
उत्तराखंड,कोरोना की एक बार फिर वापसी की आहट सुनाई दे रही है। भारत में जहां कोविड के मामले धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं, वहीं उत्तराखंड में भी तीन संक्रमित मरीजों की पुष्टि हो चुकी है। इनमें से एक एम्स ऋषिकेश में भर्ती है, एक अपने घर में क्वारंटीन है और तीसरा वापस मुंबई जाकर क्वारंटीन हुआ है। तीनों मामलों में एक समानता है—तीनों मरीज दूसरे राज्यों से यात्रा करके लौटे थे। यह तथ्य चिंताजनक है और एक बार फिर इस ओर इशारा करता है कि बाहरी राज्यों से अनियंत्रित आवाजाही उत्तराखंड के लिए एक बार फिर संकट का कारण बन सकती है।


प्रदेश में अब तक स्थानीय स्तर पर कोई कोरोना पॉजिटिव मामला सामने नहीं आया है, लेकिन अगर समय रहते सावधानी नहीं बरती गई तो हालात विकराल रूप ले सकते हैं। स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार के अनुसार प्रदेश की सभी चिकित्सा इकाइयों को अलर्ट पर रखा गया है। इसी बीच सीएमओ डॉ. मनोज शर्मा ने जिले के सभी अस्पतालों को अलर्ट मोड पर रखने और गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम के मरीजों की अनिवार्य कोरोना जांच के निर्देश दिए हैं। स्वास्थ्य विभाग ने तत्काल 1200 टेस्टिंग किट (1000 रैपिड और 200 आरटीपीसीआर) मंगवाई हैं।
लेकिन सवाल यह है – क्या यह सब कुछ पर्याप्त है?
उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है जिसकी स्वास्थ्य संरचना आज भी बड़ी आपदा का भार सहने में सक्षम नहीं है। अस्पताल सीमित हैं, ऑक्सीजन प्लांट सीमित हैं, विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है और दूरस्थ गांवों में चिकित्सा सुविधा का अभाव है। 2020-21 की कोरोना लहरों में हमने हजारों शवों को गंगा में बहते देखा, ऑक्सीजन के लिए लोगों को तड़पते देखा और श्मशानों के बाहर कतारें देखीं। कोरोना की भयावहता को झेल चुके उत्तराखंड वासी अब पुनः उस दौर को नहीं देखना चाहते।
आज जब देश के अन्य हिस्सों से लौटे यात्रियों में जेएन.1 वैरिएंट की पुष्टि हुई है, तो यह कोई मामूली बात नहीं है। यह वैरिएंट नया है, इसके लक्षण पुराने से अलग हो सकते हैं, और सबसे बड़ी बात – यह कब कम्युनिटी ट्रांसमिशन में बदल जाए, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता।
चारधाम यात्रा पर पुनर्विचार अनिवार्य
हर साल लाखों श्रद्धालु बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा के लिए उत्तराखंड आते हैं। इनमें से बड़ी संख्या में लोग दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक जैसे राज्यों से आते हैं, जहां कोरोना के मामले अधिक देखे गए हैं। कोरोना की पूर्व लहरों में यह स्पष्ट हो गया था कि उत्तराखंड में संक्रमण का प्रसार बाहरी आगंतुकों के माध्यम से हुआ। जब तक सरकार ने बॉर्डर सील नहीं किए, तब तक हर गांव और कस्बे में कोरोना ने अपनी दस्तक दी।
इसलिए अब जब नए वैरिएंट की मौजूदगी की पुष्टि हो चुकी है और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी सतर्क हो गया है, तो उत्तराखंड सरकार को चाहिए कि वह चारधाम यात्रा को लेकर तत्काल समीक्षा बैठक बुलाए।
क्या यह मुनासिब नहीं होगा कि राज्य के नागरिकों की जान की रक्षा के लिए हम एक वर्ष के लिए चारधाम यात्रा को स्थगित करें या सीमित करें?
