उत्तराखण्ड क्रांति दल : राज्य निर्माण आंदोलन की रीढ़, लेकिन संघर्षशील भविष्य उत्तराखण्ड क्रांति दल (यूकेडी), उत्तराखण्ड का एक ऐसा क्षेत्रीय राजनीतिक संगठन है जिसने राज्य निर्माण की चिंगारी को सुलगाया और उसे जन आंदोलन में बदल दिया। 26 जुलाई 1979 को कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. डी.डी. पन्त की अध्यक्षता में नैनीताल में आयोजित एक ऐतिहासिक बैठक में इस दल की नींव रखी गई। इस बैठक में इंद्रमणि बडोनी, बिपिन चंद्र त्रिपाठी, काशी सिंह ऐरी जैसे दूरदर्शी नेता भी उपस्थित थे, जिन्होंने एक अलग पहाड़ी राज्य के स्वप्न को मूर्त रूप देने के लिए जीवन समर्पित किया। यूकेडी की स्थापना उत्तर प्रदेश की उपेक्षा और पर्वतीय क्षेत्रों की अनदेखी के विरोध में हुई थी। इसका प्रमुख उद्देश्य था – एक अलग राज्य का गठन जो स्थानीय जनता द्वारा शासित हो, ताकि पर्वतीय जनजीवन, संस्कृति, पर्यावरण और सामाजिक न्याय की रक्षा की जा सके। इस दल ने ‘क्षेत्रवाद’, ‘धर्मनिरपेक्षता’, ‘लोकतांत्रिक समाजवाद’ और ‘नागरिक राष्ट्रवाद’ जैसी विचारधाराओं को अपनाते हुए पर्वतीय जनमानस को संगठित किया। 1980 और 1990 के दशक में उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन का सबसे मुखर चेहरा बनकर उभरा यूकेडी, निरंतर सत्याग्रह, प्रदर्शन और जनजागरण अभियानों के माध्यम से सरकारों पर दबाव बनाता रहा। अंततः 9 नवम्बर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ, जिसे यूकेडी की ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में देखा जाता है। हालांकि, राज्य गठन के बाद यूकेडी ने 2002 के विधानसभा चुनावों में 4 सीटें जीतकर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की, परंतु समय के साथ यह दल आंतरिक गुटबाजी, नेतृत्व संकट और संगठनात्मक शिथिलता का शिकार होता चला गया। राष्ट्रीय दलों – कांग्रेस और भाजपा – के संसाधन और संगठनात्मक प्रभुत्व ने यूकेडी को हाशिये पर धकेल दिया। परिणामस्वरूप, आज यह दल उत्तराखण्ड विधानसभा में एक भी सीट नहीं रखता। फिर भी यूकेडी की प्रासंगिकता खत्म नहीं हुई है। यह आज भी क्षेत्रीय अस्मिता, पलायन, बेरोजगारी, स्थानीय अधिकार और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर मुखर है। यह पार्टी उत्तराखण्डी नागरिकता को समावेशी रूप में परिभाषित करती है, जातिवाद से दूर रहकर सभी स्थानीयों के हित की बात करती है – यह इसे वामपंथी राष्ट्रवादी दलों जैसे स्कॉटिश नेशनल पार्टी से जोड़ती है, हालांकि यूकेडी की नीति पूर्णतः संविधान सम्मत और गैर-अलगाववादी रही है। आज जब उत्तराखण्ड को बने 25 साल पूरे हो चुके हैं, यूकेडी के पास फिर से एक अवसर है – लोगों को यह बताने का कि जो सपना राज्य गठन के समय देखा गया था, वह अभी अधूरा है, और उसकी पूर्ति के लिए एक सशक्त क्षेत्रीय आवाज की जरूरत है। अगर यूकेडी आत्मावलोकन कर संगठन को एकजुट करे और अपनी ऐतिहासिक भूमिका को जनमानस तक पहुंचाए, तो यह दल भविष्य में भी उत्तराखण्ड की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

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1979 को कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. डीडी पन्त की अध्यक्षता में नैनीताल में एक सभा हुयी थी. इस सभा में बिपिन चंद्र त्रिपाठी, इंद्रमणि बडोनी और काशी सिंह ऐरी सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

उत्तराखण्ड क्रान्ति दल की स्थापना का उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्र के सभी जिलों को उत्तर प्रदेश से अलग कर एक नया राज्य बनाना था, ताकि पर्वतीय क्षेत्र का विकास वहाँ की स्थानीय जनता के हाथों में आ जाये और पहाड़ी लोगों के लिये सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जा सके.

उत्तराखण्ड क्रान्ति दल (यूकेडी) की स्थापना हेतु 26 जुलाई 1979 को कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. डीडी पन्त की अध्यक्षता में नैनीताल में एक सभा हुयी थी. इस सभा में बिपिन चंद्र त्रिपाठी, इंद्रमणि बडोनी और काशी सिंह ऐरी सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

उत्तराखण्ड क्रान्ति दल की स्थापना का उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्र के सभी जिलों को उत्तर प्रदेश से अलग कर एक नया राज्य बनाना था, ताकि पर्वतीय क्षेत्र का विकास वहाँ की स्थानीय जनता के हाथों में आ जाये और पहाड़ी लोगों के लिये सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जा सके.

यह सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश के भीतर रहते हुये पहाड़ के लोगों की मूलभूत समस्यायों का उचित तरीके से समाधान नहीं होता था. उत्तराखण्ड क्रांति दल का उद्देश्य यही था कि पहाड़ के निवासियों के लिये मूलभूत सुविधायें जुटाने का मार्ग खोजा जा सके.

