
नेपाल का जनमानस, विशेषकर जेनरेशन-ज़ेड, इन दिनों गुस्से और उम्मीद दोनों के मिश्रण से गुजर रहा है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और भ्रष्टाचार के खिलाफ उठी चिंगारी ने देखते ही देखते पूरे देश को आग की लपटों में झोंक दिया। सड़कों पर उतरे हजारों युवा प्रदर्शनकारियों ने सत्ता की जड़ें हिला दीं। आखिरकार, लंबे समय से विवादों और अस्थिरता से घिरे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। यह इस्तीफा केवल एक नेता की हार नहीं, बल्कि नेपाली लोकतंत्र के भीतर युवाओं की जीत का प्रतीक है।


।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
लेकिन सवाल उठता है — अब नेपाल का भविष्य कौन सँभालेगा? क्या नेपाल को ऐसा नेता मिलेगा जो वास्तव में देश को राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक पिछड़ेपन और भ्रष्टाचार के जाल से बाहर निकाल सके? और यही सवाल नेपाल की सड़कों पर गूँजते नारों में बदल चुका है — “हमें नरेंद्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री चाहिए।”
युवाओं की क्रांति: असंतोष से आग तक
नेपाल लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा है। 2006 की जनक्रांति के बाद राजशाही का अंत हुआ, लेकिन लोकतंत्र के नाम पर जनता को स्थिर सरकार और विकास नहीं मिला। पिछले डेढ़ दशक में सत्ता के शीर्ष पर आए तमाम नेताओं ने वादों की झड़ी लगाई, परंतु भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और पलायन जैसी समस्याएँ जस की तस रहीं।
जब ओली सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की, तब यह मुद्दा सिर्फ़ इंटरनेट की आज़ादी का नहीं रहा, बल्कि युवाओं के आत्मसम्मान और अभिव्यक्ति की लड़ाई बन गया। यही कारण है कि यह आंदोलन केवल ऑनलाइन आक्रोश तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सड़कों पर उतरकर संसद भवन तक पहुँच गया। संसद में आगजनी और हिंसा इस बात का सबूत है कि अब नेपाल की नई पीढ़ी बगैर बदलाव के चुपचाप बैठने वाली नहीं।
ओली सरकार का पतन और अंतरिम सत्ता की जद्दोजहद
ओली का इस्तीफा इस आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। लेकिन इस्तीफे के बाद अब सवाल यह है कि नेपाल की अंतरिम सरकार कौन बनाएगा और किसके नेतृत्व में देश अगले आम चुनाव तक पहुँचेगा। राजनीतिक दलों में आपसी खींचतान जारी है। एक वर्ग चाहता है कि वरिष्ठ नेताओं में से कोई कार्यभार संभाले, तो दूसरा वर्ग युवाओं को अधिक हिस्सेदारी देने की मांग कर रहा है।
इस बीच, सड़कों पर उठ रही आवाज़ें बेहद साफ़ हैं — “हमें मोदी जैसा प्रधानमंत्री चाहिए।” यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि नेतृत्व संकट से जूझ रहे देश की आकांक्षा है।
क्यों गूँज रहा है “मोदी जैसा नेता चाहिए” का नारा?
