नजूल की उलझनें और नेताओं की सोशल मीडिया राजनीति: जनता को कब मिलेगा मालिकाना हक? – अवतार सिंह बिष्ट, संवाददाता हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, शैल ग्लोबल टाइम्स।

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रुद्रपुर की नजूल भूमि पर मालिकाना हक की लड़ाई अब सोशल मीडिया फोटोशूट तक सिमटती जा रही है। बुधवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के काशीपुर दौरे के दौरान रुद्रपुर के महापौर विकास शर्मा ने ज्ञापन सौंपा। उसी दिन रुद्रपुर विधायक शिव अरोड़ा ने भी मुख्यमंत्री को ज्ञापन देकर नजूल फ्रीहोल्ड पर लगी हाईकोर्ट की रोक को हटवाने की मांग की। दोनों जनप्रतिनिधियों ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें साझा कीं – एक हाथ में ज्ञापन, दूसरी ओर कैमरे की तरफ मुस्कान।

प्रकाशन: शैल ग्लोबल टाइम्स / हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

लेकिन सवाल यह है कि 25 वर्षों से नजूल भूमि पर बसी जनता आखिर कब तक सिर्फ आश्वासनों की तस्वीरें देखती रहेगी?

24 हजार परिवार, जमीनी हकीकत और रजिस्ट्री शुल्क का बोझ

रुद्रपुर नगर निगम क्षेत्र में 24 हजार से अधिक परिवार नजूल भूमि पर रह रहे हैं। पूर्व में मुख्यमंत्री धामी द्वारा 50 वर्गमीटर तक की भूमि पर काबिज गरीबों को निःशुल्क मालिकाना हक देने की घोषणा की गई थी। सैकड़ों पट्टे भी वितरित हुए, परंतु गरीब परिवार रजिस्ट्री शुल्क नहीं भर पा रहे हैं। महापौर ने मांग की है कि इनका शुल्क माफ किया जाए – यह मांग न्यायोचित है, लेकिन क्या सरकार इस पर कोई ठोस निर्णय लेगी या फिर यह भी सोशल मीडिया की एक और पोस्ट बनकर रह जाएगा?

फ्रीहोल्ड की पहली किश्त जमा, पर मालिकाना हक अधर में

हजारों लोग 50 वर्गमीटर से अधिक भूमि पर दशकों से रह रहे हैं। इनमें से बहुतों ने फ्रीहोल्ड के लिए पहली किश्त जमा की, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद कार्यवाही ठप है। जनता ठगी सी महसूस कर रही है – न पैसा वापस, न हक़ हासिल।

राजनीति की ‘नजूल नीति’ और फोटो राजनीति

राजनीतिक दल वर्षों से नजूल मुद्दे पर वोट बैंक बनाते रहे हैं। रजिस्ट्री, फ्रीहोल्ड, नियमितीकरण – हर चुनाव में यही वादे दोहराए जाते हैं। लेकिन जब समय आता है न्यायालय में प्रभावी पैरवी का, तो चुप्पी छा जाती है। आज जब कोर्ट की मोहर लग चुकी है, तब नेताओं को सोशल मीडिया पर फोटो डालकर “जन सरोकार” दिखाने की याद आई है।

जनता को अब चेत जाना चाहिए

नजूल की भूमि अब केवल कानूनी समस्या नहीं, सामाजिक विस्थापन और जन-अधिकारों का मुद्दा बन चुका है। यदि सरकारों ने जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए, तो बुलडोजर राजनीति की आहट कोई कल्पना नहीं, सच्चाई होगी। लोग कब तक आश्वासनों के सहारे जीवन का निर्माण करेंगे?

रजिस्ट्री शुल्क में छूट, कोर्ट में ईमानदार पैरवी और एक पारदर्शी नीति ही रुद्रपुर के 24 हजार परिवारों को राहत दे सकती है। वरना नेताओं की तस्वीरों और ‘ज्ञापन देने’ की परंपरा बस वोटबैंक की खेती ही करती रहेगी।

हमारी ज़मीन पर कब तक आपका राजनीतिक कब्जा रहेगा?आंदोलनकारी परिषद का तीखा बयान: “नजूल नीति नहीं, ये सिर्फ वोट बैंक की नौटंकी है,इस पूरे घटनाक्रम पर उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। परिषद के पदाधिकारियों ने कहा है –25 सालों में नजूल के नाम पर नेताओं ने चुनावी भाषण लिखे, वादों की पर्चियां छपवाईं, और अब सोशल मीडिया की दीवारें सजाई जा रही हैं। लेकिन ज़मीन पर सच्चाई यह है कि न कोई नीति है, न कोई नीयत।परिषद ने सीधा कटाक्ष करते हुए कहा फोटो खिंचवाकर ज्ञापन देने से नजूल की रजिस्ट्री नहीं होती, और सोशल मीडिया पोस्ट से कोर्ट के आदेश नहीं बदलते। आज भी जनता अनिश्चितता में जी रही है, जबकि नेताओं के कैमरे मुस्कुरा रहे हैं। यह जनहित नहीं, जन-सम्मोहन है।

