उत्तराखंड करीब 10 हजार लोगों की मौत


सड़क परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, ड्राइवरों के अपने वाहनों पर नियंत्रण खो देने के कारण दुर्घटनाओं की संख्या 2022 में पांच प्रतिशत से अधिक बढ़ गई। ऐसे हादसों में 9,862 लोगों की जान चली गई। 2023 के आंकड़े अगले सप्ताह जारी किए जाने के आसार हैं और यह संख्या दस प्रतिशत तक बढ़ चुकी है।
हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट
ड्राइवर पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं
मंत्रालय दुर्घटनाओं के इन मामलों को रन आफ द रोड श्रेणी में रखता है यानी किसी वाहन का अनियंत्रित होकर हादसे का शिकार होना। इसमें वाहनों का पहाड़ी इलाकों में खाई में गिरना भी शामिल है, जैसा कि उत्तराखंड में हुआ। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ अनुराग कुलश्रेष्ठ कहते हैं कि यह दुर्घटना दुखद है, लेकिन इसके कारण वही हैं जो पहले भी जाने-समझे जा चुके हैं। हमारे ज्यादातर ड्राइवर पूरी तरह प्रशिक्षित ही नहीं हैं और सुरक्षा के जो सामान्य मानक हैं, उन पर ध्यान नहीं दिया जाता।
ओवरलोडिंग से बढ़ जाता है जोखिम
- अगर उत्तराखंड में दुर्घटना की शिकार हुई बस में क्षमता से अधिक यात्री थे तो स्पष्ट है कि इससे बस को चलाने में संतुलन और उसके संवेग पर असर पड़ेगा। हर बस सिटिंग कैपेसिटी यानी उसमें उपलब्ध सीटों को ध्यान में रखकर डिजाइन की जाती है। जितनी अधिक ओवरलोडिंग होगी, उतना ही जोखिम अधिक होगा।
- 2022 में बसों से जुड़ी पांच हजार से अधिक दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1798 लोगों की जान चली गई। अगर वाहनों की श्रेणी के आधार पर दुर्घटनाओं को देखा जाए तो बसों का प्रतिशत 40.9 है और उनमें जान गंवाने वालों का प्रतिशत 28.7।
- उत्तराखंड की दुर्घटना के संदर्भ में शुरुआती तौर पर यह सामने आ रहा है कि चालक को झपकी आ जाने के कारण उसने अपने वाहन से नियंत्रण खो दिया। यह पहलू नया नहीं है, लेकिन इससे निपटने के उपाय नहीं हो पा रहे हैं-न तो तकनीकी स्तर पर और न ही मनोवैज्ञानिक रूप से।
मनोवैज्ञानिक समस्या से जूझते
अनुराग कुलश्रेष्ठ के मुताबिक, सड़क सुरक्षा के लिए काम कर रहे उनके संगठन ने पिछले साल गुरुग्राम में सौ से अधिक ड्राइवरों के स्वास्थ्य और उनके मनोवैज्ञानिक स्तर की जांच की थी तो उनमें से आधे से अधिक ब्लड प्रेशर अथवा किसी मनोवैज्ञानिक समस्या से जूझते पाए गए थे। उनके लिए काम की स्थितियां ही पेशेवर रूप से उपयुक्त नहीं हैं।
ऐसे में उनके लिए उत्तराखंड जैसी जोखिम वाली जगहों पर वाहनों को चलाना स्वाभाविक रूप से खतरनाक होगा। समस्या यह भी है कि ऐसे लोग भी वाहन यहां तक कि व्यावसायिक वाहन चला रहे हैं जिनके पास वैध लाइसेंस नहीं है। लगभग 12 प्रतिशत दुर्घटनाएं ऐसे वाहन चालकों के कारण ही होती हैं।
हादसा अल्मोड़ा में कूपी के पास हुआ। अल्मोड़ा के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी विनीत पाल ने बताया कि घायलों में से चार की हालत गंभीर है। इनमें से तीन को विमान के जरिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), ऋषिकेश भेजा गया है। एक को सुशीला तिवारी अस्पताल, हल्द्वानी भेजा गया है। घटना के वक्त 43 सीट वाली बस में करीब 60 लोग सवार थे। बस में क्षमता से अधिक यात्रियों का होना दुर्घटना का कारण हो सकता है। शुरुआती जांच में पता चला है कि बस की हालत भी बेहद खराब थी। कुमाऊं मंडल के आयुक्त दीपक रावत ने बताया कि बस नदी से करीब 10 फुट पहले पेड़ में फंसकर रुक गई। खाई में गिरने के दौरान झटके से कई यात्री खिड़कियों से बाहर जा गिरे।
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बस किनाथ से रामनगर जा रही थी। दिवाली की छुट्टी के बाद सोमवार को पहला वर्किंग डे था, इसलिए बस ओवरलोडिड थी। बस में ज्यादातर स्थानीय लोग सवार थे। पुलिस ने बताया कि बस गढ़वाल मोटर्स ऑनर्स यूनियन लिमिटेड की थी। उधर, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख और घायलों को एक-एक लाख रुपए की सहायता राशि देने का ऐलान किया है। आयुक्त कुमाऊं मंडल को घटना की मजिस्ट्रेट जांच के निर्देश दिए। पौड़ी और अल्मोड़ा के एआरटीओ प्रवर्तन को सस्पेंड कर दिया गया है। उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी सहित तमाम बड़े नेताओं ने हादसे पर शोक व्यक्त किया है।
सीएम धामी का विरोध
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बस हादसे के करीब नौ घंटे बाद रामनगर के रामदत्त जोशी राजकीय संयुक्त चिकित्सालय पहुंचे। वहां उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा। मरीजों के तीमारदारों ने स्थानीय युवकों के साथ मिलकर सीएम का काफिला रोक लिया और गाड़ी के आगे बैठ गए। पुलिस ने किसी तरह मुख्यमंत्री के काफिले को अस्पताल से बाहर निकाला। घायलों के परिजनों और स्थानीय लोगों का आरोप है की हादसे के कई घंटे बाद तक स्थानीय प्रशासन घायलों को रेस्क्यू करने में नाकाम रहा। इसके बाद उनके इलाज की भी समुचित व्यवस्था नहीं की गई।

