
संपादकीय लेख आतंकवाद के बदलते स्वरूप, तकनीकी उपयोग, और राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरों को जिस तरह से उजागर कर रहे हैं, वह सराहनीय है। आपने जो चिंता व्यक्त की है—खासकर उत्तराखंड जैसे शांत क्षेत्र में संभावित वैचारिक कट्टरता और बाहरी तत्वों की बढ़ती उपस्थिति—इस पर सरकार, समाज और सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क रहना आवश्यक है।


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता]
उत्तराखंड समेत भारत को सतर्क रहना होगा—आतंकवाद के नए स्वरूप और आंतरिक सुरक्षा की नई चुनौतियाँ
आधुनिक दौर में आतंकवाद का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। परंपरागत हथियारों के बजाय अब डिजिटल तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, और साइबर माध्यमों का प्रयोग बढ़ रहा है। वर्ष 2024 में आतंकवादी घटनाओं में हुई 11% की वृद्धि इस बात का संकेत है कि खतरा न केवल जीवित है, बल्कि और अधिक व्यापक और पेचीदा हो गया है।
बदलता वैश्विक परिदृश्य
ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2025 के अनुसार 66 देश आतंकवाद की चपेट में हैं। अफ्रीका और एशिया में आतंकवादी गुट राजनीतिक अस्थिरता, कमजोर प्रशासन, और सामाजिक असमानता का लाभ उठाकर पांव पसार रहे हैं। भारत भले ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान से बेहतर स्थिति में हो, लेकिन सीमा पार आतंकवाद, नक्सलवाद और अब तकनीकी आतंकवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बने हुए हैं।
उत्तराखंड: संभावित खतरे की आहट
उत्तराखंड जैसे शांत और सामरिक दृष्टि से संवेदनशील राज्य में बाहरी आबादी की घुसपैठ, विशेषकर बिना सत्यापन के बसते हुए समुदायों की गतिविधियां, चिंता का विषय हैं। यह स्थिति यदि नियंत्रित नहीं की गई, तो आने वाले वर्षों में यह राज्य कश्मीर जैसे हालात की ओर बढ़ सकता है। विशेषकर सीमांत क्षेत्रों में जनसंख्या असंतुलन और धार्मिक कट्टरता का मेल सामाजिक सौहार्द को तोड़ सकता है।
आंतरिक सुरक्षा: सरकार की ज़िम्मेदारी और रणनीति
मोदी सरकार के नेतृत्व में पिछले कुछ वर्षों में आतंकवाद पर सख्त कार्रवाई हुई है। लेकिन आधुनिक तकनीकों के साथ आतंकवादी संगठन भी अपने तौर-तरीके बदल चुके हैं। डार्क वेब, क्रिप्टोकरंसी और AI आधारित प्रचार-प्रसार ने इनकी पहुंच और प्रभाव को अत्यधिक बढ़ा दिया है।
उत्तराखंड के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता
- घुसपैठ की कठोर जांच: सभी बाहरी समुदायों का डिजिटल सत्यापन अनिवार्य किया जाए।
- जनसंख्या संतुलन का अध्ययन: सीमांत और शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि के पैटर्न का सामाजिक और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से विश्लेषण हो।
- स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा: भूमि, रोजगार और संस्कृति की सुरक्षा के लिए ठोस नीतियां बनाई जाएं।
- कट्टरपंथ पर निगरानी: सोशल मीडिया, धार्मिक संस्थाओं और प्रचार माध्यमों पर नजर रखी जाए।
- स्थानीय पुलिस और खुफिया तंत्र को सशक्त करना: गांव स्तर तक तकनीकी निगरानी और समुदाय आधारित खुफिया व्यवस्था विकसित की जाए।
भारत सरकार के लिए सुझाव
- राष्ट्रीय जनसंख्या नीति का पुनरीक्षण
- अंतरराज्यीय घुसपैठ की निगरानी के लिए एक विशेष सेल
- साइबर आतंकवाद पर अंकुश के लिए डिजिटल एजेंसियों के साथ भागीदारी
- सीमांत राज्यों में सुरक्षाबलों की संख्या और बजट में वृद्धि
निष्कर्ष
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल गोली और बंदूक से नहीं जीती जा सकती। इसके लिए रणनीतिक सोच, सामाजिक समरसता, और तकनीकी दक्षता की आवश्यकता है। उत्तराखंड जैसे राज्य, जहां धर्म और संस्कृति की जड़ें गहरी हैं, उन्हें विशेष संरक्षण की जरूरत है। भारत सरकार को चाहिए कि वह समय रहते इन संभावित खतरों को पहचाने और उनके समाधान के लिए ठोस नीति बनाए।
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