कोविड-19 की महामारी के समय से हार्ट अटैक के मरीज की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. पहले इसका कारण सिर्फ कोरोना के इंफेक्शन को माना जा रहा था. लेकिन वैक्सीनेशन के बाद भी जब हार्ट डिजीज के मामलों में गिरावट नहीं दिखी तो वैक्सीन की क्रेडिबिलिटी पर सवाल उठे.

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हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स / प्रिंट मीडिया : शैल ग्लोबल टाइम्स/ संपादक ;अवतार सिंह बिष्ट ,रूद्रपुर उत्तराखंड

इसमें ब्रिटेन की कंपनी एस्ट्राजेनेका पर कोर्ट केस भी हुआ जिसे वैक्सीनेशन के बाद ब्रेन डैमेज का शिकार हुए शख्स ने किया.

हाल ही में कोर्ट में एस्ट्रजेनेका ने कोविशील्ड को लेकर जो बयान दिया उसे सुनकर इसे वैक्सीन लगवाने वाला हर व्यक्ति चिंता में पड़ गया है. बता दें कि कंपनी ने अदालत में कोविशील्ड के साइड इफेक्ट को बताते हुए कहा है कि इससे बॉडी में ब्लड क्लोटिंग हो सकती है और प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं, जो कि हार्ट अटैक, स्ट्रोक का कारण बन सकता है. लेकिन इसकी संभावना बहुत ही कम है. ऐसे में यदि आप भी अपनी हेल्थ को चिंतित हैं तो इन एक्सपर्ट की राय को एक बार जरूर जान लीजिए-

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भारत में कितना हुआ कोविशील्ड का वैक्सीनेशन

कोविड-19 का सबसे पहला और प्रभावशाली वैक्सीन साबित होने पर भारत सरकार ने देश में कोविशील्ड वैक्सीन को आम जनता के लिए उपलब्ध करवाया. वर्ल्ड लार्जेस्ट वैक्सीनेशन कैंपेन के तरह करोड़ों लोगों ने यह वैक्सीन लगवाया. सरकारी डेटा के अनुसार, 170 करोड़ लोगों ने कोविशील्ड का टीकाकरण करवाया है.

क्या कोविशील्ड लगवाने वाले हर व्यक्ति को खतरा?

डॉ. राम उपाध्याय वैज्ञानिक, हार्वर्ड मेडि, स्कूल, बोस्टन, यूएसए ने भास्कर से बातचीत में बताया कि सब का मेटाबॉलिज्म एक जैसा नहीं होता है. किसी को वैक्सीन का साइड इफेक्ट जीरो होता है तो किसी को 100%. इसीलिए वैक्सीन से जान का रिस्क 10 लाख में एक को ही है.

वैक्सीन लगाने के 6 महीने तक ही खतरा

डॉ. विकास कुमार, न्यूरो सर्जन, रिम्स, रांची (झारखंड) ने भारस्कर से बातचीत में बताया है कि अब डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि किसी भी वैक्सीन के साइड इफेक्ट 6 महीने में दिख जाते हैं, लेकिन अब दो साल से ज्यादा का समय बीत चुका है, ऐसे में किसी जान लेवा रिस्क होने के चांस कम हैं. उन्होंने अमेरिकन सोसाइटी ऑफ हेमेटोलॉजी के पब्लिकेशन की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा है कि वैक्सीन से साइड इफेक्ट का खतरा 10 लाख लोगों से 3 से 15 को ही होता है. इनमें भी 90% ठीक हो जाते हैं. इसमें मौत की आशंका सिर्फ 0.00013% ही है. यानी 10 लाख में 13 को साइड इफेक्ट है, तो इनमें से जानलेवा रिस्क सिर्फ एक को होगी.


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