शक्तिशाली लोकायुक्त “भ्रष्टाचार के विरुद्ध सीबीआई की सक्रियता और उत्तराखंड में जवाबदेही की दरकार”ताजा घटना: डाकघर में रिश्वतखोरी का पर्दाफाश!उत्तराखंड में सीबीआई की कार्रवाइयाँ: एक आंकलन

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उत्तराखंड, देवभूमि के नाम से पहचाने जाने वाले इस राज्य की नींव जनआंदोलनों और ईमानदारी की उम्मीदों पर रखी गई थी। लेकिन राज्य बनने के दो दशक बाद भी जिस प्रकार भ्रष्टाचार की घटनाएं सामने आ रही हैं, वह न केवल चिंताजनक हैं, बल्कि राज्य निर्माण आंदोलन की आत्मा को भी झकझोरती हैं। पिथौरागढ़ जिले के नाचनी डाकघर में सीबीआई द्वारा डाक निरीक्षक शशांक सिंह राठौर को 15 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ गिरफ्तार करना, इस बात का प्रमाण है कि भ्रष्टाचार राज्य के सुदूर पर्वतीय अंचलों तक अपनी जड़ें फैला चुका है।


ताजा घटना: डाकघर में रिश्वतखोरी का पर्दाफाश?पीएमईजीपी योजना के तहत सब्सिडी के लिए रिपोर्ट लगाने के नाम पर शशांक सिंह राठौर द्वारा दुकानदार सुरेश चंद से 21 हजार रुपये की मांग और 15 हजार रुपये पर ‘समझौता’ — यह घटना केवल एक व्यक्ति का नैतिक पतन नहीं, बल्कि एक व्यवस्थागत बीमारी का संकेत है।

यह उस भरोसे को भी तोड़ता है जो जनता सरकारी सेवकों और योजनाओं पर करती है। जिस व्यक्ति ने प्रधानमंत्री की रोजगार योजना के तहत स्वरोजगार की पहल की, उसे अपने अधिकार की सब्सिडी के लिए घूस देनी पड़ी।


उत्तराखंड में सीबीआई की कार्रवाइयाँ: एक आंकलन?उत्तराखंड राज्य के गठन (2000) के बाद से सीबीआई द्वारा कई भ्रष्टाचार मामलों में कार्रवाई की गई है। इनमें से कुछ प्रमुख मामले निम्न हैं:

1. कुमाऊं विश्वविद्यालय भर्ती घोटाला (2004-2012):कई वर्षों तक विवि में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्तियों में गड़बड़ी की जांच सीबीआई ने की थी। आरोप लगे थे कि पैसे लेकर अपात्रों को नियुक्त किया गया।

2. राज्य कर्मचारी चयन आयोग पेपर लीक कांड (2022):यूकेएसएसएससी घोटाले में पहले एसटीएफ ने जांच की, बाद में मांग उठी कि सीबीआई जांच हो। इसमें कई अफसरों की भूमिका संदेह के घेरे में आई।

3. एनएच घोटाले में सीबीआई (2015):

पिथौरागढ़ में सड़कों के निर्माण के लिए भारत सरकार द्वारा दिए गए करोड़ों रुपयों में अनियमितता पाई गई थी। सीबीआई ने इस मामले में भी जांच की थी।

4. सहकारी बैंक घोटाले (हरिद्वार/ऊधमसिंह नगर):सहकारी बैंकों में भ्रष्टाचार, फर्जी ऋण वितरण और लाभार्थियों के नाम पर अफसरों ने बड़ी रिश्वतखोरी की। इनमें सीबीआई/ईडी ने जांच की।

5. पुलिस भर्ती और वायरलेस घोटाला (2005-06):तत्कालीन पुलिस अफसरों की मिलीभगत से वायरलेस सिस्टम की खरीद में घोटाले का मामला भी सीबीआई को सौंपा गया था।

सीबीआई ने बीते वर्षों में दर्जनों अभियुक्तों को गिरफ्तार किया, जिनमें सरकारी अधिकारी, इंजीनियर, विवि प्रशासन, और यहां तक कि पीसीएस स्तर के अधिकारी भी रहे।

भ्रष्टाचार: पर्वतीय समाज के लिए घातक

उत्तराखंड की भौगोलिक विषमताएं और सीमित संसाधन यहां के नागरिकों को पहले ही कई मुश्किलों में डालते हैं। जब एक आम नागरिक को सरकारी योजना का लाभ पाने के लिए भी रिश्वत देनी पड़े, तो यह उस सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर करता है जो राज्य की आत्मा है। खासकर सीमांत जिले जैसे पिथौरागढ़ में ऐसी घटनाएं न केवल विकास की गति को बाधित करती हैं, बल्कि युवाओं में व्यवस्था के प्रति अविश्वास भी पैदा करती हैं।

क्यों होता है बार-बार भ्रष्टाचार?