कुछ सुझाव जो सरकार को अविलंब लागू करने चाहिए:
- चारधाम यात्रा पर तत्काल रोक या सीमित अनुमति – जब तक यह स्पष्ट न हो जाए कि जेएन.1 वैरिएंट कितना खतरनाक है, तब तक यात्रा को स्थगित किया जाए या फिर केवल उत्तराखंड के स्थानीय तीर्थयात्रियों तक ही सीमित किया जाए।
- बॉर्डर पर फिर से मेडिकल स्क्रीनिंग अनिवार्य की जाए – हर वाहन, हर यात्री की मेडिकल जांच हो, जिसमें वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट, RTPCR नेगेटिव रिपोर्ट या थर्मल स्कैनिंग अनिवार्य हो।
- टीकाकरण वाले और स्वस्थ यात्रियों को ही प्रवेश की अनुमति मिले – बिना वैक्सीन और कोविड जांच के किसी को भी चारधाम क्षेत्र या पर्यटन स्थलों की ओर जाने की अनुमति न दी जाए।
- बाहरी राज्यों से आने वालों को संस्थागत क्वारंटीन में रखा जाए (आवश्यकतानुसार) – विशेषकर उन राज्यों से आए लोगों को, जहां पर कोविड के मामले बढ़ रहे हैं।
- स्थानीय व्यापारियों, पुजारियों, धर्मशालाओं और गाइड्स को कोविड-प्रोटोकॉल की विशेष ट्रेनिंग दी जाए।
क्या आर्थिक लाभ जान से अधिक मूल्यवान है?
सरकार यह तर्क दे सकती है कि चारधाम यात्रा से स्थानीय व्यापारियों, होटल व्यवसायियों और गाइड्स की आय होती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह आर्थिक लाभ मानव जीवन से अधिक मूल्यवान है? क्या हजारों लोगों की जान की कीमत पर हम कुछ लाख का राजस्व प्राप्त करना उचित ठहराते हैं?
अगर चारधाम यात्रा के चलते एक भी गांव में कोरोना फैलता है, तो वहां से संक्रमण पहाड़ के सैकड़ों गांवों में पहुंच जाएगा और तब न कोई ऑक्सीजन सिलेंडर मिलेगा, न ऐम्बुलेंस। ग्रामीण अस्पतालों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। सरकार के पास इतना बुनियादी ढांचा नहीं कि वह एक साथ सैकड़ों मरीजों का इलाज कर सके।
कोरोना की वापसी – चेतावनी है, उपेक्षा नहीं
जेएन.1 एक चेतावनी है, समय रहते उठाया गया कदम एक बड़े संकट को टाल सकता है। उत्तराखंड की सरकार को अपनी जनता के स्वास्थ्य को पहली प्राथमिकता देनी चाहिए। यह सिर्फ एक स्वास्थ्य संकट नहीं है, यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है। आम जनता को भी अब फिर से मास्क पहनना, भीड़ से बचना और सैनिटाइजेशन को अपनाना शुरू करना होगा।
एक सतर्क और जिम्मेदार सरकार का परिचायक
चारधाम यात्रा को रोकना या टालना कोई अपमान नहीं, बल्कि एक संवेदनशील निर्णय होगा। यह दिखाएगा कि उत्तराखंड सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोपरि मानती है। यह निर्णय विपक्ष को हथियार देने का अवसर नहीं, बल्कि एक संजीदा प्रशासन का परिचायक बनेगा।
अंत में यही कहना चाहूंगा:
“जब संकट की आहट हो, तो त्योहार, तीर्थ और व्यापार – सब कुछ कुछ समय के लिए रुक सकता है, पर जान जाए तो कुछ भी वापस नहीं आता।”
चारधाम यात्रा हमारे आस्था का केंद्र है, लेकिन जीवन की रक्षा हमारी सबसे पहली आस्था होनी चाहिए।
सरकार अब निर्णय ले—चारधाम यात्रा को रोकिए, उत्तराखंड को बचाइए।

