
गुप्तकाशी। संवाददाता विशेष श्रीमान दिनेश शास्त्री


उत्तराखंड की केदारघाटी अपनी दिव्यता, सांस्कृतिक गरिमा और लोक आस्थाओं की शक्ति के लिए विशेष पहचान रखती है। यहां के पर्व, मेले और परंपराएं केवल आयोजनों की औपचारिकता नहीं, बल्कि देवभूमि की आत्मा से जुड़े ऐसे अध्यात्मिक पर्व होते हैं, जो जनमानस को देवी-देवताओं की साक्षात उपस्थिति का अनुभव कराते हैं। ऐसा ही एक अद्भुत और दुर्लभ मेला है — जाखधार का जाख मेला, जिसकी तैयारी अब अपने अंतिम चरण में है।
शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता
तीन गांवों में ‘लोकडाउन’, परंपरा की रक्षा में लगा पूरा समाज
परंपराओं को जीवंत बनाए रखने के लिए देवशाल, कोठेडा और नारायणकोटी गांवों में मेले से तीन दिन पहले ही आंतरिक “लॉकडाउन” लागू कर दिया गया है। यह लॉकडाउन कोई सरकारी आदेश नहीं, बल्कि लोक आस्था की मर्यादा का परिणाम है। बाहरी लोगों, यहां तक कि रिश्तेदारों के प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है, ताकि अग्निकुंड की पवित्रता और धार्मिक अनुशासन में कोई व्यवधान न आए।
बीज वापन से शुरू, अग्निकुंड पर समाप्त – एक अनोखा यात्रा क्रम
जाख मेला केवल एक दिन का आयोजन नहीं, बल्कि एक संपूर्ण धार्मिक यात्रा है जो चैत मास की 20 प्रविष्टि से प्रारंभ होती है। उस दिन ‘बीज वापन’ के मुहूर्त के साथ मेले की विधिवत योजना बनती है। इस वर्ष 15 अप्रैल को यह महापर्व बैशाखी के ठीक एक दिन बाद, जाखधार में आयोजित होगा।
गांव-गांव से लकड़ियों का संग्रह, पूजा सामग्री की व्यवस्था, अग्निकुंड की स्थापना — ये सभी कार्य केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि सामाजिक सहभागिता और आस्था का अनुपम उदाहरण हैं। ग्रामीण नंगे पांव, सिर पर टोपी और कमर में वस्त्र बांधकर जब पवित्र बांज और पैंया वृक्ष की लकड़ियां इकट्ठा करते हैं, तो लगता है जैसे प्रकृति स्वयं देवता की सेवा में समर्पित हो गई हो।
पश्वा का संयम: आस्था की कठोर साधना
मेला केवल बाह्य उत्सव नहीं, यह भीतरी तपस्या का भी पर्व है। जाखराज के पश्वा — इस बार नारायणकोटी के सच्चिदानंद पुजारी — दो सप्ताह पूर्व से ही एकांतवास में चले जाते हैं। वे केवल एक बार भोजन करते हैं, परिवार से दूर रहते हैं और अपने तन-मन को देवता के लिए निर्मल बनाते हैं। यह संयम ही उस शक्ति का मूल है जो उन्हें देवता का माध्यम बनने की पात्रता देता है।
अग्निकुंड में नृत्य: जब देवता उतरते हैं अंगारों पर
14 अप्रैल की रात्रि को अग्निकुंड में अग्नि प्रज्वलित की जाएगी। यह अग्नि साधारण नहीं — यह देवता की प्रतीक्षा में धधकता तप है, जिसमें सारी रात जागरण होगा, भजन होंगे, और अंगारे तैयार होंगे। 15 अप्रैल को, जाखराज ढोल-नगाड़ों के साथ कोठेडा व देवशाल से होते हुए जाखधार पधारेंगे।
फिर होगा वह दृश्य जो देखने के लिए हजारों लोग एकत्र होते हैं — जाखराजा दहकते अंगारों पर नृत्य करेंगे, और भक्तों को आशीर्वाद देंगे। यह केवल एक चमत्कार नहीं, यह लोकमानस की उस शक्ति का प्रकटीकरण है जो आस्था को विज्ञान से ऊपर मानती है।
जाखधार — आस्था का जीवंत केंद्र
गुप्तकाशी के पास स्थित जाखधार का जाख मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि 14 गांवों की सामूहिक श्रद्धा का केन्द्र है। नारायणकोटी, कोठेडा, देवशाल, नाला, सेमी, भैंसारी, सांकरी, देवर, गड़तरा, रुद्रपुर, क्यूडी, बणसू, खुमेरा जैसे गांवों के लोग पूरे समर्पण से इस मेले में भाग लेते हैं। किंतु मुख्य उत्तरदायित्व देवशाल, कोठेडा और नारायणकोटी के ग्रामीणों पर रहता है।
विंध्यवासिनी मंदिर, जहां जाखराज की मूर्तियां पूजित होती हैं, से उन्हें कंडी में बैठाकर जाखधार लाया जाता है — यह दृश्य एक आध्यात्मिक यात्रा की तरह होता है, जिसमें देवी-देवता और भक्त एकाकार हो जाते हैं।
जाखराज: क्षेत्रपाल और लोक देवता
गढ़वाल में कई स्थानों पर जाख देवता की पूजा होती है, किंतु गुप्तकाशी – जाखधार का मेला विशिष्ट माना जाता है। यहां जाखराज को ‘क्षेत्रपाल’ कहा जाता है — यानी इस भूमि के रक्षक, सुख-समृद्धि के संवाहक और संकट मोचक। जब वे अंगारों पर नृत्य करते हैं, तो मान्यता है कि समस्त बुरी शक्तियां समाप्त हो जाती हैं और क्षेत्र में सुख-शांति आती है।
भविष्य की पीढ़ी के लिए एक अमूल्य धरोहर
आज जबकि आधुनिकता की आंधी में परंपराएं टूट रही हैं, तब केदारघाटी के इन गांवों का यह प्रयास — लोक परंपराओं को जीवित रखने का — एक प्रेरणा है। यह मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक अस्मिता की अभिव्यक्ति है, जिसे बचाकर रखना आने वाली पीढ़ी का कर्तव्य है।
इस वर्ष 15 अप्रैल को जब जाखराज अंगारों पर नृत्य करेंगे, तो वह केवल एक प्रदर्शन नहीं होगा — वह होगा एक अदृश्य शक्ति का प्रकट रूप, एक ऐसा अनुभव जो आस्था को अनंत बना देता है। केदारघाटी तैयार है एक बार फिर से अपनी आत्मा को देवता के स्वरूप में देखने के लिए।
