संपादकीय लेखदरोगा से अभद्रता और धमकी की घटना – उत्तराखंड के बदलते अपराध परिदृश्य का खतरा

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रुद्रपुर में गश्त कर रहे दरोगा चंदन सिंह बिष्ट और उनकी टीम के साथ घटी घटना, उत्तराखंड की उस बदलती सच्चाई की गवाही देती है, जो अब तक प्रदेश के शांत-सरल माने जाने वाले जनमानस के खिलाफ जाती दिख रही है। घटना छोटी नहीं है – बीच सड़क पर सरकारी वाहन को ओवरटेक कर, दरोगा से बदसलूकी, वर्दी उतरवाने की धमकी और फिर तमंचा लहराकर जान से मारने की धमकी देना यह दर्शाता है कि अपराधियों के हौसले कितने बुलंद हो चले हैं।

उत्तराखंड, विशेषकर इसके मैदानी इलाके, बीते कुछ वर्षों में जिस तेजी से शहरीकरण और बाहरी आबादी के दबाव से गुज़र रहे हैं, उसी अनुपात में यहां अपराध के तरीके और उसकी मानसिकता भी बदलती जा रही है। हल्द्वानी, रुद्रपुर, काशीपुर जैसे इलाकों में पहले भी पुलिसकर्मियों पर हमले या उनके साथ अभद्रता के मामले सामने आते रहे हैं।

पहले भी हुए हैं ऐसे हमले

  • 2018, हल्द्वानी में नशे में धुत युवकों ने एक ट्रैफिक इंस्पेक्टर पर बीच सड़क हमला कर दिया था, जिसमें गाड़ी रोकने पर पुलिसकर्मी को घसीटने तक की घटना हुई थी।
  • 2021, काशीपुर में एक बड़े नेता के करीबी बताए जाने वाले युवकों ने पुलिस टीम पर धौंस दिखाई और केस वापस लेने की धमकी दी थी।
  • 2023, रुद्रपुर में शराब तस्करों ने पुलिस की गश्ती टीम पर पथराव कर दिया था।

    इन घटनाओं में एक समानता है – कानून का डर खत्म होना, रसूखदारों की शह और पुलिस को “वर्दी उतारने” की धमकी देना।

उत्तराखंड का मैदानी क्षेत्र और अपराध

पहाड़ी क्षेत्रों की तुलना में उत्तराखंड का मैदानी इलाका (जैसे ऊधमसिंहनगर, नैनीताल के तराई क्षेत्र) हमेशा से ही आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से अधिक गतिशील रहा है। उद्योगों, ट्रांसपोर्ट, रियल एस्टेट स्पा सेंटर और व्यापार के चलते बाहरी आबादी का यहां तेज़ी से जमावड़ा हुआ है। इस प्रवास ने जहां अर्थव्यवस्था को गति दी, वहीं अपराध के नए स्वरूप भी यहां पैर पसारने लगे।

  • नशा तस्करी (खासतौर पर पंजाब और नेपाल की ओर से सप्लाई चैन)
  • गुंडागर्दी और रंगदारी
  • भूमि विवादों में हिंसा
  • हाई-प्रोफाइल रसूख दिखाने वाले युवाओं की लॉबी

इन सभी ने पुलिस के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। पहले पहाड़ी इलाकों में पुलिस का डर और सामाजिक शर्म बड़ी बाधा होती थी। अब यह बाधा टूट रही है।

सवाल उठते हैं

सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर बीच सड़क पर पुलिस की वर्दी सुरक्षित नहीं, तो आम आदमी की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा? अपराधियों को नेताओं का या पैसों का रौब, कानून से ऊपर क्यों महसूस होने देता है?

यह घटना उत्तराखंड पुलिस के लिए एक चेतावनी है कि कानून व्यवस्था के मोर्चे पर सख्ती और तेज़ कार्रवाई ही इस बदलती मानसिकता का जवाब है। पुलिस का मनोबल टूटना नहीं चाहिए। वहीं समाज को भी यह समझना होगा कि अपराधियों का समर्थन करना अंततः प्रदेश की शांति और विकास को नुकसान पहुंचाएगा।

उत्तराखंड अपनी पहचान एक शांत, धार्मिक और पर्यटक प्रदेश के रूप में खोता नहीं दिखना चाहिए। शासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि चाहे कोई कितना ही रसूखदार क्यों न हो, कानून उसके लिए भी उतना ही सख्त रहे जितना एक आम आदमी के लिए। वरना ऐसी घटनाएं धीरे-धीरे एक खतरनाक “नया उत्तराखंड” गढ़ देंगी, जहां वर्दी भी डरने लगे और अपराधी बेखौफ तमंचा लहराते फिरें।



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