  1. लोकायुक्त की कमजोरी:

    उत्तराखंड में लोकायुक्त कानून लंबे समय तक सिर्फ ‘कागजों की शोभा’ बना रहा। न नियुक्तियां समय पर हुईं, न प्रभावी कार्रवाई।

  2. राजनीतिक संरक्षण:राजनीतिक दलों द्वारा दोषियों को संरक्षण देने की प्रवृत्ति रही है। यही वजह है कि बड़े भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई अक्सर अधूरी रह जाती है।

  3. जनता की उदासीनता:कई बार आम नागरिक या व्यापारी डर या लालच के कारण शिकायत दर्ज नहीं कराते। ऐसे में भ्रष्ट अफसर बेखौफ हो जाते हैं।

  4. सीमित संसाधन व जांच एजेंसियों की संख्या:सीबीआई, एसटीएफ और एंटी करप्शन ब्यूरो के पास स्टाफ और संसाधनों की भारी कमी है।


अब सवाल यह है: समाधान क्या हो?1. स्थायी और शक्तिशाली लोकायुक्त की नियुक्ति

लोकायुक्त को स्वायत्तता दी जाए, जैसे सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को होती है। अफसरशाही और राजनेताओं दोनों की जांच करने का उसे पूरा अधिकार हो।

2. जन जागरूकता अभियान:?भ्रष्टाचार को लेकर जन चेतना अभियान चलाना होगा, जैसे मतदान के लिए चलाए जाते हैं। सरकारी योजनाओं से लाभ पाने वाले हर व्यक्ति को यह बताना जरूरी होना चाहिए कि उसे रिश्वत मांगी गई या नहीं।

3. सीबीआई/एसीबी की क्षेत्रीय शाखाएं:

सीबीआई या राज्य की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की क्षेत्रीय शाखाएं पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत जैसे सीमांत जिलों में स्थापित की जाएं।

4. डिजिटल सत्यापन और पारदर्शिता:

पीएमईजीपी या अन्य योजनाओं में सत्यापन की प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल और ट्रैकिंग योग्य बनाया जाए। किसी अधिकारी की रिपोर्ट के बिना सब्सिडी रोकी न जाए।


क्या एक डाक इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी पर्याप्त है?शशांक सिंह राठौर की गिरफ्तारी एक प्रतीकात्मक कार्रवाई है। असल सुधार तब होगा जब सरकारी सेवा में नियुक्त हर अफसर को यह महसूस हो कि रिश्वत लेना उसकी नौकरी ही नहीं, उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को भी समाप्त कर देगा।

इसलिए जरूरी है कि ऐसे मामलों में न केवल दोषी को सज़ा मिले, बल्कि उसकी संपत्ति जब्त हो, उसकी पेंशन रोकी जाए, और उसे ब्लैकलिस्ट किया जाए।


उत्तराखंड की जनता की भूमिका?जनता को भी अपनी भूमिका समझनी होगी। यह राज्य सिर्फ अफसरों और नेताओं का नहीं है। यह आंदोलनकारियों की कुर्बानियों से बना राज्य है। यदि जनता हर स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने लगे — चाहे वह स्कूल में फर्जी अटेंडेंस हो या लोन में रिश्वत — तो भ्रष्ट व्यवस्था को झुकने पर मजबूर किया जा सकता है।


अब उत्तराखंड को चाहिए एक नया सामाजिक संकल्प?शशांक सिंह राठौर की गिरफ्तारी कोई अंत नहीं, एक चेतावनी है। यह दिखाता है कि अगर एक दुकानदार सुरेश चंद हिम्मत करे तो डाकघर का अफसर भी जेल जा सकता है। अब ज़रूरत है इस भावना को हर गांव, हर मोहल्ले तक पहुंचाने की।उत्तराखंड को केवल प्राकृतिक आपदाओं से नहीं, नैतिक आपदाओं से भी बचाना है। और इसके लिए राज्य को चाहिए – ईमानदारी का आंदोलन, जैसा 1994 में राज्य के लिए किया गया था।

अगर जनसमूह फिर से उठ खड़ा हुआ, तो शायद आने वाले वर्षों में कोई अफसर रिश्वत लेने से पहले सौ बार सोचेगा।



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