
बजट सत्र के दौरान विधानसभा के पटल पर रखी गई वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार दवा स्टोरों और अस्पतालों में दवाई की जांच करने पर कई खामियां सामने आई हैं।


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
नियमों के तहत अस्पतालों के लिए जो दवाई खरीदी जाती है वह निर्माण से तीन महीने से अधिक पुरानी नहीं होनी चाहिए। जबकि राज्य में खरीदी गई 2359 दवाओं के बैच में से 439 तीन महीने से अधिक पुराने थे। जबकि कई दवाएं एक्सपायरी अवधि के बाद भी मरीजों को वितरित की जा रही थी।
रिपोर्ट के अनुसार स्टोर में दवाओं को मानकों के तहत नहीं रखा पाया गया। कई दवाएं आलमारी और फ्रिज की बजाए जमीन या फर्श पर रखी पाई गई। बड़ी संख्या में स्टोर ऐसे पाए गए जहां पर एसी की सुविधा ही नहीं थी। जबकि कई स्थानों पर दवाओं के लिए डीप फ्रीजर नहीं थे तो कई स्थानों पर दवाओं के लिए उचित तापमान मेंटेन नहीं किया जा रहा था।
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत कहते हैं कि कैग की जो रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी गई है वह काफी पुराने समय की है। अब दवा स्टोर और अस्पतालों में दवाई की आपूर्ति मानकों के अनुसार की जा रही है। अधिकारियों को इस संदर्भ में किसी भी तरह की कोताही न बरतने के निर्देश दिए गए हैं।
आयुर्वेद विभाग ने बांट दी एक्सपायरी दवाएं
कैग की रिपोर्ट के अनुसार जांच में पाया गया कि आयुर्वेद विभाग ने कई जिलों में सालों पुरानी और एक्सपायर्ड दवाएं मरीजों को बांट दी। अस्पतालों में कई सालों पुरानी दवाएं पाई गई। इसके साथ ही कैग ने आयुर्वेद विभाग की ऋषिकुल फार्मेसी का कम उपयोग किए जाने पर भी सवाल उठाए। सरकारी फार्मेसी होने के बावजूद अन्य फार्मेसी से दवाएं खरीदी गई।
जेनेरिक के बजाय ब्रांडेड दवा लिख रहे डॉक्टर
कैग ने अस्पतालों में मरीजों को जेनेरिक की बजाए ब्रांडेड दवा लिखे जाने पर भी सवाल उठाए हैं। इसके लिए सरकार की ओर से सख्त दिशा निर्देश को कारण माना गया है। अस्पतालों में मरीजों को ब्रांडेड दवा लिखे जाने की वजह से मरीजों को अधिक कीमत की दवाएं खरीदने को मजबूर होना पड़ता है।
