उधम सिंह नगर उत्तराखंड में जिला पंचायत अध्यक्ष पद को लेकर राजनीतिक सरगर्मी अपने चरम पर है। एक ओर भाजपा के पास संख्या बल के दम पर बहुमत का दावा है, तो दूसरी ओर कांग्रेस रणनीतिक तौर पर सक्रिय दिख रही है। ऐसे में निर्दलीय और छोटे दलों के प्रतिनिधियों की भूमिका ‘किंगमेकर’ की बनती नजर आ रही है।
कांग्रेस: संख्या कम, चाल मजबूत,कांग्रेस की स्थिति संख्यात्मक रूप से पिछली बार से बेहतर नहीं है, लेकिन इस बार उसने रणनीतिक गठबंधन और समय से पहले संवाद की नीति अपनाई है। पुराने धुरंधर और कुछ बागी चेहरों को साधकर कांग्रेस फ्रंट फुट पर खेलने की तैयारी में है। सूत्रों के अनुसार पार्टी ने संभावित निर्दलीयों और कुछ भाजपा के असंतुष्ट चेहरों से भी संपर्क साधना शुरू कर दिया है।
बीजेपी: बहुमत है, चेहरा तय नहीं,भाजपा समर्थित जिला पंचायत सदस्यों की संख्या अन्य किसी दल से ज्यादा है। लेकिन अब तक प्रत्याशी चयन को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। पार्टी के अंदरुनी गुटबाजी और संभावित चेहरों को लेकर चल रही खींचतान ने तस्वीर को धुंधला कर दिया है। कुछ नाम तो ऐसे हैं जो पिछली बार से ही सक्रिय लॉबिंग में जुटे हैं, लेकिन इस बार आरक्षण की बाध्यता ने समीकरण बदल दिए हैं।
निर्दलीय: ताले की चाबी इन्हीं के पास,इस बार का चुनाव क्लीन स्वीप कोई नहीं कर सकता। यही वजह है कि निर्दलीय प्रत्याशी और छोटे दलों के चुने गए सदस्य “डार्क हॉर्स” बन चुके हैं। सत्ता की चाबी इन्हीं के पास है। ये वो चेहरे हैं जिन पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजर है। चुनावी गठजोड़ इन्हीं के समर्थन से फाइनल होगा।
6 अगस्त को खुलेगा पत्तों का खेल,राज्य सरकार द्वारा जिला पंचायत अध्यक्ष पदों की अंतिम आरक्षण सूची 6 अगस्त को जारी की जाएगी। इसके बाद प्रत्याशी चयन, नामांकन प्रक्रिया, लॉबिंग और अंततः 20 अगस्त के आसपास संभावित मतदान तक राजनीतिक समीकरणों में तेजी से बदलाव देखने को मिलेगा।
सत्ता की चाबी निर्दलीयों के पास, वहीं बनेगा अध्यक्ष?उधम सिंह नगर में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर जोर-आजमाइश चरम पर है, लेकिन इस बार बाजी किसके हाथ लगेगी, इसका फैसला सीधे-सीधे बहुमत से नहीं, बल्कि निर्दलीयों की करवट से तय होगा। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दल संख्या में निर्णायक स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में जिन निर्दलीय प्रत्याशियों ने पंचायत चुनावों में जीत हासिल की है, उनकी राजनीतिक अहमियत अचानक बढ़ गई है।
इन निर्दलीयों के पास ‘किंगमेकर’ नहीं बल्कि खुद ‘किंग’ बनने की भी संभावना है। सूत्रों के मुताबिक कुछ निर्दलीय उम्मीदवार बड़ी पार्टियों से संपर्क में हैं और जैसे ही आरक्षण सूची स्पष्ट होगी, वे पार्टी में शामिल होकर अध्यक्ष पद की दावेदारी कर सकते हैं। खास बात यह है कि निर्दलीय चेहरों को लेकर दलों के अंदर भी कम विरोध होता है, जिससे पार्टी लाइन से हटकर समर्थन भी मिल सकता है।


इस बार का समीकरण साफ है — जिस करवट निर्दलीय बैठेंगे, वहीं की ताजपोशी होगी। अगर इनमें से कोई एक मजबूत उम्मीदवार पार्टी ज्वाइन कर लेता है, तो उसके जिला पंचायत अध्यक्ष बनने की संभावनाएं सबसे अधिक होंगी।

