
उत्तराखंड की राजनीति इन दिनों पंचायत चुनावों के नतीजों और विधानसभा के मानसून सत्र में हुए हंगामे को लेकर गर्माई हुई है। एक ओर कांग्रेस पंचायत चुनावों में धांधली और कानून-व्यवस्था बिगड़ने का आरोप लगा रही है, तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी विपक्ष को ‘हताश’ और ‘निराश’ बताते हुए पलटवार कर रहे हैं। उन्होंने तीखे अंदाज़ में कहा कि हार के बाद अपनी इज्जत बचाने के लिए कांग्रेस की आदत बन चुकी है कि कभी वोट चोरी का राग अलापेगी, कभी ईवीएम हैक का मुद्दा उठाएगी और कभी निर्वाचन आयोग पर सवाल खड़े करेगी।
निष्पक्ष पंचायत चुनाव का दावा,मुख्यमंत्री धामी ने संवाददाताओं से कहा कि प्रदेश में पंचायत चुनाव पूरी तरह निष्पक्ष और शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुए। केवल कुछेक स्थानों पर कानून-व्यवस्था की गड़बड़ी सामने आई, जहां तुरंत प्रशासनिक कार्रवाई की गई।
उन्होंने नैनीताल का उदाहरण देते हुए कहा—
अगर चुनाव निष्पक्ष नहीं होता तो जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों ही पद भाजपा को मिलते। परंतु ऐसा नहीं हुआ। दीपा दर्मवाल अध्यक्ष चुनी गईं और कांग्रेस उपाध्यक्ष पद जीत गई। यह सबूत है कि चुनाव पूरी तरह पारदर्शी रहे।”
धामी का संकेत साफ था कि कांग्रेस के आरोप केवल चुनावी हार छिपाने का बहाना हैं।


✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)
कांग्रेस पर तीखा हमला
मुख्यमंत्री ने कांग्रेस की आदतों पर सवाल उठाते हुए कहा कि—
जब कांग्रेस हारती है तो ईवीएम मशीनों पर सवाल खड़े करती है।
जब परिणाम अनुकूल नहीं आते तो निर्वाचन आयोग को कठघरे में खड़ा करती है।
प्रशासन और सरकार पर निष्पक्षता भंग करने का आरोप लगाती है।
और अंततः ‘वोट चोरी’ की बात कहकर अपनी इज्जत बचाने का प्रयास करती है।उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा,जहां कांग्रेस जीतती है, वहां कोई गड़बड़ी नहीं होती। देहरादून में जिला पंचायत अध्यक्ष और बाजपुर में ब्लॉक प्रमुख का पद कांग्रेस को मिला, वहां सब ठीक है। पर जहां हार हुई, वहां धांधली का शोर मचाया जा रहा है।कांग्रेस शासनकाल की याद दिलाई,धामी ने कांग्रेस के पुराने शासनकाल को भी नहीं बख्शा। उन्होंने कहा कि जनता भलीभांति जानती है कि कांग्रेस के समय किस प्रकार वोटों की चोरी और बूथ कैप्चरिंग होती थी। भाजपा ने जनता को पारदर्शी चुनाव की गारंटी दी है और लोग इस पर भरोसा कर रहे हैं।
विधानसभा सत्र का हंगामा,मुख्यमंत्री ने विपक्ष के व्यवहार को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए कहा कि कांग्रेस ने मानसून सत्र जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर भी जनता के मुद्दों को पीछे छोड़कर केवल हंगामा किया।कांग्रेस विधायकों ने सदन में मेजें तोड़ीं।
अध्यक्ष की मौजूदगी में कागज़ के पुतले बनाकर फेंके।कार्यवाही बाधित की और तत्काल चर्चा की मांग पर अड़े रहे।
धामी ने कटाक्ष किया,
जो खुद सदन के अंदर कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ा रहे हैं, वही बाहर कानून-व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं। यह अत्यंत विडंबनापूर्ण है।भाजपा की लगातार जीत और कांग्रेस की हताशा
