
संपादकीय लेख; एलयूसीसी (LUCC) घोटाला सिर्फ एक उदाहरण है कि कैसे ठगी और भ्रष्टाचार आम जनता की मेहनत की कमाई को लूट रहे हैं। और इस सबसे चिंताजनक बात यह है कि ऐसे मामलों में अक्सर असली दोषी — बड़े रसूख वाले नेता, नौकरशाह और उनके संरक्षणदाता — कानून की पकड़ से बाहर रह जाते हैं।


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता]
एलयूसीसी घोटाला और सशक्त लोकायुक्त की जरूरत: उत्तराखंड को चाहिए भ्रष्टाचार मुक्त भविष्य
उत्तराखंड में एक बार फिर एक बड़े घोटाले ने शासन और प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एलयूसीसी (The Loni Urban Credit Society) घोटाले में आम जनता की मेहनत की कमाई को झांसा देकर हड़प लिया गया। सीबीसीआईडी द्वारा अब तक आठ अभियोग दर्ज किए जा चुके हैं और कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं, लेकिन क्या यही काफी है?
घोटाले में शामिल लोगों ने देहरादून, टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग जैसे जिलों में लोगों को तरह-तरह के प्रलोभन देकर निवेश कराया और फिर वह पैसा गबन कर लिया। कुछ आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है, लेकिन जनता जानती है कि यह सिर्फ “धक के तीन पात” वाली कहावत को दोहराने जैसा है — असली गुनहगारों तक हाथ शायद ही कभी पहुँचता है।
सीबीसीआईडी ने आरोपियों की संपत्ति जब्त करने और बिक्री पर रोक लगाने की प्रक्रिया शुरू की है। आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय, पासपोर्ट विभाग और पंजीयक सहकारी समितियों से पत्राचार भी किया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सब सिर्फ प्रक्रिया निभाने की कवायद भर है?
हर बार यही होता है। कोई नया घोटाला उजागर होता है, जांच की घोषणा होती है, कुछ दिखावटी गिरफ्तारियां होती हैं, फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। इस प्रणाली में जब तक राजनीतिक संरक्षण और नौकरशाही की मिलीभगत बनी रहेगी, तब तक आम आदमी को न्याय नहीं मिलेगा।
अब वक्त है — सशक्त लोकायुक्त का गठन करने का।
उत्तराखंड एक आंदोलन की कोख से जन्मा राज्य है। राज्य आंदोलनकारियों ने एक स्वच्छ, पारदर्शी और जवाबदेह शासन व्यवस्था का सपना देखा था। लेकिन आज उस सपने को खोखला कर दिया गया है। यदि वास्तव में सरकार की मंशा भ्रष्टाचार से लड़ने की है, तो सबसे पहले एक सशक्त लोकायुक्त का गठन किया जाए, जिसे स्वतंत्र जांच और अभियोजन की पूरी शक्ति हो, और जो नेताओं से लेकर शीर्ष नौकरशाहों तक, सभी को कानून के कटघरे में खड़ा कर सके।
यह सिर्फ एक मांग नहीं है — यह उत्तराखंड के भविष्य की जरूरत है। जब तक जनप्रतिनिधि और अफसर खुद को कानून से ऊपर समझते रहेंगे, तब तक कोई भी जांच, कोई भी कार्रवाई सिर्फ एक दिखावा होगी। हमें एक ऐसा लोकायुक्त चाहिए, जो केवल नाम का नहीं, बल्कि काम का हो — जनहित का प्रहरी, और भ्रष्टाचार के खिलाफ असली हथियार।
अब वक्त है जनता के जागने का। चलिए, एक जनआंदोलन की तरह सशक्त लोकायुक्त की मांग को उठाएं। ताकि आने वाली पीढ़ियां एक ईमानदार और न्यायपूर्ण उत्तराखंड में सांस ले सकें।
