी मांग करते हैं कि जिन को नौकरियों के दौरान पेंशन मिलती है या उनकी मृत्यु के बाद उनके आश्रितों को सरकारी पेंशन मिलती है उन राज्य आंदोलनकारियों को मानदेय मिलने से वंचित किया गया है। हमारा निवेदन है कि उन रज्य आंदोलनकारी को उनका हक मानदेय उन्हें देना सुनिश्चित किया जाए।
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आन्दोलनकारी मंच, हल्द्वानी, जनपद नैनीताल, कार्यक्रम के संयोजक भुवन चन्द्र जोशी,सचिव पान सिंह सिजवाली,प्रचार सचिव नीरज तिवारी,प्रवक्ता डॉ. केदार पलडिया,कोषाध्यक्ष मनमोहन कनवाल, उपरोक्त कार्यक्रम के लिए संचालन समिति का गठन किया गया है जो इस प्रकार
केन्द्रीय संचालन समिति
धीरेंद्र प्रताप-9411583434
हेमंत बगड़वाल-9412087300
हुकम सिंह कुंवर-9870704120
प्रभात ध्यानी-9837758770
मोहन पाठक-9412087008
हरीश पनेरू-9412088377
राजेंद्र सिंह बिष्ट-7351453100
हेम पाठक-8979317644
लीला बोरा-9719424826
प्रकाश उत्तराखंडी-8273091112
डॉ. डी के जोशी-9412306658
सुशील भट्ट-9927267283
कैलाश शाह-9837738888
डॉ. बालम सिंह बिष्ट-9837386211
इंद्र सिंह मनराल-9411597877
डॉ. निशांत पपनै-9837093221
उमेश बेलवाल-9411161670
बृजमोहन सिजवाली-9411378081
पान सिंह नेगी-9411007853
तारा सिंह बिष्ट-9012795983
पी एस रौतेला-9411199033
हीरा सिंह बिष्ट-7533927410
रईस अहमद-9720245353
अवतार सिंह बिस्ट-8393021000
योगेश सती-9927700738
जगमोहन बगड़वाल-9837626941
गणेश सिंह बिष्ट-7505561681