मालाबार हिल का शुमार साउथ मुंबई के सबसे पॉश और महंगे इलाकों में किया जाता है. यहां पर जिंदल, रुइया और गोदरेज सरीखे उद्योगपतियों के परिवार रहते हैं. लेकिन इसी मालाबार हिल में एक बंगला ऐसा भी है जहां 79 साल पहले भारत को दो हिस्सों में बांटने की साजिश रची गई थी.

Spread the love

इस बंगले का मालिक और कोई नहीं, बल्कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना थे. यह बंगला जिन्ना हाउस के नाम से मशहूर था, लेकिन इसका मूल नाम साउथ कोर्ट था.

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

जिन्ना हाउस का निर्माण मोहम्मद अली जिन्ना ने 1936 में इंग्लैंड से लौटने के बाद करवाया था. उन्होंने मुस्लिम लीग पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया था, जिसने बाद में पाकिस्तान के रूप में मुसलमानों के लिए एक अलग देश की मांग की थी. जिन्ना हाउस की वास्तुकला यूरोपीय शैली की है जिसे क्लाउड बैटले ने डिजाइन किया था, जो भारतीय वास्तुकार संस्थान के पूर्व प्रमुख थे. जिन्ना हाउस के निर्माण के लिए विशेष रूप से इटली से प्रशिक्षित राजमिस्त्री भारत बुलाए गए थे.

2 लाख रुपये में बना था बंगला

कहा जाता है कि मोहम्मद अली जिन्ना ने इस आलीशान बंगले को 2,00,000 रुपये की भारी भरकम लागत से बनवाया था. 1936 में यह रकम बहुत ज्यादा हुआ करती थी. लागत के पर्सपेक्टिव को समझने के लिए यह जानना दिलचस्प होगा कि 1947 में जब भारत आजाद हुआ था, तब 1 रुपया 1 अमेरिकी डॉलर के बराबर था. भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में इस बंगले की कीमत 2600 करोड़ रुपये होगी. यह बंगला 2.5 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है. बंगला समुद्र के सामने है. जिन्ना हाउस के निर्माण में बेहतरीन इतालवी संगमरमर और अखरोट की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया था. लेकिन ये बंगला चार दशकों से ज्यादा समय से वीरान पड़ा है.

साल 1936 में दो लाख रुपये की लागत आई थी जिन्ना हाउस पर.

इतिहास के कसैले अध्याय का केंद्र

जिन्ना हाउस पाकिस्तान के लिए मुस्लिम लीग के आंदोलन का केंद्र था. इसके नेता इस बात पर चर्चा करते थे कि कांग्रेस से कैसे निपटा जाए और अंग्रेजों को कैसे समझाया जाए कि मुसलमान एक अलग राष्ट्र चाहते हैं. यह जिन्ना हाउस ही था जहां महात्मा गांधी और मुहम्मद अली जिन्ना के बीच सितंबर 1944 में हुई बातचीत को अक्सर ‘भारत के विभाजन पर निर्णायक वार्ता’ कहा जाता है. विभाजन और स्वतंत्रता से ठीक एक वर्ष पहले 15 अगस्त 1946 को जिन्ना ने कांग्रेस के प्रमुख नेता जवाहरलाल नेहरू के साथ पाकिस्तान के निर्माण के बारे में एक और दौर की बातचीत की. विभाजन के बाद जिन्ना पाकिस्तान चले गए, लेकिन उन्होंने अपने अंतिम दिन मुंबई के जिन्ना हाउस में बिताने की इच्छा व्यक्त की थी.

क्या हुआ विभाजन के बाद?

आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जिन्ना हाउस को शत्रु संपत्ति घोषित नहीं करना चाहते थे. कहा जाता है कि नेहरू जिन्ना हाउस मोहम्मद अली जिन्ना को लौटाना चाहते थे या जिन्ना की सहमति से किसी यूरोपीय को किराए पर देना चाहते थे. लेकिन एक साल बाद 1948 में जिन्ना की अचानक मृत्यु के कारण नेहरू जिन्ना हाउस पर आखिरी फैसला नहीं ले सके. अंततः 1949 में जिन्ना हाउस को इवेक्यू प्रॉपर्टी घोषित कर दिया गया और भारत सरकार ने इसका नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया. इसे ब्रिटिश उच्चायोग को आवंटित किया गया था, जो 1981 तक जिन्ना हाउस से काम करता था, उसके बाद वे वहां से चले गए. ब्रिटिश उच्चायोग के यहां से चले जाने के बाद, पाकिस्तान ने भारत सरकार से अनुरोध किया कि उसे जिन्ना हाउस को अपने वाणिज्य दूतावास के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी जाए. हालांकि ये संभव नहीं हुआ.

जिन्ना हाउस की वास्तुकला यूरोपीय शैली की है जिसे क्लाउड बैटले ने डिजाइन किया था.

जिन्ना हाउस पर मुकदमा

जिन्ना हाउस के निर्माण के तीन वर्ष बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी वसीयत लिखी, जिसमें उन्होंने अपनी अविवाहित बहन फातिमा जिन्ना को इस विशाल बंगले सहित अपनी संपत्तियों का एकमात्र उत्तराधिकारी बनाया. विभाजन के समय फातिमा जिन्ना पाकिस्तान चली गईं. बाद में 1962 में फातिमा ने बॉम्बे हाई कोर्ट से उत्तराधिकार का प्रमाण पत्र प्राप्त किया, लेकिन, यह शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के कानून बनने से पहले की बात है. उसके बाद जिन्ना की एकमात्र बेटी दीना वाडिया, जिन्होंने एक भारतीय से विवाह किया और भारत में बस गईं भारत सरकार के साथ कानूनी लड़ाई में लगी रहीं. दीना वाडिया ने 2007 में बॉम्बे हाईकोर्ट में दावा किया कि वह जिन्ना की इकलौती संतान होने के नाते उनकी संपत्ति की वारिस हैं. दीना वाडिया ने यह पक्ष भी रखा कि इस संपत्ति के मामले में हिंदू उत्तराधिकार कानून लागू होता है क्योंकि सिर्फ दो पीढ़ी पहले जिन्ना हिंदू थे. जिन्ना की मां का नाम मिठूबाई था और उनकी पत्नी का नाम रतनबाई था. जिन्ना खोजा शिया मुसलमान थे. दीना के निधन के बाद उनके बेटे नुस्ली वाडिया ने मुकदमा लड़ा. नुस्ली एक अरबपति व्यवसायी और वाडिया समूह के अध्यक्ष हैं, जो एफएमसीजी , कपड़ा और रियल एस्टेट उद्योग में शामिल है.

अब कौन है जिन्ना हाउस का मालिक?

विदेश मंत्रालय ने जिन्ना हाउस सहित जिन्ना की संपत्तियों के कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में दीना वाडिया के दावे को खारिज कर दिया. विदेश मंत्रालय ने बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि मोहम्मद अली जिन्ना की 1939 की वसीयत परिवार में विरासत के मुद्दे को सुलझाती है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि जिन्ना हाउस फातिमा जिन्ना का था. लेकिन जब फातिमा जिन्ना पाकिस्तान चली गईं, तो जिन्ना हाउस शत्रु संपत्ति के संरक्षक के नियंत्रण में आ गया, जो भारत सरकार के अधीन आता है. शत्रु संपत्ति के अधिकारों पर अस्पष्टता 2005 तक जारी रही, जब सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि शत्रु संपत्ति का संरक्षक केवल एक ट्रस्टी है, जो शत्रु संपत्ति का मालिक है. 2016 में यह बदल गया, जब नरेंद्र मोदी सरकार एक अध्यादेश लेकर आई और उसके बाद चार और अध्यादेश ला गए. पहले चार अध्यादेश समाप्त हो गए, जबकि आखिरी अध्यादेश को शत्रु संपत्ति (संशोधन) अधिनियम, 1968 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जिसे संसद ने पारित किया. संशोधित कानून केंद्र को शत्रु संपत्ति का मालिक बनाता है. अब जिन्ना हाउस केंद्र सरकार की संपत्ति है.


Spread the love