टिकट और जीत की संभावना नेताओं को पाला बदलने के लिए मजबूर कर रही है। हालांकि, पाला बदलने वाली अपनी बात को जायज ठहराने के लिए ये नेता कई बार ‘उचित सम्मान’ न मिलने या मौजूदा पार्टी में ‘घुटन होने’ का हवाला देते हैं।
पाला बदलना जीत की गारंटी नहीं
आंकड़े बताते हैं कि पाला बदलना जीत की गारंटी नहीं है। त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल सेंटर के मुताबिक 2004 के बाद पार्टी बदलकर दूसरे दल से चुनाव लड़ने वाले नेताओं की जीत की संभावना लगातार कम हुई है। पिछले लोकसभा यानी 2019 के चुनाव में दल बदलने वाले नेताओं की जीत का स्ट्राइक रेट गिरकर 15 प्रतिशत पर आ गया।
1977 के चुनाव में 68.9% था जीत का औसत प्रतिशत
रिपोर्टों के मुताबिक 1967 के चुनाव में दल बदलने वाले नेताओं का जीत का प्रतिशत 50 फीसद था। दल बदलने वाले नेताओं के लिए ‘स्वर्ण काल’ 1977 का आम चुनाव था। आपातकाल हटने के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस छोड़कर अन्य दलों के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले बागी प्रत्याशियों की जीत का औसत प्रतिशत 68.9 था। कांग्रेस के खिलाफ लोगों की नाराजगी का फायदा दल बदलने वाले नेताओं और पार्टियों को मिला। कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी या अन्य दल में शामिल होने वाले ज्यादातर नेता चुनाव जीत गए।
2019 में केवल 29 जीते
साल 1960 से लेकर 2019 के आम चुनावों तक दलबदलुओं के जीतने का औसत 30 फीसद है लेकिन 2004 के बाद से यह लगातार कम हो रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 8000 उम्मीदवार चुनाव में थे। इनमें से 2.4 यानी 195 दल बदलकर चुनाव लड़े थे। हालांकि, इसमें से केवल 29 को ही जीत मिली। 1980 में सबसे ज्यादा 377 उम्मीदवारों ने पाला बदला। देश में दल बदल कानून 1980 में बना।
2024 में इन नेताओं ने पाला बदला
राजस्थान में हिसार से भाजपा सांसद बिजेंद्र सिंह चुनाव से ठीक पहले पाला बदलकर कांग्रेस में शामिल हुए। झारखंड में कांग्रेस सांसद गीता कोरा भाजपा का दामन थामा। तेलंगाना में बीआरएस सांसद जी रंजीथ रेड्डी कांग्रेस में शामिल हुए। यूपी में बसपा सांसद संगीता आजाद भाजपा में आईं। बसपा के ही अमरोहा से सांसद दानिश अली कांग्रेस में शामिल हुए। राजस्थान में भाजपा सांसद राहुल कसवां कांग्रेस का दामन थामा। तेलंगाना में बीआरएस सांसद पी भारत भाजपा में शामिल हुए। अभी और नेता और सांसद दूसरी पार्टी में अपनी संभावनाएं तलाश सकते हैं।