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड की जनता ने भाजपा को हर चुनाव में आशीर्वाद दिया है—चाहे लोकसभा हो, विधानसभा हो, नगर निकाय हो या पंचायत चुनाव।
भाजपा की यह भारी जीत कांग्रेस के लिए हताशा और निराशा का कारण बन गई है। देवतुल्य जनता ने नगरी और ग्रामीण क्षेत्र के विकास की जिम्मेदारी हमें सौंपी है। कांग्रेस को यह मंज़ूर नहीं, इसलिए वह हर चुनाव के बाद बहानेबाज़ी पर उतर आती है।”
कांग्रेस की दुविधा
कांग्रेस ने पंचायत चुनावों में धांधली और बिगड़ती कानून-व्यवस्था को मुद्दा बनाकर सत्र में तत्काल चर्चा की मांग की। विपक्ष का तर्क है कि नैनीताल और बेतालघाट में गोलीबारी और झड़प जैसी घटनाएं साफ दिखाती हैं कि प्रशासन पूरी तरह चुनाव कराने में विफल रहा।
लेकिन भाजपा का पलटवार है कि ऐसी छिटपुट घटनाओं को पूरे चुनाव पर लागू करना उचित नहीं है। कांग्रेस को अपनी हार का विश्लेषण करना चाहिए, न कि बहानेबाज़ी।
नैनीताल पंचायत चुनाव : सियासी नज़र
नैनीताल जिला पंचायत चुनाव का परिणाम दिलचस्प रहा।
दीपा दर्मवाल (भाजपा) ने अध्यक्ष पद केवल एक वोट से जीतकर अपनी पकड़ मजबूत दिखाई।
वहीं देवकी बिष्ट (कांग्रेस) उपाध्यक्ष बनीं।
यहां परिणामों ने यह स्पष्ट कर दिया कि भाजपा और कांग्रेस दोनों को स्थानीय स्तर पर समर्थन मिला है। परंतु कांग्रेस इसे धांधली बताकर पूरे चुनाव पर सवाल खड़े कर रही है, जबकि भाजपा इसे पारदर्शिता का सबूत मान रही है।
संपादकीय दृष्टिकोण
सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस बार-बार ‘वोट चोरी’ और ‘ईवीएम हैक’ जैसे आरोप क्यों लगाती है? क्या यह केवल चुनावी हार का बहाना है या फिर पार्टी की रणनीतिक सोच?
कांग्रेस की यह रणनीति जनता को उतनी प्रभावित नहीं कर पा रही है। बल्कि, बार-बार एक ही राग अलापने से उसकी साख कमजोर हो रही है।
दूसरी ओर, भाजपा कांग्रेस के हर आरोप को अपनी जनता में बढ़ती स्वीकार्यता और विपक्ष की हताशा के प्रमाण के रूप में पेश करती है।
विधानसभा सत्र में हंगामे ने कांग्रेस की जनता के मुद्दों से दूरी भी उजागर की है।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह संदेश दिया है कि विपक्ष को केवल हंगामा करने से आगे बढ़कर एक सार्थक और ठोस राजनीतिक एजेंडा बनाना होगा, वरना भाजपा हर बार इस हताशा को अपनी मजबूती में बदल लेगी।
मुख्यमंत्री धामी का बयान कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने सीधे विपक्ष की आदतों पर चोट की है और जनता के सामने यह संदेश देने की कोशिश की है कि भाजपा चुनावी मैदान में पारदर्शिता के साथ खड़ी है, जबकि कांग्रेस केवल बहाने ढूंढ रही है।
उत्तराखंड की राजनीति में यह बयानबाज़ी आने वाले दिनों में और तेज़ होगी, क्योंकि पंचायत चुनावों के बाद अब सभी दल 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटेंगे। सवाल यही है कि कांग्रेस अपनी रणनीति बदलेगी या फिर ‘वोट चोरी’ का पुराना राग ही गाती रहेगी?
✍️ लेखक की टिप्पणी:✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)से
यह संपादकीय स्पष्ट करता है कि मुख्यमंत्री धामी की रणनीति विपक्ष को घेरने और भाजपा की ‘जनता-हितैषी’ छवि को मजबूत करने पर केंद्रित है। कांग्रेस यदि अपनी भूमिका को प्रभावी बनाना चाहती है तो उसे केवल आरोप लगाने से आगे बढ़कर जनता से जुड़े ठोस मुद्दे उठाने होंगे।

