दुनिया में चीन के माओ, पाकिस्तान के ज़िया उल हक, इराक़ के सद्दाम हुसैन, लीबिया के कर्नल गद्दाफ़ी, युगांडा के ईदी अमीन जैसे अनेक तानाशाह हुए हैं.
हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट
हाल ही में कई देशों में भारत के राजदूत रहे राजीव डोगरा की एक किताब आई है ‘ऑटोक्रेट्स, कैरिज़्मा, पावर एंड देयर लाइव्स’.
इस किताब में उन्होंने दुनिया के तानाशाहों की मानसिकता, काम करने के ढंग और जीवन पर बारीक नज़र डाली है.
डोगरा बताते हैं कि जब उनकी रोमानिया में भारत के राजदूत के रूप में तैनाती हुई, तो उन्होंने पाया कि चाउसेस्कु की मौत के एक दशक बाद भी लोग अपनी परछाइयों तक से डरते थे.
राजीव डोगरा लिखते हैं, “लोग अब भी मुड़-मुड़कर देखते थे कि कहीं उनका पीछा तो नहीं किया जा रहा.”
“पार्क में घूमते हुए उनकी नज़र हमेशा इस बात पर रहती थी कि बेंच पर बैठा कोई शख़्स अपने चेहरे के सामने अख़बार रखकर उनकी गतिविधियों पर नज़र तो नहीं रख रहा है. अगर कोई अख़बार पढ़ भी रहा है तो वो ये देखते थे कि उसमें कोई छेद तो नहीं है जिससे उन पर निगरानी रखी जा रही है.”
तानाशाहों को विरोध बर्दाश्त नहीं
डोगरा लिखते हैं कि रोमानिया के मशहूर फ़िल्म और थिएटर अभिनेता इऔन कारामित्रो ने तानाशाही के दौर के बारे में यूँ बताया था, “हम पर हर समय नज़र रख जाती थी. हमारे एक-एक काम पर सरकार का नियंत्रण होता था.”
“प्रशासन तय करता था कि हम किससे मिलें और किससे न मिलें, हम किससे बात करें और कितनी देर तक करें, आप क्या खाएं और कितना खाएं और यहाँ तक कि आप क्या खरीदें और क्या न ख़रीदें. प्रशासन तय करता था कि आपके लिए क्या अच्छा है.”
बचपन से पड़ते हैं तानाशाही के बीज
कहा जाता है कि एक तानाशाह की क्रूरता के लिए उसका बचपन या शुरुआती जीवन ज़िम्मेदार होता है.
लेविन अरेड्डी और एडम जेम्स अपने लेख ’13 फ़ैक्ट्स अबाउट बेनिटो मुसोलिनी’ में लिखते हैं, “मुसोलिनी एक मुश्किल बालक थे. उनको सुधारने के लिए उनके माता-पिता ने उनका एक कड़े कैथलिक बोर्डिंग स्कूल में दाखिला कराया. वहाँ भी स्कूल का स्टाफ़ उन्हें अनुशासित नहीं कर पाया.”
उन्होंने लिखा, “10 वर्ष की आयु में उन्हें एक छात्र पर पेन नाइफ़ से हमला करने के आरोप में निष्कासित कर दिया गया था. 20 वर्ष की आयु आते-आते उन्होंने और कई लोगों पर भी चाकू से हमला किया. उसमें उनकी एक गर्लफ़्रेंड भी थी.”
स्टालिन भी अपनी जवानी में विद्रोही प्रवृत्ति के थे. उन्होंने कई दुकानों में मशालें फेंक कर आग लगाई थी.
पार्टी के लिए धन जमा करने के लिए उन्होंने लोगों का अपहरण तक किया था. उन्होंने बाद में अपना नाम स्टालिन रखा था जिसका अर्थ होता है- ‘लोहे का बना हुआ’.
