शिवाय नमः कांवड़ाय नमः।” कांवड़ यात्रा: शिव के स्वरूप पर सवाल क्यों? – एक ऐतिहासिक संपादकीय भूमिका

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हिंदू धर्म,कांवड़िए केवल पथिक नहीं, वे आस्था के वाहक हैं। नंगे पांव, कंधों पर गंगाजल की कांवड़, और होठों पर “बम-बम भोले” का जयघोष लिए ये शिवभक्त असीम श्रद्धा और तपस्या का प्रतीक हैं। कठिन राहों पर, धूप, बारिश, थकावट सबकुछ झेलकर वे भगवान शिव तक अपनी भक्ति पहुँचाते हैं। उनके अनुशासन, सहयोग और भाईचारे से समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। लाखों की भीड़ के बावजूद उनका एक लक्ष्य होता है — अपने भोलेनाथ को प्रसन्न करना। उनके शिविरों में मुफ्त भोजन, चिकित्सा, और सेवा का भाव भारतीय संस्कृति की सजीव झलक दिखाता है। कांवड़िए समाज को सिखाते हैं कि सच्ची भक्ति न तो दिखावे में है, न ही वैभव में, बल्कि त्याग, अनुशासन और निस्वार्थ प्रेम में है। वास्तव में, हर कांवड़िया साक्षात शिव का स्वरूप है, जिनका सम्मान करना हम सबका धर्म है।
संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!

सावन का महीना आया नहीं कि हरिद्वार से लेकर देहरादून, दिल्ली से लेकर देवघर और गंगोत्री से लेकर काशी तक आस्था की लहरें उमड़ने लगती हैं। सड़कों पर नंगे पाँव, कंधों पर गंगाजल की कांवर, केसरिया परिधान, हर-हर महादेव और बम-बम भोले के उद्घोष, ये सब केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि भारतीय सभ्यता की हजारों वर्षों की परंपरा का जीवंत प्रमाण हैं।

लेकिन अफसोस की बात यह है कि करोड़ों की संख्या में शांतिपूर्वक कांवड़ यात्रा में शामिल होने वाले शिवभक्तों की इस आध्यात्मिक परंपरा पर चंद घटनाओं को लेकर हिंदू-विरोधी एजेंडा चलाने वालों को मौका मिल जाता है। छोटी-छोटी घटनाओं को मीडिया में सनसनी बना दिया जाता है। सोशल मीडिया पर ‘कांवड़ियों’ को ‘गुंडा’ साबित करने की होड़ मच जाती है। जबकि हकीकत यह है कि करोड़ों लोग हरिद्वार पहुँचकर गंगाजल ले जाते हैं और अपने-अपने गाँव-शहर के मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं।

सवाल यह है कि आखिर कांवड़ यात्रा पर निशाना क्यों? क्या यह हिंदू समाज को हीन भावना में डालने की साजिश है? क्या यह भारत की सांस्कृतिक एकता को तोड़ने की चाल है? यह लेख इन्हीं सवालों को ऐतिहासिक, सामाजिक और धार्मिक संदर्भ में परखने का प्रयास है।

कांवड़ यात्रा का इतिहास और आध्यात्मिक महत्व,कांवड़ यात्रा की जड़ें प्राचीन वैदिक काल में मिलती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला, तो संहारक और सृजनकर्ता भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया। इससे उनके शरीर में तपन उत्पन्न हुई। इस ताप को शांत करने के लिए गंगाजल का अभिषेक किया गया। तभी से सावन के महीने में शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने की परंपरा आरंभ हुई।

प्राचीन काल में मुनि, साधु और श्रद्धालु गंगा के किनारे से जल लाते थे। धीरे-धीरे आम लोग भी इस परंपरा में जुड़ते गए। इसे ही कांवड़ यात्रा कहा जाने लगा। ‘कांवड़’ शब्द का अर्थ ही है — कंधों पर लटकने वाला जलपात्र, जो एक डंडी से जुड़ा होता है। यह आस्था, संयम और तपस्या का प्रतीक है।

कांवड़ यात्रा और राष्ट्रीय एकता

आज जब भारत को टुकड़े-टुकड़े गैंग, जातिवादी राजनीति, धार्मिक उन्माद और क्षेत्रीय विद्वेष के नाम पर बाँटने की साजिशें रची जा रही हैं, कांवड़ यात्रा भारतीयता की सबसे बड़ी मिसाल बनकर खड़ी है।

  • बिहार का कांवड़िया यूपी में मित्र बना लेता है।
  • पंजाब का शिवभक्त हरिद्वार में झारखंड के कांवड़िए को गले लगा लेता है।
  • बंगाल का युवक मध्य प्रदेश के कांवड़िए के साथ भजन गाता है।
  • दिल्ली का व्यापारी, राजस्थान के ग्रामीण के साथ नंगे पाँव चलता है।

यह भारत की ‘विविधता में एकता’ का मूर्तिमान स्वरूप है। जब लाखों लोग एक ही रंग में रंगकर, एक ही नारे में स्वर मिलाते हैं, तो जात-पात, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच सब भुला देते हैं। क्या यही वजह नहीं कि देश को तोड़ने वाली ताकतें कांवड़ यात्रा को निशाना बनाती हैं?

