
उत्तराखंड गठन के आंदोलनकारियों को आरक्षण वाला विधेयक प्रवर समिति के पास, अब आगे क्या?



क्षैतिज आरक्षण के तहत ऊर्ध्वाधर श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले विशेष वर्ग जैसे- महिलाओं, बुजुर्गों, समलैंगिक समुदाय और दिव्यांग व्यक्तियों आदि को आरक्षण दिया जाता है।
ऊर्ध्वाधर आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण को संदर्भित करता है। सत्तारूढ़ दल और विपक्षी सदस्यों ने विधेयक में सुधार करने एवं उत्तराखंड के गठन संबंधी आंदोलन में सक्रियता से भाग लेने वालों को और फायदा पहुंचाने के ध्येय से इसका दायरा बढ़ाने का सुझाव दिया था।
सदस्य आंदोलनकारी के तौर पर पहचान की पूर्व शर्त के रूप में कम से कम सात दिन की जेल की सजा पाए होने या आंदोलन के दौरान चोट लगने संबंधी प्रावधान को हटाने के पक्ष में थे। उनका मानना था कि इससे कई पात्र आंदोलनकारी लाभ से वंचित रह जाएंगे। राज्य सरकार ने इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने का शुक्रवार को फैसला किया।
भाजपा के विधायक विनोद चमोली ने कहा कि विधेयक में आंदोलनकारियों के पक्ष में संशोधन किया जाना चाहिए। संशोधन के बाद ही इसे पारित किया जाना चाहिए। राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता भुवन कापड़ी ने कहा कि वे विधेयक के पक्ष में हैं, लेकिन इसके कुछ खंडों पर पुनर्विचार की जरूरत है।
राज्य विधानसभा में यह विधेयक छह सितंबर को पेश किया गया था। विधानसभा में ध्वनिमत से प्रस्ताव पारित किया गया कि विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजा जाए। यह समिति आवश्यक संशोधन के बाद 15 दिन के भीतर अपनी रिपोर्ट विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी को भेजेगी।
मालूम हो कि इस विधेयक में अगल उत्तराखंड राज्य के लिए आंदोलन करने वाले लोगों और उनके आश्रितों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव किया गया है। साल 2000 में लंबे आंदोलन के बाद यूपी से अलग कर के उत्तराखंड का गठन किया गया था। उत्तराखंड आरक्षण विधेयक 2023 से आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को सरकारी नौकरियों में आयु सीमा और चयन प्रक्रिया में छूट मिलेगी।

