
उत्तराखंड, जो कभी अपने गुणवत्तापूर्ण सरकारी विद्यालयों और शैक्षिक मूल्यों के लिए जाना जाता था, आज प्राइवेट स्कूलों की बेलगाम लूट का शिकार बन चुका है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाएं आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं। उत्तराखंड के शहरों और कस्बों में निजी स्कूलों की फीस लाखों में पहुंच गई है, और किताबों–ड्रेस का खर्च मध्यमवर्गीय परिवारों के बजट को तहस-नहस कर रहा है।


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता]
हाल ही में एक वायरल वीडियो ने इस सच्चाई को और उजागर कर दिया है, जिसमें एक अभिभावक पांचवी कक्षा की किताबों का सेट दिखाते हुए पूछता है—6905 रुपये की किताबों में आखिर ऐसा क्या है? क्या ये किताबें चांदी से मढ़ी गई हैं? उसका व्यंग्यपूर्ण सवाल केवल एक स्कूल पर नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान है।
‘एक देश, एक पाठ्यक्रम’ कहां गया?
नई शिक्षा नीति में वादा किया गया था कि पूरे देश में समान पाठ्यक्रम और सस्ती, सुलभ शिक्षा होगी। लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि उत्तराखंड में अधिकांश प्राइवेट स्कूल मनमाने तरीके से पब्लिकेशन तय करते हैं, किताबें और ड्रेस केवल चुनिंदा दुकानों से खरीदने का दबाव बनाते हैं, और अभिभावकों को विकल्प का कोई अधिकार नहीं देते। यह खुलेआम ‘एजुकेशन माफिया’ का खेल है—जिसमें स्कूल, पब्लिशर और दुकानदारों का गठजोड़ शामिल है।
सरकारी स्कूलों की बदहाली से प्राइवेट स्कूलों की बल्ले-बल्ले
उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों की स्थिति चिंताजनक है। शिक्षक-भर्ती की प्रक्रिया धीमी है, मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, और गुणवत्ता सुधार के नाम पर केवल कागजी घोषणाएं होती हैं। यही कारण है कि मजबूरी में अभिभावक प्राइवेट स्कूलों की ओर भागते हैं—चाहे उनकी जेब में दम हो या नहीं। इसका फायदा उठा कर प्राइवेट संस्थान शिक्षा को व्यवसाय की तरह चला रहे हैं।
सरकार के लिए आईना
उत्तराखंड सरकार को यह वीडियो केवल एक वायरल ट्रेंड की तरह नहीं, एक चेतावनी के रूप में देखना चाहिए। क्या शिक्षा केवल अमीरों का अधिकार बन जाएगी? क्या सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से बच सकती है? यदि समय रहते सख्त नियम नहीं बनाए गए, फीस नियंत्रण कानून लागू नहीं हुआ, और सरकारी स्कूलों का स्तर नहीं सुधारा गया—तो आने वाले समय में शिक्षा का अधिकार केवल कागजों में ही सीमित रह जाएगा।
उत्तराखंड की जनता सरकार से सवाल करती है—कब तक आप आंखें मूंदे बैठे रहेंगे? अब वक्त आ गया है कि सरकार निजी स्कूलों की लूट पर लगाम लगाए, पारदर्शी और समान शिक्षा व्यवस्था लागू करे और अपने नागरिकों को बुनियादी शिक्षा उपलब्ध कराने की संवैधानिक जिम्मेदारी निभाए।
