H DFC बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर और CEO सशिधर जगदीशन के खिलाफ धोखाधड़ी और चीटिंग का केस दर्ज हुआ है, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट की एक नहीं, बल्कि कई बेंचों ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है।

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असल में, ये मामला लीलावती किरतिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट की ओर से दायर एक शिकायत से जुड़ा है। ट्रस्ट का आरोप है कि सशिधर जगदीशन ने 2.05 करोड़ रुपये की रिश्वत ली, ताकि वह चेतन मेहता ग्रुप (Chetan Mehta Group) को ट्रस्ट की मैनेजमेंट में गैरकानूनी तरीके से नियंत्रण बनाए रखने में मदद कर सकें।

ट्रस्ट का कहना है कि जगदीशन ने एक प्रमुख प्राइवेट बैंक के प्रमुख पद पर रहते हुए अपनी स्थिति का दुरुपयोग किया और एक चैरिटेबल ट्रस्ट की आंतरिक गतिविधियों में हस्तक्षेप किया।

अब इस केस में HDFC बैंक के CEO ने FIR को खारिज करने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया, लेकिन हैरानी की बात ये है कि जैसे-जैसे ये मामला अलग-अलग बेंचों के सामने गया, हर बार किसी न किसी वजह से जजों ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।

अब तक किन बेंचों ने खुद को अलग किया?

सबसे पहले यह मामला जस्टिस ए एस गडकरी और जस्टिस राजेश पाटिल की बेंच के सामने गया। लेकिन जस्टिस पाटिल ने खुद को अलग कर लिया।

फिर केस जस्टिस सारंग कोतवाल की बेंच के पास गया, लेकिन उन्होंने भी सुनवाई से इनकार कर दिया।

इसके बाद जस्टिस रेवती मोहिते देरे, जी एस कुलकर्णी, अरिफ डॉक्टर, बी पी कोलाबावाला और एम एम साथाये की बेंचों के पास मामला गया, लेकिन सभी ने किसी न किसी कारण से खुद को अलग कर लिया।

गुरुवार को जस्टिस एम एस सोनक और जितेन्द्र जैन की बेंच के सामने मामला पहुंचा। यहां पर एक जज ने साफ तौर पर बताया कि उनके पास HDFC बैंक के कुछ शेयर हैं।

आरोपी जगदीशन के वकील अमित देसाई को इससे कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन ट्रस्ट की ओर से वकील नितिन प्रधान ने आपत्ति जताई, जिसके बाद इस बेंच ने भी खुद को अलग कर लिया।

अब यह मामला फिर किसी नई बेंच के पास भेजा जाएगा।

FIR मुंबई के बांद्रा पुलिस स्टेशन में दर्ज हुई थी, जो कि बांद्रा मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश के बाद हुई। केस BNSS की धारा 175(3) के तहत दर्ज हुआ है। इसमें चीटिंग, विश्वासघात और “पब्लिक सर्वेंट द्वारा विश्वासघात” जैसे गंभीर आरोप लगे हैं।

इतना ही नहीं, ट्रस्ट ने इस पूरे मामले की जांच CBI से कराने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में अलग से याचिका भी दाखिल की है।

नोट: यह मामला अभी न्यायिक प्रक्रिया में है और किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले अदालत के फैसले का इंतजार करना जरूरी है।


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