संपादकीय: संकट में स्वास्थ्य सुविधा – गोल्डन कार्ड योजना की बिगड़ती साख

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संपादकीय: संकट में स्वास्थ्य सुविधा – गोल्डन कार्ड योजना की बिगड़ती साख

उत्तराखंड राज्य कर्मचारियों और पेंशनरों के लिए लागू की गई ‘गोल्डन कार्ड योजना’ का उद्देश्य था – बिना आर्थिक चिंता के गुणवत्तापूर्ण इलाज की गारंटी। लेकिन वर्तमान हालात बताते हैं कि यह योजना अब खुद जीवन रक्षक नहीं, प्रशासनिक कुप्रबंधन की शिकार बन चुकी है। 100 करोड़ से अधिक की देनदारी के कारण बड़े अस्पतालों ने इलाज से हाथ खींच लिए हैं, और हजारों कार्मिकों व पेंशनरों को इलाज के लिए दर-दर भटकने को मजबूर होना पड़ रहा है।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद की ओर से जताई गई नाराजगी पूर्णतः जायज है। यह बेहद चिंता का विषय है कि जिन कर्मचारियों ने अपना जीवन सरकार की सेवा में लगा दिया, आज वे स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए न्यायालयों के चक्कर काटने को विवश हैं। योजना का लगातार उपेक्षित रहना, अपर्याप्त बजट आवंटन और फर्जी बिलिंग पर कार्रवाई न होना इस विफलता के प्रमुख कारण हैं।

प्रदेश अध्यक्ष अरुण पांडेय और महामंत्री शक्ति प्रसाद भट्ट द्वारा उठाए गए मुद्दे गहरी जांच की मांग करते हैं। यह सवाल भी उठता है कि जब योजना अंशदान आधारित है, तब राज्य सरकार इसके अतिरिक्त व्यय से पीछे क्यों हट रही है? क्या यह सरकार की जवाबदेही नहीं बनती कि वह अपने कर्मचारियों की स्वास्थ्य सुरक्षा को प्राथमिकता दे?

फर्जी बिलिंग और खर्च बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की शिकायतें यदि सत्य हैं, तो यह भ्रष्टाचार का बड़ा संकेत है। परंतु सवाल यह भी है कि क्या पूरी योजना को ऐसे अस्पतालों के भरोसे छोड़ देना समझदारी है? क्यों न ऐसे अस्पतालों की पहचान कर उन्हें सूची से बाहर किया जाए, और बाकी संस्थानों का भुगतान तुरंत किया जाए?

आज जरूरत है कि राज्य सरकार इस योजना में बजटीय प्रावधान तत्काल करे, चिकित्सा प्रतिपूर्ति के लंबित देयकों का भुगतान सुनिश्चित कराए, और अस्पतालों का भरोसा पुनः अर्जित करे। साथ ही, योजना के प्रबंधन में पारदर्शिता और निगरानी के लिए एक स्वतंत्र तंत्र का गठन हो।

गोल्डन कार्ड योजना न केवल कर्मचारियों की सुविधा से जुड़ी है, बल्कि यह सरकार की संवेदनशीलता और प्रशासनिक प्रतिबद्धता की परीक्षा भी है। उम्मीद है कि राज्य सरकार इस गंभीर मसले पर शीघ्र हस्तक्षेप करेगी और कर्मचारियों के स्वास्थ्य अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करेगी।


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