इन दिनों राहुल गांधी अमेरिका में अपने आरक्षण खत्म करने की टाइमलाइन बताने को लेकर विवादों में हैं। वैसे तो सिख, आरएसएस समते कई सारे मसलों पर ऐसी बातें कर दी हैं कि भारतीय जनता पार्टी का पारा आसमान पर चढ़ा हुआ है। लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के बाद राहुल गांधी का ये पहला अमेरिकी दौरा है। राहुल जब भी विदेश जाते हैं तो देश में विवादों की आंधी आ जाती है। इस बार भी यही हो रहा है। राहुल गांधी के जिन बयानों को लेकर देश में हंगामा हो रहा है उसके केंद्र में धर्म, चुनावी प्रक्रिया और आरक्षण है। वही आरक्षण कार्ड जिसको लेकर दावा है कि 2024 के चुनाव में उसने प्रधानमंत्री मोदी को लगातार तीसरी बार बहुमत पाने से रोक दिया।
जाति न पूछो राहुल की
देश की राजनीति में कास्ट पॉलिटिक्स का दबदबा एक बार फिर से बढ़ने लगा है। लोकसभा चुनाव के वक्त विपक्ष ने एक नैरेटिव चलाया था कि बीजेपी सत्ता में आई तो संविधान बदल कर आरक्षण खत्म कर देगी, और ये बात चुनावी मुद्दा बन गई। विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार दोहरा रहे हैं कि संविधान और आरक्षण व्यवस्था की वो हर कीमत पर रक्षा करेंगे। एक तरफ जहां कांग्रेस नेता राहुल गांधी जाति की राजनीति के सहारे बीजेपी से पार पाने की जुगत में लगे हैं। वहीं चुनाव समाप्त होने के बाद जाति और आरक्षण का मुद्दा संसद में भी गूंजता नजर आया। संसद में कांग्रेस के सांसद और विपक्ष के नेता राहुल गांधी की जाति पर घमासान उस वक्त देखने को मिला जब सदन में बीजेपी के सांसद अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी की जाति को लेकर सवाल किया था।
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आरक्षण खत्म करने की डेडलाइन राहुल ने बताई
पूरे चुनाव में राहुल गांधी ने आरक्षण को मुद्दा बनाया। हर चुनावी रैली में संविधान की कॉपी लेकर भाषण दिया। यहां तक की वो सांसद के तौर पर शपथ लेने गए तो उस वक्त भी उनके हाथों में संविधान की कॉपी नजर आई। उसी संविधान को खत्म करने को लेकर वॉशिंगटन डीसी के जार्ज टाउन यूनिवर्सिटी में जब राहुल से पूछा गया कि भारत में आरक्षण कब तक चलेगा। उसके जवाब में राहुल ने जो बातें कही उसने हिंदुस्तान में बड़ा बखेरा खड़ा कर दिया। राहुल ने कहा कि हम आरक्षण समाप्त करने के बारे में तब सोचेंगे जब भारत में सब एक समान होंगे। भारत में अभी सब समान नहीं हैं। आरक्षण ही वो मुद्दा है जिसे कांग्रेस को 99 तक पहुंचाने का श्रेय दिया जाता है। लेकिन उन्होंने जब इसके खत्म करने के फैसले की शर्त का जिक्र किया तो मायावती से लेकर बीजेपी ने उन पर वही आरोप लगाने शुरू कर दिए।
जनेऊ पहनकर अपनी जड़े नेहरू परिवार से जोड़ते
राहुल गांधी की पारिवारिक जड़े और उन्हें कश्मीर का कौल ब्राह्मण कहा जा सकता है या उन्हें पारसी कहा जाए इसको लेकर मीडिया या यूं कहें कि सोशल मीडिया में विमर्श लगातार चलता रहता है। राजीव गांधी पारसी पिता फिरोज गांधी की संतान हैं जो सेक्युलर मूल्यों पर जीते थे। नेहरू परिवार में जाति और धर्म का सवाल दो पैमानों पर मापा जाता है। नेहरू, फिरोज और सोनिया के पैमाने पर राहुल की जाति का पता लगाया जा सकता है। फिरोज के पैमाने पर राहुल पारसी हो सकते हैं। भारतीय परंपरा में आमतौर पर जाति पिता के नाम से निर्धारित की जाती है। लेकिन सवाल उठता है कि राहुल गांधी की जाति क्या है? राहुल गांधी कोर्ट के ऊपर जनेऊ पहनकर अपनी जड़े नेहरू परिवार से जोड़ते हैं तो इसके पीछे क्या वजह है?
