फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी के दिन होने वाली महाशिवरात्रि जो इस बार 8 मार्च को होगी, देवों के देव महादेव की पूजा कर उनकी कृपा पायी जा सकती है.
ज्योतिर्लिंग के दर्शन
महाशिवरात्रि के दिन वैसे तो ज्योतिर्लिंगों में भीड़ बढ़ जाती है किंतु अभी से द्वादश ज्योतिर्लिंग में से किसी एक के दर्शन का प्लान बना सकते हैं. कहते हैं ज्योतिर्लिंग में शिव जी का साक्षात वास रहता है इसलिए उस दिन उनके दर्शन और पूजा करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर और माता सती के मिलन की रात्रि है इसलिए शिवभक्त इस रात में विशेष पूजा अर्चना करते हैं. जिन स्थानों पर भगवान भोले शंकर शिवलिंग के रूप में प्रगट हुए थे उन सभी बारह स्थानों के शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है.
ये हैं 12 ज्योतिर्लिंग
इनमें उत्तराखंड में श्री केदारनाथ, उत्तर प्रदेश में काशी विश्वनाथ, गुजरात में सोमनाथ एवं नागेश्वर, मध्यप्रदेश में महाकालेश्वर एवं ओंकारेश्वर, झारखंड में बैद्यनाथ, महाराष्ट्र में भीमाशंकर, त्र्यंबकेश्वर एवं घृष्णेश्वर, आंध्र प्रदेश में मल्लिकार्जुन और तमिलनाडु में रामेश्वरम. कहा गया है सारे तीर्थ शिवलिंग में समाहित हैं, इसलिए शिवलिंग के दर्शन और पूजन से तीर्थों की यात्रा का फल मिलता है. जो लोग किसी भी ज्योतिर्लिंग में किन्हीं कारणों से नहीं जा सकते हैं, वह घर के पास ही किसी न किसी शिव मंदिर में कम से कम एक लोटा जल से अभिषेक अवश्य ही करें.
Hindustan global Times/शैल ग्लोबल टाइम्स /अवतार सिंह बिष्ट रूद्रपुर उत्तराखंड
पहली कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि इसी तिथि पर भगवान शिव शंकर द्वारा वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। इसी तिथि पर रात्रि में भगवान शिव शंकर एवं मां पार्वती दांपत्य सूत्र बंधन में बंधे थे। माना जाता है कि भगवान शिव ने उत्तराखंड स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर (triyugi narayan temple) में मां पार्वती को अपनी जीवन संगिनी बनाया था।
वहीं उनके साथ फेरे लिए थे। शिवरात्रि मनाए जाने के पीछे जो दूसरी कथा प्रचलित है, उसके अनुसार महाशिवरात्रि की तिथि पर भगवान शिव पहली बार प्रकट हुए थे। उनका प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में हुआ था। यह भी कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही 64 अलग-अलग जगहों पर शिवलिंग प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि इस दिन पूरे मन से भगवान शिव शंकर का ध्यान करने एवं उनके पूजन से भक्तों एवं उनके प्रियजनों के समस्त संकट स्वत: समाप्त हो जाते हैं।
महाशिवरात्रि वह महारात्रि है जिसका शिव तत्व से घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह पर्व शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। वह हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों से मुक्त करके परम सुख शान्ति और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।
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महाशिवरात्रि से जुड़ी कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सती का पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ था। मां पार्वती ने आरम्भ में अपने सौंदर्य से भगवान शिव को रिझाना चाहा लेकिन वे सफल नहीं हो सकीं। इसके बाद त्रियुगी नारायण से पांच किलोमीटर दूर गौरीकुंड में कठिन ध्यान और साधना से उन्होंने शिवजी का मन जीत लिया। इसी दिन भगवान शिव और आदिशक्ति का विवाह संपन्न हुआ। भगवान शिव का तांडव और माता भगवती के लास्यनृत्य के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है।
शिवजी की महत्ता
शिवपुराण में वर्णित है कि शिवजी के निराकार स्वरूप का प्रतीक ‘लिंग’ इसी पावन तिथि की महानिशा में प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था। इसके अनुसार जो भक्त शिवरात्रि को दिन-रात निराहार एवं जितेन्द्रिय होकर अपनी पूर्ण शक्ति और सामर्थ्य द्वारा निश्छल भाव से शिवजी की यथोचित पूजा करता है, वह वर्ष-पर्यन्त शिव पूजन करने का सम्पूर्ण फल तत्काल प्राप्त कर लेता है।
यह दिन जीवमात्र के लिए महान उपलब्धि प्राप्त करने का दिन भी है। इस दिन जो मनुष्य परमसिद्धिदायक भगवान भोलेनाथ की उपासना करता है वह परम भाग्यशाली होता है। भगवान श्रीराम ने स्वयं कहा है कि जो शिव का द्रोह करके मुझे प्राप्त करना चाहता है वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। यही वजह है कि श्रावण मास में शिव आराधना के साथ ही श्रीरामचरितमानस के पाठ का भी बहुत महत्त्व होता है।
शिव को बेलपत्र और जल क्यों प्रिय ?
भोलेनाथ थोड़ी सी भक्ति और बेलपत्र और जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब कालकूट नाम का विष निकला तो इसके प्रभाव से सभी देवता और जीव-जंतु व्याकुल होने लगे। इस समय भगवान शिव ने इस विष को हथेली पर रखकर पी लिया। विष के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए उन्होंने इसे अपने कंठ में ही रख लिया। जिस कारण शिवजी का कंठ नीला पड़ गया इसलिए महादेवजी को ‘नीलकंठ’ कहा जाने लगा। लेकिन विष की तीव्र ज्वाला से भोलेनाथ का मस्तिष्क गरम हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिवजी के मस्तिष्क की गरमी कम करने के लिए उन पर जल उड़ेलना शुरू कर दिया और ठंडी तासीर होने की वजह से बेलपत्र भी चढ़ाए। इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले भक्त पर भगवान आशुतोष अपनी कृपा बरसाते हैं।