लेकिन इसके ठीक उलट उत्तरी कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन का बचपन शानो-शौक़त और विलासिता में बीता. बचपन में अर्दलियों की पूरी टीम उनकी देखभाल करती थी.
उनके पास यूरोप की किसी भी खिलौने की दुकान से अधिक खिलौने थे. उनके घर के बगीचे में उनके मनोरंजन के लिए बंदरों और भालुओं को पिंजरे में रखा जाता था.
इतने लाड़-प्यार के बावजूद किम अब भी अपने को दूसरे तानाशाहों की तरह असुरक्षित महसूस करते हैं.
सत्ता में बने रहने के गुर
जब तानाशाह के हाथ में सत्ता आती है तो उसकी पहली प्राथमिकता होती है कि उसे हर हालत में बचा कर रखा जाए.
राजीव डोगरा लिखते हैं, “सत्ता को अपने पास रखने के लिए ये ज़रूरी है कि तानाशाह के व्यवहार के बारे में पूर्वानुमान न लगाया जा सके. सत्ता में रहने के लिए मीडिया पर उसका पूरा नियंत्रण हो.”
“वो सर्वव्यापी हों और ईश्वर की तरह आपको हर जगह से देख सके और अगर कोई उसके खिलाफ़ खड़ा होने की कोशिश करे तो उसे तुरंत दबा दिया जाए.”
दुनिया के लगभग सभी तानाशाह प्रोपगैंडा के भी मास्टर होते हैं.
सियु प्रोदो न्यू स्टेट्समैन के 20 सितंबर, 2019 के अंक में ‘द ग्रेट परफॉर्मर्स, हाउ इमेज एंड थिएटर गिव डिक्टेटर्स देअर पावर’ लेख में लिखती हैं, “मुसोलिनी को पता था कि उनकी फ़्लाइंग सीखने की तस्वीर उन पर लिखे कई संपादकीय लेखों से अधिक असर डालेगी.”
सन 1925 में अपने पहले रेडियो प्रसारण के बाद उन्होंने स्कूलों में चार हज़ार रेडियो सेट मुफ़्त में बंटवाए थे. कुल आठ लाख रेडियो सेट बंटवाए गए थे और चौराहों पर उन्हें सुनने के लिए लाउडस्पीकर लगाए गए थे.
सियु प्रोदो लिखती हैं, “उनकी तस्वीर साबुनों तक पर होती थी, ताकि लोग अपने बाथरूम में भी उनको ही देखें. उनके दफ़्तर की बत्तियाँ रात को भी जलाकर रखी जाती थीं ताकि देश को लगे कि वो देर रात तक काम कर रहे हैं.”
खाने के अजीबोग़रीब शौक
हिटलर जैसा तानाशाह पूरी तरह से शाकाहारी था, ये बात कम ही लोग जानते हैं. अपने जीवन के अंतिम दिनों में हिटलर का खाना सिर्फ़ सूप और आलू थे.
किम जोंग इल शार्क फ़िन और कुत्ते के माँस का सूप पीने के शौकीन थे.
डेमिक बारबरा ‘डेली बीस्ट’ के 14 जुलाई, 2017 के अंक में अपने लेख ‘द वे टू अंडरस्टैंड किम जोंग इल वाज़ थ्रू हिज़ स्टमक’ में लिखती हैं, “किम की एक सनक और थी. उनके पास महिलाओं की एक टीम थी.”
“यह टीम ये सुनिश्चित करती थी कि उनके भोजन के चावल का एक एक दाना आकार, स्वरूप और रंग में एक जैसा हो. उनकी पसंदीदा ड्रिंक कोनियक थी और वो हेनेसी कोनियक के सबसे बड़े ख़रीदार थे.”
पोल पोट कोबरा का दिल खाना पसंद करते थे. डोगरा को पोल पोट के रसोइए ने बताया, “मैंने पोल पोट के लिए कोबरा बनाया. पहले मैंने कोबरा को मारकर उसका सिर काटा और उसे पेड़ पर लटका दिया ताकि उसका ज़हर निकल जाए.”
