
समस्याओं के समाधान के लिए इच्छाशक्ति पर जोर


सवाल है कि गंभीर समस्याओं का हल क्या अगंभीर या टालमटोल के अंदाज में निकल सकता है! इस बार ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में वैश्विक स्तर पर चुनौती के रूप खड़ी परिस्थितियों पर चर्चा जरूर हुई, घोषणापत्र में नई राह निकालने को लेकर सामूहिक रूप से उम्मीद भी जताई गई। मगर समस्याओं का समाधान करने के लिए उन पर अमल की राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत होती है।
हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट
गौरतलब है कि विश्व की बीस प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के नेताओं ने सोमवार को जारी एक संयुक्त घोषणापत्र में भुखमरी की चुनौती से पार पाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौते की जरूरत पर जोर दिया। साथ ही युद्धग्रस्त क्षेत्र गाजा में ज्यादा मदद पहुंचाने के अलावा पश्चिम एशिया के साथ-साथ यूक्रेन में भी युद्ध और शत्रुता को समाप्त करने का आह्वान किया गया। रियो डी जेनेरियो में जारी संयुक्त बयान को जी20 के ज्यादातर सदस्यों का समर्थन मिला। मगर अंतरराष्ट्रीय हित का सवाल होने के बावजूद बयान को सर्वसम्मति नहीं मिली। इसमें भविष्य में अरबपतियों पर वैश्विक कर लगाने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मौजूदा पांच स्थायी सदस्यों से अलग विस्तार करने की मांग के साथ सुधारों की बात भी कही गई। सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की संख्या में विस्तार का सवाल भारत भी उठाता रहा है। मगर इस दिशा में अब तक सिर्फ बातें ज्यादा हुई हैं, कोई ठोस प्रगति जमीन पर उतरती नहीं दिखी।
उम्मीद के मुताबिक, सम्मेलन में यूक्रेन से शत्रुता समाप्त करने पर जोर दिया गया। मगर यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध में अमेरिका का जो रुख है, उसके कायम रहते हुए क्या उम्मीद की जा सकती है? वहीं रूस भी युद्ध में अपने पक्ष को सिर्फ जवाब के तौर पर देखता है। इसी तरह, इजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध में गाजा में कई हजार लोग मारे जा चुके हैं। मगर इजराइल के प्रति अमेरिका का नरम रुख जगजाहिर रहा है। ऐसे में सिर्फ आह्वान करने या सदिच्छा भर से युद्ध खत्म करने के हालात कैसे पैदा हो सकते हैं?
यह छिपा नहीं है कि वैश्विक स्तर पर जारी संघर्षों की वजह से ही खाद्य, ईंधन और उर्वरक आदि का संकट पैदा हो रहा है और इससे सबसे ज्यादा विकासशील देश प्रभावित हैं। सम्मेलन में भारत ने यह मुद्दा जोर देकर उठाया भी। निश्चित रूप से मौजूदा विश्व में भुखमरी और युद्ध जैसे हालात विकास और उसकी सारी संभावनाओं को उल्टी दिशा की ओर मोड़ दे सकते हैं। इस लिहाज से प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देशों का इससे चिंतित होना स्वाभाविक है। मगर सवाल है कि संकट के हल का लक्ष्य हासिल करने के लिए क्या केवल चर्चा करना काफी हो सकता है? जब तक समस्या को खत्म करने के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए स्पष्ट दिशा और रास्ते तय करके उस पर निर्णायक कदम नहीं बढ़ाए जाएंगे, तब तक ऐसे सम्मेलनों की सार्थकता कैसे साबित होगी!
