इस मंत्र का नियमित, श्रद्धा और विधिपूर्वक जाप करने से न केवल मानसिक और शारीरिक बल की प्राप्ति होती है, बल्कि यह मृत्यु जैसे महाबंधन से भी सुरक्षा प्रदान करता है।महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद जैसे प्राचीन शास्त्रों में मिलता है। यह मंत्र इस प्रकार है
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।


उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥”✍️ अवतार सिंह बिष्ट विशेष संवाददाता, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स
इस मंत्र का अर्थ है: हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की उपासना करते हैं जो सुगंधित हैं और सभी प्राणियों की पुष्टि करते हैं। जैसे एक पका हुआ फल बेल से सहजता से अलग हो जाता है, वैसे ही हम मृत्यु के बंधन से मुक्त हों, लेकिन अमरत्व की ओर बढ़ें।
महामृत्युंजय मंत्र कैसे करता है अकाल मृत्यु से रक्षा?
महामृत्युंजय मंत्र को अकाल मृत्यु से रक्षा करने वाला इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के चारों ओर एक सूक्ष्म ऊर्जा कवच का निर्माण करता है। जब कोई श्रद्धा से इस मंत्र का जाप करता है, तो उसकी चेतना शिव तत्व से जुड़ जाती है। यह जुड़ाव आध्यात्मिक शक्ति का संचार करता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियाँ और जीवन के अनचाहे संकटों से सुरक्षा मिलती है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, महामृत्युंजय मंत्र की सबसे पहली सिद्धि ऋषि मृकंडु के पुत्र मार्कंडेय ने प्राप्त की थी। जब यमराज स्वयं उन्हें मृत्यु देने आए, तब उन्होंने इस मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव का ध्यान किया। शिवजी प्रकट हुए और यमराज को रोक दिया। तभी से इस मंत्र को ‘अकाल मृत्यु निवारक’ कहा जाने लगा।
विज्ञान और ऊर्जा का संतुलन
आधुनिक वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से एक विशिष्ट प्रकार की ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो मस्तिष्क की तरंगों को शांत करती हैं और तनाव को दूर करती हैं। महामृत्युंजय मंत्र के जप से न केवल मानसिक शांति प्राप्त होती है बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। यह मंत्र शरीर के ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) को सक्रिय करता है जिससे जीवन ऊर्जा में संतुलन आता है।
कब और कैसे करें महामृत्युंजय मंत्र का जाप?
समय: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) मंत्र जाप का सर्वोत्तम समय माना जाता है।
संख्या: कम से कम 108 बार जाप करने की परंपरा है। इसके लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग किया जा सकता है।
स्थान: शांत और पवित्र स्थान पर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
शुद्धता: मंत्र जाप से पहले स्नान और शारीरिक शुद्धता का पालन करना चाहिए। मानसिक रूप से भी एकाग्रता आवश्यक है।
श्रद्धा: सबसे ज़रूरी है श्रद्धा और समर्पण की भावना, क्योंकि मंत्र तभी प्रभावी होता है जब उसका जाप पूरी निष्ठा से किया जाए।