“फिर मैंने कोबरा के ख़ून को एक कप में जमा किया और उसे वाइट वाइन के साथ परोसा. उसके बाद मैंने कोबरा का कीमा बनाया. फिर मैंने उसे लेमन ग्रास और अदरक के साथ एक घंटे तक पानी में उबाला और पोल पोट को परोसा.”
मुसोलिनी का प्रिय खाना था कच्चे लहसुन और जैतून के तेल से बना सलाद. उनका मानना था कि ये उनके दिल के लिए अच्छा है.
डोगरा लिखते हैं, “इसकी वजह से उनके मुंह से हमेशा लहसुन की गंध आती थी, इसलिए भोजन के बाद उनकी पत्नी दूसरे कमरे में चली जाती थी.”
फ़ूड टेस्टर चखता था हिटलर का खाना
युगांडा के राष्ट्रपति ईदी अमीन के जीवनकाल में ही इस तरह की अफवाहें थीं कि वो अपने विरोधियों को मरवा कर उनका माँस खा जाते थे.
अनीता श्योरविक्ज़ अपने लेख ‘डिक्टेटर्स विद स्ट्रेंज ईटिंग हैबिट्स’ में लिखती हैं, “एक बार जब उनसे पूछा गया कि क्या वो इंसानों का माँस खाते हैं, तो उनका जवाब था, मैं मानव माँस पसंद नहीं करता, क्योंकि वो बहुत नमकीन होता है.”
ईदी अमीन एक दिन में 40 संतरे खा जाते थे, क्योंकि उनका मानना था कि वो कामोत्तेजक दवा की तरह काम करता है.
हिटलर का भोजन खाने से पहले फ़ूड टेस्टर चखती थी.
उनकी एक फ़ूड टेस्टर मारगोट वोएल्फ़ ने ‘द डेनवर पोस्ट’ के 27 अप्रैल, 2013 के अंक में लिखा था, “हिटलर का खाना स्वादिष्ट होता था. भोजन के लिए बेहतरीन सब्ज़ियाँ इस्तेमाल होती थीं.”
“उन्हें हमेशा पास्ता या चावल के साथ परोसा जाता था, लेकिन हमेशा जहर दिए जाने का डर लगा रहता था इसलिए हम कभी खाने का आनंद नहीं ले पाते थे. हर रोज़ लगता था कि ये हमारे जीवन का आख़िरी दिन होने वाला है.”
माओ ने कभी दाँतों में ब्रश नहीं किया
दुनिया भर के तानाशाह अपनी अजीबोग़रीब हरकतों और आदतों के लिए भी मशहूर रहे हैं. चीन के माओत्से तुंग ने जीवन भर अपने दाँतों पर ब्रश नहीं किया.
माओ के डॉक्टर ज़ीसुई ली अपनी किताब ‘प्राइवेट लाइफ़ ऑफ़ चेयरमेन माओ’ में लिखते हैं, “माओ ब्रश करने के बजाए ग्रीन टी का कुल्ला किया करते थे. उनके जीवन का अंत आते-आते उनके सारे दाँत हरे हो चुके थे और उनके मसूड़ों में मवाद भर गया था.”
एक बार जब उनके डॉक्टर ने उन्हें दाँत ब्रश करने की सलाह दी तो उनका जवाब था, “शेर कभी अपने दाँतों को साफ़ नहीं करता. तब भी उसके दाँत इतने नुकीले क्यों होते हैं?”
जनरल ने विन ने साल बर्मा पर साल 1988 यानी 26 सालों तक राज किया. जुआ, गोल्फ़ और औरतों के शौकीन जनरल विन को बहुत जल्दी गुस्सा आता था.
राजीव डोगरा लिखते हैं, “एक बार उन्हें किसी ज्योतिषी ने बता दिया था कि 9 का अंक उनके लिए बहुत शुभ है. नतीजा ये हुआ कि उन्होंने अपने देश में चल रहे सभी 100 क्यात के नोट वापस लेने के आदेश दिए और उसकी जगह 90 क्यात के नोट चलवाए.”
