इसमें ज्योतिष के जानकारों के साथ ही कई मंदिरों के प्रमुख व धार्मिक संगठन के सदस्य शामिल हुए। कई शास्त्रों और पंचांगों का उल्लेख करते हुए कार्तिक अमावस्या के दूसरे दिन एक नवंबर को दीपावली मनाने का निर्णय एक मत से लिया गया।
हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट
धर्मशास्त्र के जानकार डॉ विनायक पांडेय ने कहा कि 31 अक्टूबर को चतुर्दशी तिथि शाम चार बजे तक है। इसके बाद से कार्तिक अमावस्या शुरू होगी, जो एक नवंबर को शाम 6.17 बजे तक रहेगी। ऐसी स्थिति में ज्योतिष ग्रंथ पुरुषार्थ चिंतामणि में स्पष्ट उल्लेख है कि दूसरे दिन की अमावस्या ग्रहण की जानी चाहिए।
प्रदोषकाल के लिए धर्म शास्त्र में उल्लेख है कि दोनों दिन अमावस्या प्रदोषकाल को स्पर्श कर रही हो तो दूसरे दिन की तिथि को स्वीकार करना चाहिए। दूसरे दिन एक नवंबर को तुला राशि में सूर्य और चंद्रमा 15 डिग्री में रहेंगे, इसमें महालक्ष्मी पूजन करने का श्रेष्ठ योग है। इस दिन ही पुष्कर योग और स्वाति नक्षत्र भी मिल रहा है।
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आगम शास्त्र में है यह उल्लेख
डॉ पांडेय का कहना है कि एक प्रश्न यह भी है कि मध्यरात्रि में पूजन दूसरे दिन कैसे किया जा सकता है। इसका निर्णय भी आगम शास्त्र में मिलता है। पूजा की हमारे यहां दो पद्धति है काली क्रम और श्री क्रम। दूसरे दिन दीपावली का जो निर्णय लिया गया है वह श्री क्रम से पूजन के लिए लिया है। पहले दिन मध्यरात्रि को पूजन काली क्रम की पूजा के लिए है। उस दिन श्यामा पूजन, भगवती कामाख्या और भगवती काली का पूजन होगा।
काशी और उज्जैन के विद्वान दे चुके 31 को दीपावली पर अपना मत
दीपावली को लेकर काशी के विद्वानों ने अपना मत देते हुए कहा कि 31 अक्टूबर को दीपावली मनाना शास्त्रोचित है। इससे पहले ही उज्जैन के विद्वान 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने की बात कह चुके हैं। इसके पीछे बीएचयू के विश्व पंचांग के समन्वयक प्रो. विनयकुमार पांडे और श्रीकाशी विद्वत परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रो. रामचंद्र पांडेय ने कहा था कि पारंपरिक गणित से निर्मित पंचांगों में कोई भेद नहीं है। सभी पंचांगों में अमावस्या का आरंभ 31 अक्टूबर को सूर्यास्त से पहले होकर एक नवंबर को सूर्यास्त के पूर्व ही समाप्त हो रहा है। इससे पूरे देश में पारंपरिक सिद्धांतों से निर्मित पंचांगों के अनुसार 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाई जाना सिद्ध है।
काशी में जुटे विद्वानों ने तय कर दिया है कि पूरे देश में एक साथ 31 अक्टूबर को ही दिवाली मनाई जाएगी। दीप ज्योति पर्व दिवाली को लेकर भ्रम का काशी के विद्वानों ने निवारण कर दिया है। गणितीय मानों, धर्मशास्त्रीय वचनों, दृश्य एवं पारंपरिक मतों के आधार पर सर्वसम्मति से इसी दिन दीपावली मनाने को शास्त्रोचित बताया गया है।
ऐसे लिया गया 31 अक्टूबर को दिवाली मनाने का फैसला – Diwali Kab Hai Date 2024
- बनारस हिंदू विश्व विद्यालय (बीएचयू) के संस्कृत धर्म विद्या धर्म विज्ञान संकाय के ज्योतिष विभाग में बैठक आयोजित की गई, जिसमें श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद, श्रीकाशी विद्वत परिषद, पंचांगकारों तथा ज्योतिर्विदों ने भाग लिया।
- सभी विद्वानों ने विभिन्न बिंदुओं पर विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाने के पक्ष में निर्णय दिया। बैठक के बाद ज्योतिष विभाग में पत्रकार वार्ता आयोजित कर आधिकारिक जानकारी दी गई।
- बीएचयू के विश्व पंचांग के समन्वयक प्रो. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि पारंपरिक गणित से निर्मित पंचांगों में किसी प्रकार का भेद नहीं है। सभी पंचांगों के अनुसार अमावस्या का आरंभ 31 अक्टूबर को सूर्यास्त से पहले हो रहा है।
- प्रो. विनय कुमार पांडेय ने आगे बताया कि अमावस्या तिथि अगले दिन अर्थात 1 नवंबर को सूर्यास्त के पूर्व ही समाप्त हो रही है। इससे पारंपरिक सिद्धांतों से निर्मित पंचांगों के अनुसार 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाया जाना एक मत से सिद्ध है।
दृश्य गणित से साधित पंचांगों में भी कोई भेद नहीं
दृश्य गणित से साधित पंचांगों के अनुसार देश के कई भागों में तो अमावस्या 31 अक्टूबर को सूर्यास्त के पहले आरंभ होकर एक नवंबर को सूर्यास्त के बाद एक घटी से पहले समाप्त हो रही है। इससे उन क्षेत्रों में भी दीपावली को लेकर कोई भेद शास्त्रीय विधि से उपस्थित नहीं है और वहां भी दीपावली 31 अक्टूबर को निर्विवाद रूप में सिद्ध हो रही है। – प्रो. रामचन्द्र पांडेय, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, श्रीकाशी विद्वत परिषद
इसलिए पैदा हुईं विरोधाभासी स्थितियां
देश के कुछ हिस्सों जैसे गुजरात, राजस्थान और केरल के कुछ क्षेत्रों में अमावस्या 31 अक्टूबर के सूर्यास्त से पहले आरंभ होकर एक नवंबर को सूर्यास्त के बाद प्रदोष में कुछ काल तक व्याप्त है। इससे 31 अक्टूबर और 1 नवंबर की स्थिति को लेकर कुछ विरोधाभासी स्थितियां उत्पन्न हो गई हैं, लेकिन धर्मशास्त्रीय वचनों के क्रम में वहां भी दिवाली 31 अक्टूबर को ही मनाया जाना तय हुआ है।