किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत का पता इस बात से भी चलता है कि उसके बैंकों का कारोबार कैसा है। बैंकों का कारोबार मुख्य रूप से लोगों से जमा आकर्षित करने और उसे कर्ज के रूप में देकर उससे ब्याज कमाने से चलता है।

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वित्तमंत्री ने बैंकों से कहा- जमा राशि बढ़ाने पर काम करें

उन्होंने कहा कि बैंक ब्याज दरें निर्धारित करने को स्वतंत्र हैं। यही बात केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने आरबीआइ गवर्नर के साथ बैठक में कही। वित्तमंत्री ने कहा कि बैंक अपने मुख्य कारोबार पर ध्यान दें। लोगों से जमा आकर्षित करने के लिए वे आकर्षक योजनाएं चला सकते हैं। दरअसल, सार्वजनिक बैंक निवेश की कमी के चलते गंभीर परेशानियों के दौर से गुजर रहे हैं। कायदे से बैंक अपनी ब्याज दरें रेपो दरों से आधा से लेकर एक फीसद तक ऊपर रख सकते हैं। मगर इस मामले में भी उन्हें कुछ राहत दी गई है, फिर भी उनके पास अपेक्षित जमा नहीं आ पा रहा।

पिछले कुछ वर्षों से लोगों की आमदनी लगातार कम हुई है

हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर

इसकी वजहें साफ हैं। पिछले कुछ वर्षों से लोगों की आमदनी लगातार कम हुई है। पहले जीएसटी की वजह से छोटे कारोबारियों पर बुरा असर पड़ा, फिर कोरोनाकाल में पूर्णबंदी के बाद बहुत सारे कारोबार बंद हो गए, लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं। जिन लोगों के पास नौकरियां हैं भी, उनके वेतन में तुलनात्मक रूप से काफी कम बढ़ोतरी हुई है, जबकि महंगाई काफी बढ़ गई है। इस तरह बहुत सारे लोगों के पास बचत के लिए पैसे हैं ही नहीं कि उन्हें वे बैंकों में रखें। बल्कि इसका उलट यह हुआ है कि छोटे-छोटे काम के लिए भी लोगों को कर्ज लेने पड़ रहे हैं। कर्ज पर ब्याज की भरपाई करना भी बहुत सारे लोगों के लिए कठिन बना हुआ है।

बचत के बारे में लोग तब सोचते हैं, जब उनके पास जरूरी खर्चों से अधिक आमदनी होती है। मगर सरकार लगातार इस हकीकत पर पर्दा डालने का प्रयास करती रही है कि रोजगार और आमदनी के स्रोत लगातार घटे हैं। कुछ दिनों पहले आम बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री ने खुद दोहराया था कि बेरोजगारी कोई समस्या नहीं है, गरीबी लगातार कम हो रही है। अगर सचमुच ऐसा होता, तो सरकार को इस तरह बचत बढ़ाने को लेकर चिंतित न होना पड़ता।

बैंकों में लोगों द्वारा जमा बचत से राष्ट्रीय बचत बनती है। जिस देश के पास राष्ट्रीय बचत जितनी अधिक होती है, उसे अपनी विकास परियोजनाएं चलाने में उतनी ही आसानी होती है। मगर इस वक्त जब चालू खाते में जमा की दर चिंताजनक देखी जा रही है, तो लंबे समय के लिए चलाई जाने वाली बचत योजनाओं में निवेश को लेकर क्या ही दावा किया जा सकता है। अगर बैंक आकर्षक योजनाएं लेकर आएंगे और उन पर अधिक ब्याज की पेशकश भी करेंगे, तो कितने लोग आकर्षित हो पाएंगे, कहना कठिन है।

सरकारी योजनाओं के तहत कर्ज देने की बाध्यता और उनके वापस न लौट पाने, फिर बड़े पैमाने पर कर्जमाफी के चलते भी सार्वजिनक बैंकों के जमा और कर्ज में अंतर आया है। ऐसे में, सरकार बुनियादी पहलुओं पर काम करने के बजाय बैंकों पर दबाव बना कर शायद ही इस समस्या से पार पा सकेगी।


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