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले एक दशक में जिस तरह से भारत की छवि, अर्थव्यवस्था और वैश्विक प्रभाव को मजबूत किया है, उसका असर पड़ोसी देशों पर भी हुआ है। नेपाल के युवा यह महसूस करते हैं कि भारत, जो कभी भ्रष्टाचार और नीतिगत पंगुता से जूझ रहा था, वहाँ मोदी के नेतृत्व ने निर्णायक बदलाव किए।
- मोदी ने डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं से युवाओं में आत्मविश्वास जगाया।
- बुनियादी ढांचे, सड़क, बिजली और हाईवे निर्माण में अभूतपूर्व गति आई।
- विदेश नीति में भारत की आवाज़ पहले से कहीं अधिक मजबूत हुई।
- सबसे अहम, मोदी ने जनता के बीच एक निर्भीक और राष्ट्रवादी छवि बनाई, जिसने उन्हें आम लोगों से सीधे जोड़ दिया।
नेपाल के युवा अपने देश में भी ऐसी ही निर्णायक और ईमानदार नेतृत्व की तलाश कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि नेपाल की राजनीति में जो नेता अब तक उभरे, वे न तो दूरदर्शी साबित हुए और न ही ईमानदारी से देश का नेतृत्व कर पाए। यही कारण है कि भारतीय प्रधानमंत्री का मॉडल उन्हें सबसे उपयुक्त दिख रहा है।
नेपाल की चुनौतियाँ: क्यों ज़रूरी है मजबूत नेतृत्व
नेपाल केवल राजनीतिक अस्थिरता का ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का भी शिकार है।
- बेरोज़गारी और पलायन – लाखों नेपाली युवा रोजगार की तलाश में भारत, खाड़ी देशों और यूरोप तक पलायन कर चुके हैं। देश में निवेश और उद्योग धंधों की कमी सबसे बड़ी समस्या है।
- भ्रष्टाचार का जाल – राजनीति से लेकर प्रशासन तक भ्रष्टाचार की गहरी पैठ है। जनता के करों से मिलने वाले संसाधन नेताओं और अफसरों की जेब में चले जाते हैं।
- अस्थिरता और गठबंधन राजनीति – हर कुछ साल में सरकार गिरती है और नई सरकार बनती है। इससे नीतियों में निरंतरता नहीं रहती।
- विदेश नीति का दबाव – नेपाल भारत और चीन के बीच फँसा हुआ है। कभी एक की तरफ झुकता है, तो कभी दूसरे की ओर, और इसका खामियाज़ा जनता को भुगतना पड़ता है।
इन चुनौतियों का समाधान केवल वही नेता कर सकता है, जो साहसिक फैसले ले और जनता का भरोसा जीत सके।
मोदी मॉडल: पड़ोसी देशों के लिए प्रेरणा
भारत की राजनीति में नरेंद्र मोदी का उदय केवल भारतीय संदर्भ तक सीमित नहीं रहा। उनकी शैली, उनके भाषण और उनकी नीतियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया। श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों में भी युवा यह चर्चा करते रहे हैं कि मोदी जैसा नेता अगर उनके देश को मिले, तो हालात बदल सकते हैं।
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नेपाल में मोदी की लोकप्रियता का कारण सिर्फ़ उनकी छवि नहीं, बल्कि नेपाल-भारत के ऐतिहासिक संबंध भी हैं। दोनों देशों की सांस्कृतिक, धार्मिक और पारिवारिक कड़ियाँ बेहद गहरी हैं। ऐसे में नेपाली युवाओं को लगता है कि अगर मोदी जैसा नेतृत्व नेपाल में भी आता है, तो देश को स्थिरता और विकास की दिशा मिलेगी।नेपाल में मोदी जैसा नेतृत्व संभव है?
यह प्रश्न बेहद जटिल है। मोदी जैसा नेता सिर्फ़ चुनावी चमत्कार या भाषणों से नहीं बनता। इसके लिए राजनीतिक अनुभव, दृढ़ इच्छाशक्ति और जनता से सीधा जुड़ाव होना ज़रूरी है। नेपाल में अभी ऐसा कोई चेहरा साफ़ तौर पर दिखाई नहीं दे रहा। हालाँकि, यह आंदोलन संकेत देता है कि नई पीढ़ी अब पुराने नेताओं को स्वीकार करने के मूड में नहीं है।
संभव है कि आने वाले दिनों में कोई युवा चेहरा, जो ईमानदारी, राष्ट्रवाद और विकास की राजनीति पर ज़ोर देता हो, नेपाली राजनीति में उभरे। यही चेहरा नेपाल का अपना “मोदी” बन सकता है।
निष्कर्ष: नेपाल की क्रांति और भविष्य की राह
नेपाल की संसद में लगी आग केवल भवन को नहीं, बल्कि पुराने राजनीतिक ढांचे को भी राख में बदल चुकी है। अब सवाल यह है कि इस राख से नया नेपाल कैसे जन्म लेगा। जेनरेशन-ज़ेड ने यह साबित कर दिया है कि वह भ्रष्टाचार और तानाशाही को बर्दाश्त नहीं करेगी।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता नेपाल के युवाओं की इस आकांक्षा का प्रतीक है कि उन्हें भी निर्णायक, ईमानदार और विकासशील नेतृत्व चाहिए। लेकिन, नेपाल का “मोदी” नेपाल से ही पैदा होगा।
नेपाल का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वहाँ के नेता जनता की आवाज़ सुनते हैं या नहीं। अगर वे इस बार भी युवाओं को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो आंदोलन और क्रांति की यह आग और भी तेज़ भड़केगी।