“नतीजा ये हुआ कि बर्मा की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई और लोगों को अपनी जीवन भर की कमाई से हाथ धोना पड़ा.”
अल्बानिया के तानाशाह का बॉडी डबल
अल्बानिया के एनवर हौक्शा सन 1944 से लेकर 1985 तक सत्ता में रहे.
उन्हें हमेशा इस बात का डर लगा रहता था कि उनके देश पर हमला होने वाला है. इससे बचने के लिए उन्होंने पूरे देश में 75 हज़ार बंकरों का निर्माण करवाया.
उन्होंने बैंक के नोटों पर अपना चेहरा छपवाने से इनकार कर दिया. उन्हें डर था कि उसके सहारे उनके ऊपर जादू न करवा दिया जाए.
ब्लेंडी फ़ेवज़िऊ अपनी किताब ‘एनवर हौक्शा, द आयरन फ़िस्ट ऑफ़ अल्बानिया’ में लिखते हैं, “उनको अपनी हत्या का इतना डर था कि उन्होंने अपने लिए एक बॉडी डबल ढूँढा. उनसे मिलते-जुलते एक शख़्स को एक गाँव से उठाया गया और कई बार प्लास्टिक सर्जरी के बाद उसे उन जैसा बना दिया गया.”
“उनके डबल को उनकी तरह चलना सिखाया गया. उसने कई फ़ैक्ट्रियों के उद्घाटन किए और भाषण भी दिए.”
तुर्कमेनिस्तान और हेती के तानाशाहों की सनक
इसी तरह तुर्कमेनिस्तान के तानाशाह सपरमुरात नियाज़ोव ने अपने गरीब देश की राजधानी में अपनी 50 फ़ुट ऊँची गोल्ड-प्लेटेड मूर्ति बनवाई.
उन्होंने एक किताब भी लिखी ‘रूहनामा’. उन्होंने आदेश दिया कि उसी व्यक्ति को ड्राइविंग लाइसेंस दिया जाए जिसे उनकी वो किताब पूरी तरह याद हो.
उन्होंने सार्वजनिक समारोहों और टेलिविजन पर संगीत बजाने पर भी रोक लगा दी थी.
हेती के तानाशाह फ़्राँसुआ डुवालिए इतने अंधविश्वासी थे कि उन्होंने अपने देश में सभी काले कुत्ते मार देने का आदेश दे दिया था.
ईदी अमीन और एनवर हौक्शा की क्रूरता
राजीव डोगरा लिखते हैं, “70 के दशक में युगांडा के क्रूर नेता ईदी अमीन का दावा था कि वो अपने राजनीतिक विरोधियों के सिर काटकर अपने फ़्रीज़र में रखते थे.”
“आठ वर्ष के अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने 80 हज़ार लोगों को मरवाया. मारे जाने वाले लोगों में बैंकर, बुद्धिजीवी, पत्रकार, कैबिनेट मंत्री और एक पूर्व प्रधानमंत्री शामिल थे.”
इसी तरह अल्बानिया के डिक्टेटर एनवर हौक्शा ने भी अपने विरोधियों को नहीं बख़्शा.
ब्लेंडी फ़ेवज़िऊ लिखते हैं, “उन्होंने इस हद तक बुद्धिजीवियों की हत्या करवाई कि उनकी मृत्यु तक पोलित ब्यूरो में कोई भी ऐसा शख़्स नहीं बचा था जो हाई स्कूल से ज़्यादा पढ़ा हो.”
अल्बानिया में नागरिकों पर सरकार के नियंत्रण का आलम ये था कि वो अपने बच्चों के नाम अपनी पसंद से नहीं रख सकते थे.
द्दाम हुसैन का फ़ायरिंग स्क्वाड