धन्य है देवभूमि, धन्य है धामी सरकार : ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की जययात्रा और मूल राज्य अवधारणा की पुनः स्थापना संवाददाता : अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर शैल ग्लोबल टाइम्स / हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

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सिंदूर मिटाने वालों को, अब सिंदूर का उत्तर मिलता है।”यह सिर्फ कोई भावुक नारा नहीं, यह उस नए भारत का युद्धघोष है, जो अब न तो चुप बैठता है, न ही सीमा पार की हरकतों को नजरअंदाज़ करता है। शनिवार को हल्द्वानी की सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब, ‘तिरंगा शौर्य सम्मान यात्रा’ के रूप में राष्ट्रभक्ति की जीवंत मिसाल था। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस यात्रा में जिस तरह जनसंपर्क, संवेदना और सैनिक सम्मान का परिचय दिया, उसने स्पष्ट कर दिया कि वे न केवल एक योग्य प्रशासक हैं, बल्कि उत्तराखंड की मूल राज्य अवधारणा — राष्ट्रप्रेम, जनसंघर्ष और जनभागीदारी — के सबसे प्रामाणिक प्रतिनिधि भी हैं।


धामी: उत्तराखंड की आत्मा से संवाद करता एक जननायक,जब राज्य आंदोलनकारियों ने पृथक उत्तराखंड की मांग की थी, तब उनका सपना केवल एक भूगोलिक इकाई नहीं था। उनका सपना था — एक ऐसा राज्य जो पहाड़ की संवेदनाओं, देशभक्ति, रोजगार, शिक्षा, और सुरक्षा की मूल भावना से जुड़ा हो। अफसोस की बात है कि दो दशकों तक यह भावना राजनीतिक ड्रामेबाजियों और सत्ता-लोलुपता में खो गई। परंतु अब, जब धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड नई ऊर्जा से भरकर सैनिकों के चरणों में तिरंगा बिछा रहा है, तब राज्य की आत्मा मानो पुनः जीवित हो उठी है।

मुख्यमंत्री द्वारा पूर्व सैनिकों से हाथ मिलाने के लिए सुरक्षा घेरा तोड़ना कोई राजनीतिक स्टंट नहीं था, वह एक सच्चे सैनिक पुत्र की भावनात्मक प्रतिक्रिया थी। यही वह संवेदनशीलता है, जिसकी इस राज्य को हमेशा से तलाश रही है।


‘ऑपरेशन सिंदूर’ : राष्ट्र के वीरता का प्रतीक,हल्द्वानी में आयोजित यात्रा केवल एक प्रशासनिक कार्यक्रम नहीं था, यह ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता का जनोत्सव था। यह यात्रा उस संकल्प का प्रतीक बनी, जिसमें भारत अब आतंक के खिलाफ केवल सहनशीलता नहीं, निर्णायक जवाबी कार्रवाई में विश्वास करता है।

सिंदूर मिटाने वालों को मिट्टी में मिला देने का जो वचन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया था, वह अब साक्षात् दिखाई दे रहा है। सीएम धामी ने इस राष्ट्रीय गौरव को उत्तराखंड की जनता से जोड़कर यह संदेश दिया कि देवभूमि केवल तीर्थों की नहीं, रणभूमियों की भी जननी है।


ब्रह्मोस से भरोसा, बेटी से प्रतिशोध

सांसद अजय भट्ट ने जब कहा कि “भारत की बेटियों ने पाकिस्तान को धूल चटा दी”, तो यह उस राष्ट्र की छवि थी, जो अब लाचार नहीं, संकल्पबद्ध है। यह वह राष्ट्र है, जिसमें महिला सशक्तिकरण केवल नारे में नहीं, बल्कि सैन्य अभियानों की अगुवाई में दिखता है। और उत्तराखंड, जो देश को सबसे ज्यादा सैनिक देता है, वह इस परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में खड़ा है।


मुख्यमंत्री धामी को क्यों मिले ‘श्रेष्ठ मुख्यमंत्री’ का ताज?उत्तराखंड के बीते 25 वर्षों में कई मुख्यमंत्री आए और गए — कुछ ने ऋण लिए, कुछ ने भाषण दिए, कुछ ने केवल वादे किए। लेकिन धामी ने वह किया जो बाकी नहीं कर सके — जनता के दिल में जगह बनाई।

उनके नेतृत्व में:सैनिकों के प्रति सजीव संवेदना प्रदर्शित हुई।

  • आतंकवाद के खिलाफ देश की कूटनीति को राज्य स्तर पर जनजागरण का रूप दिया गया।
  • उत्तराखंड की युवा पीढ़ी में राष्ट्रप्रेम और सहभागिता की भावना विकसित की गई।
  • ‘राज्य आंदोलनकारी भावना’ को शासकीय प्राथमिकताओं में पुनर्स्थापित किया गया।

उनका 2.5 किलोमीटर पैदल चलना, पसीने से भीगी वर्दी के बावजूद मुस्कुराते रहना, बच्चों से आत्मीयता से मिलना — यह सब किसी मंचीय नेता की नहीं, एक जननेता की पहचान है।


मूल राज्य अवधारणा की वापसी,जब उत्तराखंड बना था, तो आंदोलनकारियों का सपना था कि यहां शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सुरक्षा की मजबूत नींव हो। धामी सरकार के नेतृत्व में यह सपना अब मूर्त रूप लेता दिख रहा है।

जहां एक ओर सैन्य सम्मान और राष्ट्रभक्ति की भावनाएं पुनर्जीवित हुई हैं, वहीं दूसरी ओर शासन प्रणाली में साफ नीयत और सख्त नीति की छाप स्पष्ट है।

धामी सरकार:भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाही में अग्रणी है।

  • राज्य में युवाओं को सेना व रक्षा क्षेत्र में प्रेरित कर रही है।
  • सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव को नीतिगत प्राथमिकता दे रही है।

समापन : देवभूमि की रक्षा में देवपुरुष की भूमिका,मुख्यमंत्री धामी केवल एक राजनेता नहीं, एक वैचारिक संकल्प हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि उत्तराखंड को केवल पुल, सड़क और घोषणाएं नहीं चाहिएं, बल्कि साहसिक निर्णय, जन-संवाद, और राष्ट्रप्रेम की व्यावहारिक अभिव्यक्ति चाहिए।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल एक सैन्य अभियान नहीं, बल्कि उत्तराखंड की उस चेतना की वापसी है जो राज्य निर्माण आंदोलन के समय सड़कों पर उमड़ी थी।

आज जरूरत इस बात की है कि हम उत्तराखंड को फिर से उसी पथ पर अग्रसर करें, जहां उसका हर नागरिक एक सैनिक, हर छात्र एक कर्मवीर, और हर सरकार एक साधक हो।

धन्य है उत्तराखंड, जो ऐसी नेतृत्वशक्ति को देख रहा है। और धन्य है मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, जो आज की देवभूमि में “श्रेष्ठतम मुख्यमंत्री” की भूमिका में स्वयं को सिद्ध कर चुके हैं।


✍🏻 अवतार सिंह बिष्ट

वरिष्ठ संवाददाता

राज्य आंदोलनकारी एवं राजनीतिक समीक्षक

शैल ग्लोबल टाइम्स / हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स


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