पंडित नेहरू का जो गोत्र वही राहुल का भी कैसे?
राहुल गांधी के नाना यानी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू अपने नाम के साथ पंडित लगाते थे। मौका पड़ने पर अपना जनेऊ भी दिखाते थे। इंदिरा हो या राजीव खुद को ब्राह्मण ही मानते हैं। राजस्थान चुनाव के दौरान गांधी-नेहरू परिवार के पुरोहित से जब ये पूछा गया था कि उनके दादा फिरोज गांधी तो पारसी थे, तो क्या दादा की जगह दादी इंदिरा गांधी का गोत्र हो सकता है। इस पर पुरोहित ने बताया कि पारसी समुदाय में पत्नी को हिंदू धर्म की तरह पति का गोत्र नहीं दिया जाता है। ऐसे में पीहर के गोत्र का इस्तेमाल हो सकता है। इसी वजह से इंदिरा गांधी ने भी पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू का गोत्र कौल दत्तात्रेय ही रखा, लेकिन गांधी सरनेम और खानदान की सियासी हैसियत के चलते इस परिवार के सामने इससे पहले खुद का गोत्र बताने की राजनीतिक मजबूरी कभी नहीं आई थी। राजस्थान में विधानसभा चुनाव में खुद के हिंदू गोत्र का प्रमाण दे दिया था। गांधी-नेहरू परिवार के पुरोहित के जरिए राहुल ने अपना गोत्र सार्वजनिक करवा दिया था। राहुल दत्तात्रेय कौल बाह्मण हैं।
राजीव-संजय के पिता फिरोज के कब्र की कहानी
ये तो आप सभी को पता है कि राहुल गांधी राजवी और सोनिया की संतान हैं। राजीव और उनके भाई संजय फिरोज और इंदिरा गांधी की संतान हैं। फिरोज का जन्म एक पारसी परिवार में 12 सितंबर 1912 को हुआ था। उनके पिता का नाम जहांगीर फरदून घांडी था। हालांकि किताबें कहती हैं कि घांडी फिरोज का कुलनाम या पारसी धर्म में जाति का नाम था। जिसे उन्होंने आजादी की लड़ाई में कूदने के बाद गांधीजी से प्रभावित होने के कारण बदलकर गांधी कर लिया। फिरोज गांधी ने 8 सितंबर 1960 का निधन दिल्ली के धन वेलिंगटन अस्पताल में सुबह के वक्त अंतिम सांस ली थी। इसके बाद उनका अंतिम संस्कार किया गया। बर्टिल फाक की किताब फ़िरोज़- द फॉरगॉटेन गांधी के अनुसार फिरोज के निधन के बाद कुछ पारसी परंपराओं को भी फॉलो किया गया था, लेकिन अंतिम संस्कार हिंदू तरीके से किया गया था। फिरोज गांधी के अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थियों को संगम में प्रवाहित भी की गई थी। जबकि कुछ अस्थियों को दफना दिया गया। जहां इन अस्थियों को दफनाया गया, वहां ही एक कब्र भी बनाई गई।
जर्जर हो चुकी कब्र 1980 में मेनका गांधी और उसके बाद सोनिया गांधी यहां आई थीं। उसके बाद परिवार का कोई सदस्य इस कब्रिस्तान में नहीं आया। इस कब्रिस्तान की देखभाल एक चौकीदार करता है। कब्रिस्तान में कुआं और एक मकान के अलावा चौकीदार के रहने के लिए दो कमरे भी बने हुए हैं। देखभाल के अभाव में फिरोज गांधी सहित उनके पूर्वजों की कब्र जर्जर हो चुकी हैं। प्रयागराज में पारसी मजार की देख-रेख करने वाले बाबूलाल ने साल 2019 में एक निजी मीडिया समूह से बात करते हुए कहा था कि हुल गांधी इस मजार पर आए थे और 10 साल पहले उन्होंने फूल-माला भी अर्पित की थी। 2019 में उन्होंने कहा था कि इस घटना को 10 साल हो चुके हैं।