अयोध्या के श्रीराम मंदिर में भगवान रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है, जिसके बाद देश के हर प्रदेश, जिले, शहर और कस्बे अयोध्या से जगमगा रहे हैं। मंदिर के गर्भगृह में श्रीराम की पांच वर्षीय बालस्वरूप मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि आखिर क्या वजह है जिस कारण मंदिर में पांच वर्षीय मूर्ति को ही स्थापित किया गया है। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
Hindustan Global Times। प्रिन्ट न्यूज़,
शैल ग्लोबल टाइम्स।
अवतार सिंह बिष्ट, रूद्रपुर उत्तराखंड,
मूर्ति से जुड़ी कुछ खास बातें
सबसे पहले हम मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में जान लेते हैं। गर्भगृह में जिस मूर्ति की स्थापना की गई है, उस मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच की है। भगवान श्रीराम बालस्वरूप में कमल के आसन पर खड़े हुए हैं, जिनके बाएं ओर हनुमान, मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, ऊं, शेषनाग और सूर्य हैं, जबकि श्रीराम के दाएं ओर गदा, स्वास्तिक, हाथ में धनुष, परशुराम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि और गरूड़ है। मूर्ति को मुख्यरूप से मैसूर के अरूण योगीराज द्वारा बनाया गया है।
बालस्वरूप मूर्ति की ही स्थापना क्यों
अब सवाल है कि आखिर मंदिर के गर्भगृह में पांच वर्ष की मूर्ति की ही स्थापना क्यों की गई है, तो आपको बता दें कि हिंदू धर्म में बाल्याकल पांच वर्ष की आयु तक माना जाता है। वहीं, पांच वर्ष की आयु के बाद बोधगम्य शुरू हो जाता है। इसके साथ ही मान्यताओं के मुताबिक, जन्मभूमि में बालस्वरूप में ही उपासना की जाती है।
चाणक्य समेत अन्य विद्वानों ने भी पांच वर्ष की आयु को वह आयु माना है, जब किसी बच्चे को गलती का अहसास नहीं होता है और इसके बाद उसे बोध होना शुरू हो जाता है। चाणक्य नीति में इन दोनों चरणों का कुछ इस तरह से वर्णन किया गया हैः
पांच वर्ष लौं लालिये, दस सौं ताड़न देइ। सुतहीं सोलह बरस में, मित्र सरसि गनि लेइ।।
वहीं, काकभुशुंडी ने भी श्रीराम के बाल स्वरूप को लेकर वर्णन किया है, जिसमें कहा गया है कि
तब तब अवधपुरी मैं जाऊं। बालचरित बिलोकि हरषाऊं॥
जन्म महोत्सव देखउं जाई। बरष पांच तहं रहउं लोभाई॥
इसके अर्थ की बात करें, तब-तब मैं अवधपुरी जाता हूं, तो उनकी बाल लीलाओं को देखकर खुश हो जाता हूं। वहां जाकर मैं जन्म महोत्सव देखता हूं और उनकी लीला के लोभ में पांच वर्ष तक वही रहता हूं।