रोना महामारी से दुनिया में लाखों लोगों की मौत हो गई थी. इस कारण इसके प्रकोप को रोकने के लिए कई देशों ने आनन-फानन में लोगों के लिए इसकी वैक्सीन बनाई थी. दुनिया की कई कंपनियों ने कोविडरोधी वैक्सीन का निर्माण किया था.

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इसी के तहत ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्टाजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर कोविशील्ड वैक्सीन बनाई थी. वहीं, इसका प्रोडक्शन भारत सीरम इंस्टीट्यूट ने किया है.

अब एस्ट्राजेनेका ने यह बात स्वीकार की है कि उसकी इस वैक्सीन से साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं और कुछ लोगों में थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) की समस्या देखने को मिल रही है. इससे खून के थक्के जमने की समस्या हो रही है.इससे हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक होने की संभावना बढ़ जाती है.

पूरी दुनिया में लगे हैं इतने डोज, कितना है इससे खतरा?

आंकड़ों की बात करें तो भारत में 1 अरब 70 करोड़ डोज कोविशील्ड के लगाए गए थे. वहीं, यूरोप में भी कई लोगों को यह वैक्सीन लगी थी. कोविड वैक्सीन को मॉनिटर करने वाला एप COWIN के डेटा के अनुसार AEFI के मामले 0.007% ही हैं. AEFI (Adverse Event Following Immunization) के माध्यम से वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट की घटानाओं को मॉनीटर किया जाता है.

पूरी दुनिया में एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के 2 अरब 50 लाख से अधिक डोज लगाए गए हैं. साल 2021 में यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी द्वारा 222 लोगों में ही इस वैक्सीन की वजह से ब्लड क्लोटिंग होने की बात कही गई थी. एक रेशियो की बात करें तो डोज लेने वाले 1 लाख लोगों में मात्र 1 को खतरा है. वहीं, भारत में 93 प्रतिशत लोगों को कोरोनारोधी टीका लगा है. कुल 2 लाख 21 करोड़ डोज लगे थे, इसमें 1 अरब 70 लाख सिर्फ कोविशील्ड के थे.

कब तक रहता है खतरा?

जब कोई भी वैक्सीन मार्केट में आती है तो हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स / प्रिंट मीडिया : शैल ग्लोबल टाइम्स/ संपादक ;अवतार सिंह बिष्ट ,रूद्रपुर उत्तराखंड खबर के मुताबिक हैदराबाद के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार का कहना है कि वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स उसको लगवाने के कुछ ही हफ्तों में नजर आने लगते हैं. जिन लोगों ने काफी महीने पहले यह वैक्सीन लगवाई थी, उनको डरने की आवश्यकता नहीं है.

वैक्सीन बनाने वाली कंपनी को करना पड़ रहा है मुकदमों का सामना

यूके हाईकोर्ट में चल रहे 51 मामलों में पीड़ित फार्मा कंपनी से 100 मिलियन पाउंड तक के हर्जाने के मांग कर रहे हैं. इस मामले के पहले शिकायतकर्ता जेमी स्कॉट ने आरोप लगाया था कि उन्होंने साल 2021 के अप्रैल में वैक्सीन लगवाई थी. इसके बाद उनके दिमाग में ब्लड क्लाटिंग हो गई. उन्होंने दावा किया है कि इस क्लाटिंग की वजह से अब उनको काम करने में दिक्कत होती है. अस्पताल में उनकी पत्नी को तीन बार यह भी कहा गया कि वे मरने वाले हैं.

इस मुकदमे की सुनवाई में इस वैक्सीन को बनाने वाली ब्रिटेन दिग्गज फार्मा कंपनी एस्टॉजेनेका ने माना है कि यह वैक्सीन दुर्लभ मामलों में TTS का कराण बन सकती है. इस कारण इसको लेकर लोगों में ज्यादा डर फैल गया है.


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