भा रत के जेलों में बढ़ती भीड़ और विचाराधीन कैदियों की समस्याओं को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान दिवस से पहले ऐसे कैदियों को रिहा करने की अपील की है, जिन्होंने अपने संभावित अपराध की अधिकतम सजा का एक-तिहाई समय जेल में बिता लिया है।

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बीएनएसएस की धारा 479: पहली बार अपराधियों के लिए राहत

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) की धारा 479 पहली बार अपराध करने वालों के लिए जमानत प्रक्रिया को सरल बनाती है। यह प्रावधान कहता है कि यदि कोई पहली बार अपराधी है और उसने अपनी संभावित अधिकतम सजा का एक-तिहाई समय जेल में काट लिया है, तो उसे जमानत पर रिहा किया जाएगा।

हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट

इस प्रावधान का उद्देश्य न केवल जेलों में भीड़भाड़ को कम करना है, बल्कि पहली बार अपराध करने वालों को सुधार का अवसर देना भी है। यह दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 436ए की जगह लेती है, जिसमें अधिकतम सजा का आधा समय जेल में काटने की सीमा तय थी। हालांकि, गंभीर अपराधों जैसे हत्या या आजीवन कारावास के मामलों में यह लागू नहीं होता।

सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए बीएनएसएस की धारा 479 के “अधिक लाभकारी” प्रावधान को लागू करने पर जोर दिया है। अगस्त 2023 में कोर्ट ने इस धारा को लागू करने का आदेश दिया, जिससे 1 जुलाई 2024 से पहले के मामलों के कैदियों को भी इसका लाभ मिल सके।

सुप्रीम कोर्ट ने जेल अधीक्षकों और राज्य सरकारों को ऐसे कैदियों की पहचान कर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। यह डेटा यह सुनिश्चित करेगा कि योग्य कैदियों को जल्द से जल्द जमानत मिले और न्यायिक प्रक्रिया में देरी न हो।

भारत में विचाराधीन कैदियों की स्थिति

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2022 रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जेलों में 5,73,220 कैदियों में से 75.8% (4,34,302) विचाराधीन कैदी हैं। इनमें 23,772 महिलाएं भी शामिल हैं, जिनमें से 76.33% विचाराधीन हैं।

रिपोर्ट यह भी बताती है कि विचाराधीन कैदियों में से लगभग 8.6% तीन साल से अधिक समय से जेल में हैं। हालांकि, यह डेटा यह नहीं दर्शाता कि कितने विचाराधीन कैदी पहली बार अपराधी हैं। यह स्थिति न्याय प्रक्रिया में सुधार की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।

समाज पर प्रभाव और भविष्य की दिशा

यह पहल पहली बार अपराध करने वालों को सुधार का मौका देगी और जेलों में भीड़ को कम करेगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस दिशा में केंद्र और राज्यों द्वारा ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। अमित शाह का बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि संविधान दिवस तक न्याय प्रक्रिया को तेज़ करना प्राथमिकता है।

हालांकि, यह भी ज़रूरी है कि इस प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो और गंभीर अपराधियों को जमानत न मिले। साथ ही, जेलों के बुनियादी ढांचे में सुधार और न्यायिक प्रणाली को सुदृढ़ करना इस पहल की सफलता के लिए आवश्यक है।

बीएनएसएस की धारा 479 और सुप्रीम कोर्ट के आदेश भारतीय जेल सुधार की दिशा में एक सकारात्मक कदम हैं। यह न केवल विचाराधीन कैदियों को राहत देगा, बल्कि न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता और प्रभावशीलता को भी बढ़ावा देगा। ऐसे में उम्मीद है कि यह पहल जेलों के बोझ को कम करने और न्याय प्रणाली को अधिक मानवीय बनाने में सफल होगी।


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