हर बार बह जाता है एक सपना: कब जागेगी उत्तराखंड की व्यवस्था? रिपोर्ट: अवतार सिंह बिष्ट,

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ऋषिकेश की शांत वादियों में एक बार फिर गूंज उठा मातम का सन्नाटा। देहरादून निवासी 31 वर्षीय संदीप नवानी गंगा किनारे संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हो गया। एसडीआरएफ की टीम गंगा में रेस्क्यू ऑपरेशन चला रही है, पर अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है। युवक के परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल है और पूरे क्षेत्र में सनसनी का माहौल है।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

हर बार यही होता है — कोई बेटा, कोई भाई, कोई सपना बह जाता है गंगा की लहरों में। उत्तराखंड के इन पवित्र किनारों पर अब मौत का साया मंडराने लगा है। खासकर ऋषिकेश में, जहां हर कुछ हफ्तों में कोई युवा गंगा में डूब जाता है।

सिर्फ एक साल में डूबे 92 लोग

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2023 में उत्तराखंड में कुल 92 लोग नदियों, तालाबों और झीलों में डूबकर जान गंवा चुके हैं। अकेले ऋषिकेश और हरिद्वार क्षेत्र में यह संख्या 40 के पार पहुंच गई थी। इसमें से अधिकांश मामले गर्मियों के मौसम में सामने आते हैं, जब बड़ी संख्या में पर्यटक स्नान और एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए पहुंचते हैं।

कई बार दोहराया गया है इतिहास

  • मई 2023: पंजाब से आए चार युवकों में से दो गंगा में नहाते हुए बह गए।
  • अगस्त 2022: दिल्ली से आए एक इंजीनियरिंग छात्र की लाश तीन दिन बाद गंगा बैराज के पास मिली।
  • जून 2021: तपोवन क्षेत्र में नहाने गए दो युवकों की SDRF ने शव बरामद किए।
    हर बार पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई एक जैसी होती है — तलाशी जारी है, SDRF सक्रिय है, जांच की जा रही है — लेकिन रोकथाम के कोई सख्त उपाय नहीं होते।

सवाल सरकार से और समाज से भी

ऋषिकेश, जो योग नगरी और आस्था की धरती के नाम से जानी जाती है, वहां अब हर कुछ दिनों में डूबने की खबर आम होती जा रही है। क्या गंगा किनारे पर्याप्त चेतावनी संकेत लगाए गए हैं? क्या पर्यटन स्थलों पर प्रशिक्षित लाइफगार्ड और सुरक्षा उपकरण हैं? और क्या स्थानीय प्रशासन इन घटनाओं को गंभीरता से लेता है या हर बार एक नई फाइल बंद कर दी जाती है?

युवाओं के लिए सीख

गंगा एक आध्यात्मिक प्रतीक है, लेकिन वह एक बेहद गहरी और तेज़ बहाव वाली नदी भी है। रोमांच के चक्कर में कई बार युवा अपनी जान दांव पर लगा देते हैं। नहाने, सेल्फी लेने, या तैरने का जोश मौत में बदल जाता है।

बहती गंगा को बचाने की जरूरत है

यह वक्त है जब उत्तराखंड सरकार को ठोस नीति बनानी होगी — नदियों और जल स्रोतों के किनारे सुरक्षा को अनिवार्य बनाया जाए, रिसॉर्ट और कैंप संचालकों को जिम्मेदार ठहराया जाए, और SDRF को सिर्फ रेस्क्यू नहीं, प्रिवेंशन की भूमिका दी जाए।

एक जनजागरण की जरूरत है, ताकि अगली बार कोई संदीप गंगा की गोद में खोने से पहले रुक कर सोच सके — कि यह नदी श्रद्धा की है, लेकिन लापरवाही की सज़ा मौत है।


हर बार यही होता है — कोई बेटा, कोई भाई, कोई सपना बह जाता है गंगा की लहरों में। उत्तराखंड के इन पवित्र किनारों पर अब मौत का साया मंडराने लगा है। खासकर ऋषिकेश में

ऋषिकेश, जो योग नगरी और आस्था की धरती के नाम से जानी जाती है, वहां अब हर कुछ दिनों में डूबने की खबर आम होती जा रही है। कभी युवा पर्यटक, कभी साधक, और अब एक सरकारी कर्मचारी — आखिर ये घटनाएं कब रुकेंगी?

सवाल सरकार से है, सिस्टम से है — क्यों नहीं बनते ठोस सुरक्षा इंतजाम? क्यों नदियों के किनारे चेतावनी बोर्ड, गार्ड, और सुरक्षा बैरिकेड्स पर्याप्त संख्या में नहीं हैं? क्यों SDRF को हर बार लाश ढूंढने के लिए बुलाना पड़ता है, जान बचाने के लिए नहीं?

एक अपील युवाओं से भी

गंगा हमारी श्रद्धा है, लेकिन ये भी सच है कि वह एक खामोश नदी है — जो लहरों में खेलते हुए कब मौत की आगोश में खींच ले, कोई नहीं जानता। युवाओं से अपील है — सिर्फ बहादुरी दिखाने या रोमांच के लिए इन पवित्र जलधाराओं में जान न जोखिम में डालें। एक बार सोचें, फिर दो बार सोचें… और फिर 50 बार सोचें।

क्योंकि गंगा में डूबने से सिर्फ एक शरीर नहीं डूबता — एक पूरा परिवार उजड़ जाता है।



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