छोटी घटनाओं को क्यों किया जाता है सनसनीखेज?यह बात कोई छिपी नहीं है कि कहीं सड़क पर जाम लग गया, कहीं कांवड़ियों ने डीजे बजा लिया, कहीं किसी वाहन से मामूली विवाद हो गया — बस यही घटनाएं कुछ मीडिया घरानों और सोशल मीडिया के लिए मसाला बन जाती हैं। हेडलाइन बनाई जाती है —

कांवड़ियों का उत्पात”

सड़क पर आतंक”
“शिवभक्त या गुंडा?”

लेकिन कोई यह नहीं दिखाता कि—

  • करोड़ों शिवभक्त बिना किसी उपद्रव के यात्रा पूरी करते हैं।
  • हजारों शिविर हरिद्वार और रास्ते में मुफ्त भोजन, पानी, चिकित्सा और विश्राम का प्रबंध करते हैं।
  • कांवड़ यात्रा से हजारों गरीब परिवारों की रोजी-रोटी जुड़ी है।
  • पुलिस, प्रशासन और स्वयंसेवक मिलकर व्यवस्था संभालते हैं।

क्या यह सब छुपाना पत्रकारिता का धर्म है? असल में, कुछ शक्तियाँ जानबूझकर ‘हिंदू धार्मिक आयोजनों’ को असहिष्णु और हिंसक दिखाने में लगी हैं ताकि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसी झूठी थ्योरी को पुष्ट किया जा सके।
कांवड़ यात्रा और हिंदू विरोधी नैरेटिव?हिंदू समाज का दुर्भाग्य है कि उसे अपनी ही परंपराओं के लिए सफाई देनी पड़ती है। अगर ईद के मौके पर लाखों लोग सड़कों पर नमाज पढ़ते हैं, तो कोई सवाल नहीं उठता। लेकिन कांवड़ यात्रा पर सवाल पूछा जाता है —
संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!

सड़क पर क्यों चलते हैं?”

“डीजे क्यों बजाते हैं?”
“व्यवस्था क्यों बिगड़ती है?”

क्या ये सवाल दूसरे धर्मों के त्योहारों पर उठते हैं? नहीं। फिर कांवड़ियों पर ही क्यों? इसका सीधा उत्तर है — हिंदू समाज को अपनी आस्था के लिए अपराधबोध का शिकार बनाना।यह वही गैंग है जो मंदिरों पर ‘नौटंकी’ का ठप्पा लगाता है, लेकिन रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए ताजमहल पर प्रदर्शन करने वालों को ‘मानवाधिकार कार्यकर्ता’ कहता है। यही गैंग कहता है — कांवड़ियों को घर में पूजा करनी चाहिए, सड़क पर क्यों आते हैं?” पर क्या मुहर्रम के जुलूसों, ईद की नमाज, क्रिसमस पर जुलूसों पर यही सवाल पूछा जाता है? कदापि नहीं।

उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की भूमिका?यह भी सत्य है कि कांवड़ यात्रा बिना प्रशासनिक सहयोग के संभव नहीं। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सरकारें पिछले वर्षों में ऐतिहासिक व्यवस्थाएँ कर रही हैं।

हाईवे पर विशेष कांवड़ लेन।

  • सीसीटीवी और ड्रोन से निगरानी।
  • मेडिकल कैंप और रेस्क्यू दल।
  • यातायात नियंत्रण।
  • असामाजिक तत्वों पर कड़ी नजर।

फिर भी कुछ घटनाएँ दुर्भाग्यवश घट ही जाती हैं। लेकिन इन्हें यात्रा का दोष बताना अनुचित है। क्या किसी बस दुर्घटना के लिए पूरी बस सेवा पर प्रतिबंध लग जाता है? नहीं। तो चंद घटनाओं के लिए करोड़ों शिवभक्तों की आस्था पर लांछन क्यों?
कांवड़ यात्रा और अर्थव्यवस्था

कांवड़ यात्रा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है। यह आर्थिक दृष्टि से भी वरदान है।

