दायित्वों की बारिश या 2027 की बिसात?”यह दायित्व हैं या राजनीतिक इनाम?राज्य की वित्तीय हालत और राजनीतिक नियुक्तियाँआपकी आवाज, आपके सवालों के साथ

Spread the love

उत्तराखंड—एक छोटा सा पर्वतीय राज्य, जिसकी जनसंख्या बमुश्किल एक करोड़ को पार करती है।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता]

संसाधनों की सीमाएं, बेरोजगारी की ऊंची दर, कर्ज में डूबा खजाना और दूसरी ओर सरकार की घोषणाओं की झड़ी—योजना दर योजना, इवेंट दर इवेंट। ताजा उदाहरण मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा सौंपे गए 55 विभागीय दायित्व हैं, जिनमें 34 नाम हाल ही में दो सूचियों में सामने आए हैं।

यह दायित्व हैं या राजनीतिक इनाम?

जिस तरह से चुनावी समीकरण साधने, जातीय संतुलन बनाने और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की गई है, उससे यह कहीं अधिक राजनीतिक रणनीति प्रतीत होती है, न कि प्रशासनिक सुधार या जनहित की पहल। हर जिले को प्रतिनिधित्व मिला, सिर्फ चंपावत को छोड़कर—क्योंकि वहां से मुख्यमंत्री स्वयं आते हैं। क्या यह संतुलन है या सत्ता संतुलन का खेल?

महिलाओं के लिए आरक्षण कहां?

सरकार हर मंच पर महिला सशक्तिकरण की बात करती है, लेकिन इन 55 दायित्वधारियों में महिलाओं की हिस्सेदारी 30% से भी कम है। क्या ये नियुक्तियाँ सिर्फ पोस्टर और मंचों की बातें थीं, या फिर नारी शक्ति वास्तव में सिर्फ नारों तक सीमित रह गई है?

जनता का हासिये पर होना जारी

आम जनता—जो इन नियुक्तियों से किसी प्रकार का लाभ नहीं उठाने वाली—अब भी हासिये पर खड़ी है। न युवाओं के लिए रोजगार, न ग्रामीणों के लिए ठोस विकास, और न ही पारदर्शी योजना क्रियान्वयन। इन दायित्वधारियों की नियुक्ति से कितना परिवर्तन आएगा, यह देखने वाली बात होगी, लेकिन फिलहाल ये सब 2027 की बिसात बिछाने जैसा ज्यादा लगता है।

राज्य की वित्तीय हालत और राजनीतिक नियुक्तियाँ

उत्तराखंड पहले ही कर्ज के बोझ से जूझ रहा है। ऐसे में 55 नेताओं को विभिन्न निगमों, आयोगों और समितियों में पद देकर सरकार क्या संदेश देना चाहती है? इन पदों के साथ जुड़ा खर्च, संसाधनों का विभाजन, और योजनाओं के क्रियान्वयन की सच्चाई क्या इन घोषणाओं से मेल खाती है?

राजनीति बनाम जननीति

राजनीतिक नियुक्तियाँ यदि जननीति से प्रेरित हों तो राज्य को गति मिलती है। लेकिन यदि ये सिर्फ सत्ता को मजबूत करने, चुनावी बिसात बिछाने और समर्थकों को संतुष्ट करने का माध्यम बन जाएं, तो यह जनादेश का अपमान होता है।

समाप्ति में—एक सवाल सरकार से

क्या उत्तराखंड जैसे छोटे और सीमित संसाधनों वाले राज्य को इतने सारे ‘दायित्वधारी’ चाहिए, जब जनहित की मूलभूत आवश्यकताएं अभी भी अधूरी हैं? या फिर यह सब 2027 के लिए सत्ता के कदम मजबूत करने की एक चाल है?

उत्तराखंड की जनता जवाब जरूर देगी—या तो अब, या 2027 में।

– आपकी आवाज, आपके सवालों के साथ

(एक उत्तरदायी मीडिया का प्रयास)


Spread the love