आंदोलनकारियों ने मांग की कि सरकार अविलंब उच्च न्यायालय में प्रभावी पैरवी करे, जनसुनवाई शुरू करे और एक सर्वदलीय कमेटी गठित कर नजूल भूमि पर पारदर्शी नीति बनाए।वरना जिस आंदोलन से उत्तराखंड बना, वही आंदोलन अब नजूल पर जनांदोलन में बदलने को तैयार है।”

उत्तराखंड (Uttarakhand) में नजूल भूमि (Nazul Land) को लेकर एक बार फिर से बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। राज्य सरकार ने नजूल भूमि के फ्री होल्ड (Freehold) पर पूरी तरह से रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया है। यह फैसला नैनीताल हाईकोर्ट (Nainital High Court) की ओर से 16 अप्रैल 2025 को दिए गए आदेश के बाद लिया गया है। इस रोक के चलते प्रदेश के करीब डेढ़ लाख लोगों को सीधा असर पड़ेगा, जिनमें से हजारों लोग पहले ही इस जमीन पर फ्री होल्ड का दावा कर चुके हैं।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद शासन की कार्रवाई

16 अप्रैल 2025 को नैनीताल हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने नजूल भूमि पर फ्री होल्ड की प्रक्रिया पर रोक लगाने का निर्देश दिया। इसके तुरंत बाद राज्य सरकार ने आदेश जारी कर इस प्रक्रिया पर विराम लगा दिया है। सचिव आवास आर. मीनाक्षी सुंदरम ने इस आदेश की पुष्टि करते हुए कहा कि अब भविष्य में नजूल नीति (Nazul Policy) के अंतर्गत फ्री होल्ड की अनुमति नहीं दी जाएगी।

क्या है नजूल भूमि और क्यों है विवाद?

नजूल भूमि वह सरकारी ज़मीन होती है, जो अंग्रेजों ने स्वतंत्रता से पहले भारतीय रियासतों से अपने नियंत्रण में ली थी। स्वतंत्रता के बाद यह भूमि राज्य सरकारों के पास आ गई, जिसे लीज़ (Lease) के माध्यम से आम लोगों को आवास के लिए दिया गया। वर्षों से कई परिवार इस भूमि पर रह रहे हैं और बाद में उन्होंने इसे फ्री होल्ड में बदलवाने की प्रक्रिया शुरू की।

राज्य सरकार ने इन कब्जाधारियों को जमीन पर स्वामित्व देने के लिए एक नियत शुल्क के बदले फ्री होल्ड की सुविधा दी, जिससे वे इस ज़मीन के वैध मालिक बन सकें। इसके लिए पहले 2009 में और फिर 2021 में नजूल नीति लाई गई।

नजूल नीति 2009 और 2021 की कहानी

नजूल नीति 2009 के तहत हजारों लोगों ने राज्य सरकार को शुल्क देकर ज़मीन का स्वामित्व प्राप्त किया। लेकिन इस नीति को हाईकोर्ट ने जून 2018 में असंवैधानिक घोषित कर दिया। कोर्ट का कहना था कि सरकार की भूमि को इस प्रकार कब्जाधारियों को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।

इस निर्णय से लगभग 8000 परिवारों को बड़ा झटका लगा, जिन्होंने कानूनी प्रक्रिया के तहत फ्री होल्ड कराया था। मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंचा और 31 दिसंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया।

इसके बावजूद राज्य सरकार ने नजूल नीति 2021 को लागू किया और फ्री होल्ड प्रक्रिया फिर शुरू की गई। यह नीति एक वर्ष के लिए लागू रही, जिसे बाद में 10 दिसंबर 2023 तक के लिए बढ़ाया गया।

कोर्ट के ताजा आदेश से फिर खड़ा हुआ संकट

हाल ही में 16 अप्रैल 2025 को नैनीताल हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने फ्री होल्ड की इस प्रक्रिया को फिर से रोक दिया। इसके बाद राज्य सरकार को भी इस पर तत्काल रोक लगानी पड़ी। अब नजूल भूमि के फ्री होल्ड की प्रक्रिया पूरी तरह से बंद हो गई है।

इस फैसले से सबसे ज्यादा असर मैदानी जिलों – देहरादून, उधम सिंह नगर और नैनीताल में रह रहे उन लोगों पर पड़ेगा, जो लंबे समय से नजूल भूमि पर काबिज हैं और जमीन को फ्री होल्ड कराने की प्रक्रिया में लगे हुए थे।

वर्तमान में उत्तराखंड में नजूल भूमि पर लगभग 1.5 लाख लोग बसे हुए हैं। कई कॉलोनियां और बस्तियां इन जमीनों पर दशकों से मौजूद हैं। हालांकि अब शासन के इस निर्णय के बाद इन बस्तियों के नियमितीकरण और स्वामित्व को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।

राज्य सरकार अब सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय का इंतजार कर रही है, जिससे आगे की दिशा तय होगी।

सरकार की ओर से स्थिति स्पष्ट

सचिव आवास आर. मीनाक्षी सुंदरम ने कहा है कि कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए फ्री होल्ड की प्रक्रिया फिलहाल स्थगित कर दी गई है। यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, और अगला निर्णय वहां से आने के बाद ही होगा।


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