उत्तराखण्ड क्रान्ति दल ने 1980 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधान सभा में प्रवेश किया। जसवंत सिंह बिष्ट रानीखेत निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले विधायक बने. बाद में काशी सिंह ऐरी ने पिथौरागढ़ से उत्तर प्रदेश विधान सभा में प्रवेश किया.

1988 में इन्द्रमणि बडोनी ने उत्तराखंड क्रांति दल के तत्वाधान में 105 दिनों तक पिथौरागढ़ के तवाघाट से देहरादून तक पदयात्रा की थी. उन्होंने गांव में घर-घर जाकर लोगों को अलग राज्य की मांग करने के कारणों के बारे में बताया.

1992 में इन्द्रमणि बडोनी ने बागेश्वर में मकर संक्रांति के दिन उत्तराखण्ड क्रान्ति दल की तरफ से गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने की घोषणा की थी.

1994 में, उत्तराखण्ड क्रान्ति दल की ने उत्तराखण्ड निवासियों के लिये एक अलग राज्य की संवैधानिक वैधता के लिए जन आंदोलन शुरू किया. इन विरोध प्रदर्शनों और सभाओं को इंद्रमणि बडोनी की मृत्यु से और बढ़ावा मिला, जो उत्तराखण्ड क्रान्ति दल की विचारधारा के अग्रदूत थे.

1994 में 1 और 2 अक्टूबर की रात दिल्ली में प्रदर्शन करने जा रहे हजारों लोगों पर, ख़ास कर युवाओं और महिलाओं पर, पुलिस द्वारा गोलीबारी की गयी. महिलाओं करे ऊपर जघन्य अपराधपूर्ण कृत्य किये गये. यह केन्द्र की कांग्रेस सरकार के निर्देश पर उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर पुलिस द्वारा किया गया सबसे जघन्य कृत्य था.

उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के अथक प्रयासों, संघर्ष और उत्तराखंड की जनता के बलिदानों के कारण नवंबर 2000 में उत्तरांचल नाम से एक अलग राज्य का सृजन हुआ. कुछ साल बाद इस नये राज्य का नाम बदल कर उत्तराखण्ड कर दिया गया.✍️ अवतार सिंह बिष्ट,

संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!

उत्तराखंड राज्य के निर्माण में राज्य के जनता का , ख़ास कर उन लोगों का जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया, बहुत बड़ा योगदान है.

साथ ही 1998 से 2004 तक केन्द्र में सत्ता में रही अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व वाली भाजपा – एनडीए सरकार को भी इस शुभ कार्य का श्रेय (क्रेडिट) देना उचित होगा. वाजपेयी जी की सरकार ने वर्ष 2000 में उत्तराखंड के साथ साथ झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्यों का भी सृजन किया था

2002 में गठित पहली उत्तराखंड विधानसभा में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल को राज्य की विधान सभा की 70 सीटों में से केवल 7 सीटों पर जीत मिली. इसके बाद यह संख्या लगातार गिरती रही और अब इस पार्टी का विधान सभा में कोई सदस्य नहीं है.

उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) के इतिहास में स्वर्गीय विपिन चंद्र त्रिपाठी एक प्रेरणादायी और संघर्षशील नेता रहे। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों की उपेक्षा, बेरोजगारी, पलायन और जल-जंगल-ज़मीन की लूट के खिलाफ जनता को संगठित किया। वे समाजवादी विचारधारा के प्रखर समर्थक थे और चिपको आंदोलन से लेकर राज्य आंदोलन तक की हर लड़ाई में अग्रिम पंक्ति में रहे। उनका योगदान उत्तराखंड को वैचारिक आधार देने में निर्णायक रहा।

काशीपुर शिविर आंदोलन यूकेडी के संघर्षों का एक ऐतिहासिक पड़ाव था, जहाँ छात्र-युवाओं, बुद्धिजीवियों और आंदोलनकारियों ने एकजुट होकर पहाड़ की अस्मिता और हक के लिए हुंकार भरी। इस शिविर में प्रदेश की समस्याओं पर गंभीर मंथन हुआ और आंदोलन की दिशा तय हुई। यह शिविर राज्य आंदोलन को जनांदोलन में बदलने का केंद्र बना। विपिन चंद्र त्रिपाठी की दूरदृष्टि और नेतृत्व ने इस शिविर को वैचारिक ऊर्जा से भर दिया।

इन दोनों ने मिलकर उत्तराखंड राज्य के निर्माण की नींव रखी, जहाँ केवल राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना की भी मजबूत झलक थी।

यदि आप उत्तराखंड राज्य के बारे में, उत्तराखंड क्रांति दल के बारे में, उत्तराखंड आंदोलन के बारे में और उत्तराखंड राज्य की स्थापना के बारे में अधिक जानकारी पाना चाहते हैं तो ✍️ अवतार सिंह बिष्ट,

संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!

दिवाकर भट्ट उत्तराखंड क्रांति दल के एक प्रखर नेतृत्वकर्ता रहे, जिन्होंने राज्य निर्माण आंदोलन में गांव-गांव जाकर जनजागरण किया। उन्होंने युवाओं को संगठित कर आंदोलन को धार दी और कई बार जेल भी गए। उनका संघर्ष पहाड़ी अस्मिता और अधिकारों की बुलंद आवाज बना।


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