हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स ,अवतार सिंह बिष्ट जिया रानी कत्यूरी वंश के लोगों की कुलदेवी हैं

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जिया रानी कत्यूरी वंश के लोगों की कुलदेवी हैं हल्द्वानी के काठगोदाम से दो किलोमीटर दूर स्थित मां जिया रानी का मंदिर।

कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी के काठगोदाम से दो किलोमीटर दूर तीर्थ स्थल में मां जिया रानी का मंदिर, गुफा एवं गार्गी नदी पर ऐतिहासिक शिला है। लेखक दीपक नौंगाई बताते हैं, मां जिया का यह एकमात्र मंदिर है, जिसे हरिद्वार की तरह कुमाऊं का हरिद्वार कहा जाता है। यहां पूरे वर्ष भर कुमाऊं और गढ़वाल से लोग पूजा अर्चना करने आते हैं।

यहां है मंदिरों की बड़ी श्रृंखला

मकर संक्रांति पर बड़ी संख्या पर कत्यूरी वंशज गार्गी नदी पर स्नान कर मां की जागर लगाते हैं। पूजा अर्चना करते है नवरात्रि में मां के मंदिर पर हर समय कीर्तन भजन किए जाते हैं। बताया जाता है कि मंदिर की देखभाल महंत नंदन गिरी और उनका परिवार करता है। इस तीर्थ को चित्रशिला द्वार के नाम से भी जाना जाता है। यहां मंदिरों की बड़ी श्रृंखला है, जिसमें शिवालय, पार्वती मंदिर, धाम देव शीला, भैरव मंदिर, काली मंदिर, शनि मंदिर स्थित है।

कत्यूरी वंश की राज माता थीं मां जिया

13वीं सदी तक कत्यूरी वंश का राज था, जिनकी राज माता जिया रानी थीं। वे बहुत बड़ी शिव भक्त थीं और रानीबाग में स्थित चित्रशिला धाम में भगवान शिव की आराधना करती थीं। कहा जाता है कि चित्रशिला धाम में शिवलिंग मार्कंडेय ऋषि ने भगवान विश्वकर्मा से कहकर स्थापना करवाई थी।

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स ,अवतार सिंह बिष्ट

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जब मुगल फौज जिया रानी के पीछे पड़ गई थी तब भागते हुए एक पहाड़ पर आकर जोर से शिव जी को पुकारा था। तब वह पहाड़ फट गया और वहां गुफा बन गई। जिससे माता अंतर्ध्यान हो गईं और गुफा बंद हो गई। उसी जगह पर आज जिया माता का मंदिर स्थित है।

बाग स्थापित करने से रानीबाग नाम पड़ा

जिया रानी कत्यूरी वंश के लोगों की कुलदेवी हैं। वह भगवान शिव की भक्त थीं। बताया जाता है कि भगवान शिव के कहने पर माता ने एक बाग स्थापित किया था। आज उसी क्षेत्र को रानीबाग से जाना जाता है। यह बड़ा ही सुन्दर इलाका है।


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