
मोदी-शाह की कार्यशैली समझिए


अब महाराष्ट्र में भी बीजेपी को 72 घंटे से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन अभी तक मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति नहीं बन पाई है। इसी वजह से ऐसे कयास लगने लगे हैं कि कहीं देवेंद्र फडणवीस की छुट्टी तो नहीं हो जाएगी? पार्टी नेता इस बारे में कुछ भी बोलने से बच रहे हैं, लेकिन अटकलों का बाजार गर्म है। वैसे अगर मोदी-शाह की कार्यशैली को समझने की कोशिश की जाए तो हर बार किसी नए चेहरे पर दांव लगाने की कोशिश रहती है, पूरा प्रयास होता है कि भविष्य के लिए लीडरशिप को तैयार किया जाए।
हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट
अगर हाल के चुनावों की बात करें तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडिशा कुछ ऐसे प्रमुख राज्य हैं जहां पर बीजेपी को अपना मुख्यमंत्री चुनने में जरूरत से ज्यादा वक्त लगा और इन सभी राज्यों में या तो बीजेपी ने सरप्राइज किया या फिर किसी नए चेहरे पर अपना दांव चला।
ओडिशा में क्या हुआ?
बात अगर सबसे पहले ओडिशा की हो तो वहां पर पहली बार बीजेपी ने अपनी सरकार बनाई थी। नवीन पटनायक के साम्राज्य को कई सालों बाद किसी पार्टी ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। लेकिन उस राज्य में बीजेपी को अपना मुख्यमंत्री चुनने में आठ दिनों का वक्त लग गया। पार्टी ने माझी आदिवासी समुदाय से आने वाले मोहन माझी को अपना मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन बड़ी बात यह रही रेस में लगातार धर्मेंद्र प्रधान और मनमोहन संबल जैसे कद्दावर नेता बने हुए थे।
राजस्थान में क्या हुआ?
राजस्थान की बात भी होनी चाहिए, वहां तो पार्टी को अपना सीएम चुनने में 9 दिन लग गए। इसका सबसे बड़ा कारण यह था क्योंकि वहां वसुंधरा राजे जैसी दिग्गज नेता मौजूद थीं जो पहले भी राजस्थान की कमान संभाल चुकी थीं। ऐसे में वे मानकर चल रही थीं कि एक बार फिर जब पार्टी को जीत मिली है तो ताजपोशी भी उन्ही की कर दी जाएगी। इसी तरह दिग्गज नेता किरोड़ी लाल मीड़ा को भी महसूस हो रहा था कि इस बार राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री वे बन सकते हैं। लेकिन हुआ एकदम उलट और नौ दिनों के वक्त के बाद भाजपा ने भजन लाल शर्मा को अपना मुख्यमंत्री बना दिया।
मध्य प्रदेश में क्या हुआ?
मध्य प्रदेश की बात करते हैं तो वहां तो जीत का सेहरा शिवराज सिंह चौहान के सिर ही बांधा गया था। लेकिन पार्टी को महसूस हुआ कि अब लीडरशिप बदलने की जरूरत है, ऐसे में यादव समुदाय से आने वाले मोहन यादव को सीएम घोषित कर दिया। यहां भी पार्टी को 72 घंटे से ज्यादा का वक्त लग गया था।
छत्तीसगढ़ में क्या हुआ?
अगर पिछले साल हुए छत्तीसगढ़ चुनाव की बात करें तो वहां बीजेपी ने सभी को चौकाते हुए एक अप्रत्याशित जीत दर्ज की थी। तमाम एग्जिट पोल कांग्रेस की वापसी दिखा रहे थे, लेकिन ऐसे समीकरण साधे गए कि हारी हुई बाजी पलट दी। छत्तीसगढ़ को 15 सालों तक रमन सिंह के रूप में एक मुख्यमंत्री मिला था, लेकिन बीजेपी ने अपनी अप्रत्याशित जीत के बाद सभी को हैरान करते हुए आदिवासी समुदाय से आने वाले विष्णु देव साय को सीएम कुर्सी सौप दी। इस राज्य में भी बीजेपी को अपना मुख्यमंत्री चुनने में पूरा एक हफ्ता लग गया था।
2017 में यूपी में क्या हुआ?
अगर एक बड़े राज्य की बात करें तो 2017 में जब बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाई थी, तब पार्टी को अपना सीएम चुनने में 9 दिन का वक्त लग गया था। बड़ी बात यह रही तब रेस में केशव प्रसाद मौर्य, मनोज सिन्हा जैसे कई बड़े नाम चल रहे थे। लेकिन सरप्राइज देते हुए पार्टी ने हिंदू पोस्टर बॉय योगी आदित्यनाथ को अपना मुख्यमंत्री घोषित कर दिया।
जहां लगा कम समय, वहां कौन बनता सीएम?
यह तो उन राज्यों की सूची थी जहां बीजेपी को 72 घंटे से ज्यादा का वक्त लगा, लेकिन जिस राज्य में पार्टी ने समय से पहले अपना मुख्यमंत्री का चयन किया, वहां या तो चेहरे रिपीट हो जाते हैं या फिर उम्मीद के मुताबिक किसी संभावित नाम की घोषणा की जाती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हरियाणा राज्य है जहां पर 2019 के चुनाव में बीजेपी ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की थी, तब पार्टी ने काफी कम समय में मनोहर लाल खट्टर को ही एक बार फिर हरियाणा की बागडोर सौंप दी थी।
फडणवीस के अलावा और कौन उम्मीदवार?
गुजरात में भी जब 2022 में विधानसभा चुनाव हुए, पार्टी ने 48 घंटे से पहले ही भूपेंद्र यादव की फिर ताजपोशी कर दी थी। ऐसे में बीजेपी का यह ट्रेंड देवेंद्र फडणवीस की नींद जरूर उड़ा सकता है। भूलना तो यह भी नहीं चाहिए कि भाजपा के अंदर भी महाराष्ट्र में कई दूसरे सीएम उम्मीदवार दिखाई दे रहे हैं। बात चाहे विनोद तावडे की हो, पंकजा मुंडे की हो, चंद्रशेखर की हो या फिर मुरलीधर मोहोल की, सामाजिक और जातीय समीकरण के लिहाज से उनके उम्मीदवारी भी काफी मजबूत दिखाई देती है। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
