संपादकीय लेख: नशे की दलदल में डूबता रुद्रपुर – जागो, अभी नहीं तो कभी नहीं!

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संपादकीय लेख: नशे की दलदल में डूबता रुद्रपुर – जागो, अभी नहीं तो कभी नहीं!

रुद्रपुर, उधम सिंह नगर – उत्तराखंड के तराई क्षेत्र का यह महत्वपूर्ण नगर कभी कृषि, औद्योगिक प्रगति और सामाजिक सौहार्द के लिए जाना जाता था। परंतु आज यह शहर धीरे-धीरे एक ऐसी अंधेरी खाई की ओर बढ़ रहा है, जहां से वापसी कठिन होती जा रही है। हम बात कर रहे हैं – नशे की बढ़ती लत की, जो अब रुद्रपुर की गलियों, स्कूलों, कॉलेजों, और यहां तक कि घरेलू दीवारों तक अपनी जड़ें जमा चुकी है।

नशे की चपेट में युवा पीढ़ी

सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इस लत की गिरफ्त में हमारी युवा पीढ़ी सबसे पहले आ रही है। 14 से 28 वर्ष के युवाओं में स्मैक, चरस, अफीम, सिंथेटिक ड्रग्स, और शराब की खपत चिंताजनक स्तर तक पहुंच गई है। स्कूलों-कॉलेजों के आसपास सक्रिय नशा बेचने वाले गिरोह खुलेआम बच्चों को जाल में फंसा रहे हैं। ‘पहले मुफ्त में दो, फिर जिंदगी भर लूटो’ – यह रणनीति अब कोई काल्पनिक डर नहीं, बल्कि रुद्रपुर का वास्तविक सच बन गई है।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह

जिम्मेदार कौन?

इस भयावह स्थिति के लिए सिर्फ युवाओं को दोष देना आसान होगा, लेकिन असली जिम्मेदार हैं –

  1. प्रशासन की लापरवाही: पुलिस, प्रशासन और आबकारी विभाग की निष्क्रियता से नशे का अवैध कारोबार फल-फूल रहा है। कई मामलों में स्थानीय पुलिस पर मिलीभगत के आरोप भी लगे हैं।
  2. राजनीतिक संरक्षण: राजनीतिक आकाओं की छत्रछाया में पलते माफिया नेटवर्क को कोई छू नहीं सकता। जब तक नेताओं की संलिप्तता नहीं रोकी जाएगी, तब तक नशा मुक्त रुद्रपुर एक सपना ही रहेगा।
  3. बेरोजगारी और सामाजिक दिशाहीनता: जब युवा के पास ना रोजगार है, ना खेल के मैदान, ना सांस्कृतिक गतिविधियों की प्रेरणा, तब नशा उसे फौरन आकर्षित करता है।

समाज का मौन – सबसे बड़ा अपराध

नशे के खिलाफ समाज की चुप्पी सबसे दुखद पहलू है। बहुत से अभिभावक अपने बच्चों की नशे की आदत को छिपाने में लगे हैं। शिक्षक और सामाजिक संगठन केवल औपचारिकता निभा रहे हैं। क्या हम भूल गए हैं कि नशे की मार सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, पूरे परिवार और समाज पर पड़ती है?

क्या करें?

  1. जनजागरण अभियान: हर वार्ड, मोहल्ले और स्कूल में नशा विरोधी अभियान चलाया जाए।
  2. सक्रिय पुलिसिंग: नशा माफिया के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाए, विशेष टास्क फोर्स गठित हो।
  3. युवाओं को विकल्प दें: स्पोर्ट्स, आर्ट्स, स्किल डेवलपमेंट जैसे सकारात्मक मंच विकसित किए जाएं।
  4. रिहैबिलिटेशन केंद्र: नशे के शिकार युवाओं के लिए मुफ़्त पुनर्वास केंद्र खोले जाएं।
  5. राजनीतिक इच्छाशक्ति: नेताओं को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस गंभीर संकट पर ठोस निर्णय लेना होगा।

रुद्रपुर नशे का केंद्र नहीं, बदलाव की मिसाल बन सकता है – अगर हम सभी मिलकर प्रयास करें। माता-पिता, शिक्षक, पुलिस, नेता, पत्रकार, और सबसे महत्वपूर्ण – खुद युवा अगर इस जहर के खिलाफ आवाज उठाएं, तो रुद्रपुर को फिर से उसकी पहचान मिल सकती है।

समय कम है, नशे का जाल गहराता जा रहा है। यदि आज नहीं चेते, तो आने वाली पीढ़ियों को अंधकार में ढकेलने के हम स्वयं अपराधी होंगे।

– अवतार सिंह बिष्ट, विशेष संपादकीय, शैल ग्लोबल टाइम्स / हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

रुद्रपुर, उधम सिंह नगर, उत्तराखंड में नशे की बढ़ती समस्या एक गंभीर सामाजिक संकट बन चुकी है। खासकर युवाओं में स्मैक, चरस, गांजा, सिंथेटिक ड्रग्स और शराब की लत तेजी से फैल रही है। बेरोजगारी, सामाजिक दिशाहीनता और कमजोर पारिवारिक संरचना इसके प्रमुख कारण हैं। स्कूल-कॉलेजों के आसपास ड्रग्स का धंधा बेरोकटोक चल रहा है, जबकि प्रशासन और पुलिस की कार्रवाई सीमित और अक्सर दिखावटी रह जाती है।

हाल ही में 434 किलोग्राम गांजा की जब्ती और काशीपुर में नशा तस्कर की गिरफ्तारी से यह स्पष्ट होता है कि तराई क्षेत्र नशा तस्करों के लिए सुरक्षित अड्डा बनता जा रहा है। हालांकि कुछ पुनर्वास केंद्र, जैसे फुटेला हॉस्पिटल और नवचेतना संस्थान, नशा मुक्ति में योगदान दे रहे हैं, लेकिन यह प्रयास नाकाफी हैं। धार्मिक और सामाजिक नेतृत्व द्वारा जागरूकता अभियान सराहनीय हैं, परंतु व्यापक जनसहयोग की आवश्यकता है।

यदि अब भी समाज, प्रशासन और राजनीतिक नेतृत्व ने मिलकर ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ी नशे की दलदल में पूरी तरह डूब सकती है। रुद्रपुर को बचाने के लिए यह अंतिम चेतावनी है – जागो, अब नहीं तो कभी नहीं।



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