
उत्तराखंड की धामी सरकार ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि इच्छाशक्ति, तकनीकी नवाचार और पारदर्शी प्रशासनिक व्यवस्था से किसी भी क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन संभव है। खनन विभाग, जिसे कभी भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियों का अड्डा माना जाता था, आज प्रदेश के लिए राजस्व का मजबूत स्रोत बनकर उभरा है। वर्ष 2024-25 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा तय किए गए 875 करोड़ रुपये के राजस्व लक्ष्य को विभाग ने पार कर लिया है — और यह अपने आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
ई-नीलामी और ई-टेंडरिंग प्रणाली के जरिये खनन पट्टों का पारदर्शी आवंटन, आरआईएफडी ट्रैकिंग, नाइट विजन कैमरे और जीपीएस आधारित निगरानी तंत्र ने न सिर्फ अवैध खनन पर लगाम कसी, बल्कि खनन कार्यों में तकनीकी अनुशासन भी स्थापित किया। 45 माइन चेक पोस्टों की सक्रियता और जिला स्तर पर गठित एंटी-इलीगल माइनिंग टास्क फोर्स ने राज्य सरकार के “जीरो टॉलरेंस फॉर करप्शन” के संकल्प को धरातल पर उतारने का कार्य किया।


वर्ष 2020-21 में जहाँ मात्र 18.05 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला गया था, वहीं इस वर्ष 2176 प्रकरणों में 74.22 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूल किया गया—जो कि चार गुना वृद्धि है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार न केवल राजस्व जुटाने में सक्षम रही, बल्कि उसने अवैध खनन पर प्रभावी अंकुश भी लगाया।
उल्लेखनीय है कि खनन क्षेत्र में पारदर्शिता और कड़े नियमों के बावजूद हजारों युवाओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी मिला है। यह विकास का वह मॉडल है जिसमें न सिर्फ अर्थव्यवस्था को बल मिलता है, बल्कि युवाओं को सम्मानजनक जीवनयापन का अवसर भी प्राप्त होता है।
जो लोग खनन को लेकर सरकार पर प्रश्नचिह्न खड़े करते थे, आज उनकी बोलती बंद हो गई है। विरोधियों के पास अब न तो आंकड़े हैं और न ही कोई ठोस तर्क। प्रदेश की जनता देख रही है कि किस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग कर उत्तराखंड को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से सक्षम बनाने का काम धामी सरकार कर रही है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में खनन विभाग की यह उपलब्धि केवल एक सरकारी रिपोर्ट नहीं, बल्कि गुड गवर्नेंस का जीवंत प्रमाण है। उत्तराखंड अब राजकोट नहीं, बल्कि “राज-खोत” बन गया है—जहाँ ईमानदार मेहनत और पारदर्शी प्रशासन से समृद्धि का खनन हो रहा है।
उत्तराखंड में खनन नीति को लेकर धामी सरकार ने पारदर्शिता और विकासोन्मुख दृष्टिकोण अपनाया है। सरकार ने राजस्व वृद्धि, रोजगार सृजन और पर्यावरण संरक्षण के संतुलन को प्राथमिकता दी है। ई-नीलामी जैसे डिजिटल उपायों से भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है। वहीं, विपक्ष केवल आलोचना तक सीमित है—जब सत्ता में थे तब खनन माफियाओं को संरक्षण देते रहे और अब नैतिकता की दुहाई दे रहे हैं। धामी सरकार की सख्ती से खनन क्षेत्र में अनुशासन आया है, जबकि विपक्ष अभी भी दिशाहीन और तथ्यहीन बयानबाज़ी में उलझा हुआ है।
