
मिर्जा अली खान की पहचान


मिर्जा अली खान वजीर एक प्रमुख जनजातीय नेता थे, जिनका प्रभाव खैबर पख्तूनख्वा के उत्तरी वजीरिस्तान से लेकर अफगानिस्तान की पहाड़ियों तक फैला हुआ था। उन्हें ‘हाजी मिर्जा अली खान’ भी कहा जाता था, क्योंकि उन्होंने हज किया था। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उनका विद्रोह एक सशस्त्र आंदोलन था, जो इस्लाम और पश्तून संस्कृति के खिलाफ था।
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह
10,000 योद्धाओं की जनजातीय सेना
मिर्जा अली खान की सबसे बड़ी ताकत उनकी जनजातीय सेना थी, जिसमें लगभग 10,000 समर्पित सशस्त्र योद्धा शामिल थे। ये योद्धा पहाड़ी इलाकों में गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे और उन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ कई सफल छापामार हमले किए।
1936 में जिहाद का ऐलान
प्रेम प्रकाश अपनी पुस्तक History That India Ignored में लिखते हैं, “14 अप्रैल 1936 को मिर्जा अली खान ने अपनी जनजातीय सेना के साथ मिलकर ब्रिटिशर्स के खिलाफ जिहाद का ऐलान किया था।” यह कदम उन्होंने तब उठाया जब अंग्रेजों के कई निर्णय इस्लाम और पश्तून संस्कृति के खिलाफ थे। इसके बाद उनकी सेना और ब्रिटिश फौज के बीच कई बार संघर्ष हुआ।
अफगानिस्तान में विद्रोह का ठिकाना
ब्रिटिश सेना से बचने के लिए मिर्जा अली खान ने अफगानिस्तान में अपना ठिकाना बनाया और वहां से अपने विद्रोही आंदोलन को जारी रखा। उनकी उपस्थिति इतनी प्रभावशाली थी कि ब्रिटिश हुकूमत उन्हें दबाने में असफल रही।
भारत विभाजन और पश्तूनिस्तान की मांग
दूसरे विश्व युद्ध के बाद, जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ने की योजना बनाई, मिर्जा अली खान और अब्दुल गफ्फार खान ने भारत के विभाजन का विरोध किया। उन्होंने मांग की कि यदि भारत विभाजित होता है, तो पश्तूनों को भी एक अलग राष्ट्र ‘पश्तूनिस्तान’ दिया जाए।
इतिहास में गुम एक सच्चा विद्रोही
मिर्जा अली खान की विद्रोही कहानी को इतिहास के पन्नों में दबा दिया गया है। उन्होंने औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया और धर्म तथा संस्कृति के नाम पर बनाई गई कृत्रिम सीमाओं को स्वीकार नहीं किया।
