
किसे बचाया गया, क्यों बचाया गया, और जांच को गुमराह करने के लिए रिज़ॉर्ट पर बुलडोज़र किसके इशारे पर चला — ये सवाल अब भी न्याय की आत्मा पर चिपके हुए हैं।”
अगस्त 2022 में अंकिता भंडारी ने यमकेश्वर स्थित वनंत्रा रिज़ॉर्ट में नौकरी शुरू की थी। मात्र एक महीने बाद 18 सितंबर को उसकी हत्या हो गई। 24 सितंबर को उसका शव चीला नहर से बरामद हुआ। आरोपियों में पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को गिरफ्तार किया गया — लेकिन असली सवाल है: ‘वीआईपी’ कौन था, जिसके लिए अंकिता पर “अतिरिक्त सेवा” का दबाव बनाया जा रहा था?
वीआईपी का साया और SIT की सीमाएं,डीआईजी पी. रेणुका के नेतृत्व में गठित एसआईटी ने 40 हजार मोबाइल लोकेशन और 800 सीसीटीवी कैमरों की जांच की, लेकिन आज तक “वीआईपी” की पहचान सामने नहीं आई। यह वही वीआईपी है जिसके बारे में अंकिता ने अपने दोस्त पुष्पदीप को बताया था — कि पुलकित आर्य उस वीआईपी को “स्पेशल सर्विस” देने के लिए उस पर दबाव बना रहा है।
क्या कोई ऐसी ताक़त थी जो SIT की पहुँच से भी परे थी? जब डीआईजी खुद कहती हैं कि “VIP सुइट में जो भी ठहरे, वही VIP कहलाता है”, तो सवाल उठता है कि इस ‘टर्मिनोलॉजी’ की आड़ में सच्चाई से भागने की कोशिश तो नहीं हो रही?
गवाह, साक्ष्य और साजिश
सबसे अहम कड़ी थे अंकिता के कॉल्स — जिनमें उसने स्पष्ट रूप से कहा कि रिज़ॉर्ट में अनैतिक गतिविधियाँ होती हैं और VIP मेहमानों को लड़कियों से ‘सेवा’ दिलवाई जाती है। उसकी आखिरी बातचीत पुष्पदीप से 18 सितंबर की रात साढ़े आठ बजे हुई थी। इसके बाद उसका फोन बंद हो गया।
पुलकित आर्य ने उसी रात गुमराह करने वाला बयान दिया: “अंकिता सो गई है।”और फिर अगले दिन उसका भी फोन बंद हो गया।
रिज़ॉर्ट पर बुलडोज़र: साक्ष्य या साजिश का मलबा?जब अंकिता का शव मिला, तब प्रदेश में जनाक्रोश भड़का। रिज़ॉर्ट पर बुलडोज़र चलाया गया — लेकिन बिना फॉरेंसिक जांच पूरी किए किसी घटनास्थल को गिरा देना क्या साक्ष्य मिटाने का प्रयास नहीं था?
कांग्रेस ने यही सवाल उठाया: बुलडोज़र किसके आदेश पर चला? रिज़ॉर्ट में कौन-कौन रुकता था, उसका रिकॉर्ड क्यों नहीं सामने लाया गया?


पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से लेकर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य तक सभी कह चुके हैं — “जब तक VIP का नाम उजागर नहीं होता, न्याय अधूरा है।”
राजनीतिक पृष्ठभूमि और दबाव
गौरतलब है कि पुलकित आर्य, भाजपा के पूर्व नेता विनोद आर्य का पुत्र है। हत्याकांड के बाद उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया, लेकिन यह सिर्फ एक damage control था। जनता पूछ रही है — क्या पुलकित अकेला था, या किसी सफेदपोश की छाया उसके पीछे थी?
मां की पीड़ा और जनता की आवाज
अंकिता की मां सोनी देवी की बातें झकझोर देने वाली हैं:“हमारी बेटी को जलाया गया, दबाया गया, मिटाने की कोशिश हुई। लेकिन हम चुप नहीं बैठेंगे।”
उन्होंने हाईकोर्ट जाने की बात कही है। वहीं पौड़ी जिले में ग्रामीणों ने कहा, “अब दोषियों को फांसी मिले, तभी न्याय पूर्ण होगा।”
क्या यह ‘पॉलिटिकल फेमिनिसाइड’ है?इस प्रकरण में gendered violence के साथ-साथ सत्ता की संरक्षित परछाइयों का टकराव भी दिखता है। यह केवल एक लड़की की हत्या नहीं — यह सत्ता संरक्षित महिला उत्पीड़न की मिसाल बन गया है, जिसे सरकार और प्रशासन मिलकर दबाना चाहते थे।
न्यायपालिका की भूमिका और आगे की राह,अपर जिला एवं सत्र न्यायालय ने तीनों आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह एक आंशिक न्याय है, जैसा कि खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने कहा। लेकिन VIP के नाम और नीयत पर पर्दा अभी भी जस का तस है।
एक वीआईपी का नाम और लोकतंत्र की नाकयदि 40 हजार फोन और 800 CCTV कैमरों के बाद भी एक VIP का नाम सामने न आए, तो ये लोकतंत्र नहीं, किसी काले साये की प्रशासनिक तानाशाही है। यह वही साया है जो उत्तराखंड की बेटियों को खा रहा है, और सिस्टम उसे छिपा रहा है।