  • लाखों छोटे व्यापारी, दुकानदार, होटल, ढाबे, फूलवाले, मूर्ति विक्रेता, वस्त्र व्यापारी, ट्रांसपोर्टर — सभी को रोजगार मिलता है।
  • सड़क किनारे छोटे-छोटे शिविर गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए आजीविका का जरिया बनते हैं।
  • धार्मिक पर्यटन बढ़ता है।

हरिद्वार, ऋषिकेश, मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर, गाजियाबाद, दिल्ली आदि शहरों की अर्थव्यवस्था पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ता है। क्या इसे कोई बताता है?कांवड़ियों पर ‘उकसावे’ की साजिशें?कई बार सुनियोजित ढंग से कांवड़ियों को उकसाने की कोशिश होती है।

धार्मिक स्थलों पर भड़काऊ पर्चे फेंकना।

  • सोशल मीडिया पर अश्लील चित्र डालना।
  • हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ गाली-गलौज।
  • जुलूस के रास्ते पर जानबूझकर बाधा डालना।

जब प्रतिक्रिया होती है, तो खबर बनती है — “कांवड़ियों का उत्पात।” सवाल उठता है — क्या उकसाने वालों पर कोई कार्रवाई होती है? अक्सर नहीं होती।कांवड़ यात्रा के साथ मनोवैज्ञानिक युद्ध चल रहा है। हिंदुओं की आस्था को “सड़कछाप गुंडागर्दी” साबित करने की साजिश रची जा रही है ताकि हिंदू अपने ही धार्मिक आयोजनों को अपराधबोध की नजर से देखने लगे।

कांवड़िए शिव के स्वरूप हैं”

भारतीय संस्कृति में भक्त और भगवान में भेद नहीं माना गया। कांवड़िए को साक्षात शिव का स्वरूप कहा गया है। शास्त्र कहता है:शिवाय नमः कांवड़ाय नमः।

जो शिव का जलाभिषेक करे, वो स्वयं शिव के स्वरूप में होता है। इसलिए कांवड़ यात्रा में गए व्यक्ति का अपमान, सीधे भगवान शिव का अपमान है। हिंदू समाज को यह समझने की जरूरत है कि किसी एक की गलती पर पूरी परंपरा को दोष न दें।

  • आस्था का सम्मान करें।
  • कानून का पालन करें, लेकिन दुष्प्रचार से डरें नहीं।

मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग से सवाल?हमारी मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवी जमात से यह सवाल बनता है —आप क्यों नहीं दिखाते कि लाखों कांवड़िए गंगा जल ले जाकर मंदिरों में चुपचाप अभिषेक कर रहे हैं?

  • क्यों नहीं दिखाते कि हजारों लोग शिविरों में निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं?
  • क्यों नहीं बताते कि कांवड़ यात्रा से गरीबों को रोजी-रोटी मिल रही है?

लेकिन यह सब नहीं दिखाया जाता। क्योंकि हिंदू-विरोधी नैरेटिव के लिए नकारात्मक खबरें चाहिए। ताकि कहा जा सके — “हिंदू धर्म कट्टरपंथी है।”

कांवड़ यात्रा और हिंदू समाज का जागरण

अब वक्त है हिंदू समाज के जागने का।हर शिवभक्त को कानून का पालन करना चाहिए।

  • यात्रा को अनुशासित और स्वच्छ रखना चाहिए।
  • मीडिया और सोशल मीडिया पर सच को उजागर करना चाहिए।
  • समाज को बताना चाहिए कि कांवड़ यात्रा सिर्फ भक्ति नहीं, भारत की आत्मा है।

जो लोग कांवड़ यात्रा को बदनाम करना चाहते हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि—

भोलेनाथ की कृपा से

न ही कांवड़ यात्रा रुकेगी, न हिंदू आस्था टूटेगी।

कांवड़ यात्रा भारत के धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन की अद्भुत परंपरा है। यह यात्रा आस्था की नहीं, आत्मगौरव की है। इसमें शिव के दर्शन हैं, भारत की आत्मा है। कुछ घटनाएँ होंगी, लेकिन करोड़ों शिवभक्तों की साधना पर कीचड़ उछालना निंदनीय है।

आज जरूरत है कि हिंदू समाज एकजुट होकर कहे —हम शिवभक्त हैं, शांतिप्रिय हैं। लेकिन अपने भगवान, अपनी आस्था और अपनी परंपराओं के अपमान पर चुप नहीं रहेंगे।

धर्म विरोधी शक्तियों को यह समझ लेना चाहिए कि कांवड़ यात्रा का विरोध केवल एक यात्रा का विरोध नहीं है, यह करोड़ों हिंदुओं के स्वाभिमान पर आघात है। और जो समाज अपने स्वाभिमान की रक्षा करना जानता है, उसे कोई भी नैरेटिव हरा नहीं सकता।

हर-हर महादेव।संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!



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