रुद्रपुर जब पहाड़ की मिट्टी में जन्मी कोई बेटी अपनी कला से न सिर्फ घर-आंगन बल्कि देश की राजधानी तक अपने राज्य की खुशबू पहुँचा दे, तो वह सिर्फ कलाकार नहीं, बल्कि संस्कृति की दूत बन जाती है। अल्मोड़ा की दीपा मटेला आज ऐसा ही एक नाम हैं, जो “दीपा पहाड़ी ब्लॉग्स” के माध्यम से 69 हज़ार से अधिक लोगों के दिलों में अपनी जगह बना चुकी हैं।



दीपा मटेला केवल एक यूट्यूबर नहीं, बल्कि उत्तराखंड की पारंपरिक ऐपण कला की सजीव प्रतिनिधि हैं। उनके हाथों की लकीरों में केवल रंग नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही पर्वतीय परंपरा, लोकमान्यताएं और आस्था सांस लेती है। उन्होंने बर्तनों, कपड़ों और सजावटी वस्तुओं पर ऐपण के अद्भुत नमूने उकेरकर यह साबित किया है कि हमारी संस्कृति किसी संग्रहालय में कैद होने के लिए नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जीने के लिए बनी है।
10 अगस्त 2025 को दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में होने जा रहे भेंट-घाट एवं सांस्कृतिक संध्या – कनेक्शन 2025 में उन्हें “विशिष्ट अतिथि” के रूप में आमंत्रित किया गया है। यह केवल उनका व्यक्तिगत सम्मान नहीं, बल्कि हर उस उत्तराखंडी का सम्मान है, जो अपनी जड़ों से जुड़ा रहकर आधुनिक मंचों पर अपनी पहचान बना रहा है।
दिल्ली में यह कार्यक्रम केवल एक सांस्कृतिक संध्या नहीं, बल्कि उत्तराखंड रीकनेक्ट का प्रतीक है – “आओ जुड़ें अपनी देवभूमि से, जहाँ दिल भी पहाड़ी है और संस्कृति भी।” यहाँ पारंपरिक लोकगीतों की गूंज होगी, ऐपण की लकीरें होंगी, और पहाड़ की खुशबू दिल्ली की हवा में घुल जाएगी।
ऐसे दौर में जब बाज़ार की चकाचौंध में हमारी लोक कलाएं खोने लगी हैं, दीपा मटेला जैसे कलाकार हमें याद दिलाते हैं कि संस्कृति सिर्फ स्मृति नहीं, बल्कि वर्तमान की सांस है। वह यह भी साबित करती हैं कि सोशल मीडिया केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी सशक्त हथियार हो सकता है – अगर कोई इसे ईमानदारी से इस्तेमाल करे।
दीपा का यह सफर हर युवा कलाकार के लिए प्रेरणा है – चाहे आप पहाड़ के किसी छोटे गाँव से हों, आपकी कला और मेहनत आपको सीमाओं से परे ले जा सकती है।
कह सकते हैं,
“दीपा सिर्फ ऐपण नहीं बनातीं, वह हर रेखा में उत्तराखंड की आत्मा उकेरती हैं।”
और इस आत्मा को 10 अगस्त को दिल्ली महसूस करेगी।

